बारिश और मन का मैल

धो डालो मन से नफरत

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 19 Jul, 2020 | 1 min read

"अरे ओ सतवीर बात करी थी क्या सगीर से ट्यूबवेल के लिए"?

"मैं बात नही करूंगा"

"उल्लू के पट्ठे बात नही करेगा तो खेतो में पानी कैसे लगेगा?

"भूखा मरना मंजूर है पर उस घर से पानी लेना नही, ईश्वर ने चाहा तो 2-4 दिन में बारिश हो ही जाएगी"

"ईख सूखने को तैयार है,तेरी बुद्धि पर पर्दा पड़ा है क्या"?

"बस पिताजी अब चुप हो जाइए,भगवान से प्रार्थना कीजिये बारिश जरूर होगी"

इतना कह सतवीर बाहर निकल गया।

ये एक कस्बा है, शहर से कम और गांव से ज्यादा सुविधाओ वाला,40%आबादी हिन्दू और 50%

मुसलमान बाकी अन्य लोग भी है।

यूँ तो सब कुछ अच्छा है काफी सालो से,पर राजनीति की गंदगी लोगो के दिमाग पर जमने लगी है।बात बात पर होती बहस मारपीट का रूप ले लेती है। लोगो के बीच एक अनकहा अनचाहा तनाव व्याप्त है।पुराने लोग दुखी है कि इतने सालों से संजोया भाईचारा कुछ सफेदपोशों की साजिश का शिकार हो रहा है, नए लोग दुखी है कि बुजुर्गो को इतिहास का सही ज्ञान ही नही था, हर पक्ष खुद को विक्टिम बना दूसरे पक्ष को इतिहास का खूनी करार देने पर तुला है।

ऐसे में इस बार ये बारिश का कहर, बुवाई का समय हो चला है, कुछ खेतो में बीज पड़े हैं,कुछ खेतो में फसल पानी के इंतजार में सूख रही है।

ऐसे में छिद्दा सिंह की ट्यूबवेल खराब हो गई है,कारीगर को शहर से बुलाया गया उसने खर्चा बताया है करीब 


इतना अभी छिद्दा सिंह के पास इंतजाम नही है, पिछले बरस की कमाई बेटी की शादी और गौने में चली गई, बहू की डिलीवरी जापा, अब महीने का खर्चा चलाना मुश्किल है।कस्बे में कुछ ही लोग खेती करते है..बाकी ने अपनी जमीन मुआवजे के भेंट चढ़ा दी और निकल गए शहर की तरफ शान की जिंदगी जीने।

तीन ट्यूबवेल है पूरे कस्बे में, छिद्दा सिंह की खराब हो गई, कस्बे के आखिरी छोर पर सज्जन है पर उसकी ट्यूबवेल का पानी छिद्दा सिंह के खेतों तक नही आएगा।

बचा सगीर जिसके ट्यूबवेल से पानी लेने को छिद्दा का बेटा सतवीर तैयार नही है।

छिद्दा खाट पर बैठा ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है, बारिश की नही..दिलो से दूरियां मिटाने की..

हुक्का गुड़गुड़ाता हुआ नजर दरवाज़े पर टिकाई है बेटा आये तो दोबारा समझाने की कोशिश करू।

सामने से सगीर का बेटा असलम जा रहा है, नजर चुराते चुराते भी छिद्दा को देख ही लेता है।

"सलाम ताऊ जी"कहकर जल्दी से निकलने की फिराक में है

"खुश रहो,सुन तो जरा कटोरे"

कटोरे सुन असलम के पैर थम जाते है..छिद्दा बचपन से असलम को कटोरे कहता,क्योंकि असलम छिद्दा के खाने के समय आ धमकता और केवल और केवल छिद्दा के कटोरे से ही दाल सब्जी खाता।

सब कहते अलग ले ले बेटा,पर जाने उसे छिद्दा के कटोरे में क्या स्वाद आता..कटोरा मुँह से लगा दाल सब्जी खत्म करके ही उठता।

"जी ताऊ बोलो"अपनी यादों पे विराम लगा वो बोला

"सगीर का टी बी कैसा है अब"?

"अब ठीक है, दवाई का कोर्स पूरा हो गया है"

"अच्छा,और तुझे बालक होने वाला था ना"

"मुझे ना ताऊ.. मेरी घरवाली को"कहकर असलम हँसने लगा।छिद्दा भी हँसा।

"हां ये भी सही है"

"बेटी हुई है"

"बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया,लक्षमी आई है"

"जी,अब चलता हूं"कहकर असलम निकल गया

छिद्दा का मन व्याकुल हो उठा है,असलम की बेटी को एक बार देख लेता।सगीर से भी मिल लेता।पर इसी बात पर घर मे हंगामा ना हो जाए। मन मे इच्छा दबा वो फिर हुक्का गुड़गुड़ाने लगा।

तभी सतवीर आया, कुछ कागज से लेकर बोला"मैं शहर जा रहा हूं, कारीगर को लेकर आता हूं"

"पैसे का इंतजाम"?

"शाहू जी ने बोला हैं वो दे देंगे"

"वो पैसे नही दे रहा,जहर की फसल तैयार कर रहा हैं तुम्हारे मन मे "

"पिताजी फिर से शुरू मत हो जाओ..आप तो खेत और घर से बाहर निकले नही आपको क्या पता दुनिया मे क्या हो रहा है..हमारा धर्म खतरे में है"

"धर्म का पता नही,पर इंसानियत और भाईचारा खतरे में है"

"आप आराम करो मैं गया और आया"कहकर सतवीर निकल गया।

छिद्दा भी खाट से उठा, धोती की लांग बांधी और चल पड़ा अपने दोस्त से मिलने।

सगीर बाहर बैठा पोती को खिला रहा था,छिद्दा को देख पोती को लिटाया और उठकर छिद्दा को गले लगा लिया।

"क्यों भाईजान, आज कैसे? टी बी से मर जाता तो शक्ल देखने भी न आते तुम"

"मरे तेरे दुश्मन सगीर"

"अब तो अपने ही दुश्मन बने बैठे है छिद्दा, दुश्मन के मरने की दुआ भी न मांगी जाती"

छिद्दा गर्दन नीचे झुकाए बैठा रहा।सगीर ने बहू को आवाज दी।

"शीबा,ताऊ आये है..जरा शर्बत तो बना ले"फिर छिद्दा की तरफ देखते हुए बोला"बच्चे बड़े हो गए छिद्दा और समझदार भी..हम लोग तो बेवकूफ रह गए"

"हम बेवकूफ ही अच्छे थे"

साथ साथ शर्बत पीते दोनों यार अपने पुराने दिनों को याद करते रहे।

****

सतवीर,शाहू के आंगन में बैठा पैसे का इंतजार कर रहा है।

अर्दली आकर आवाज देता है"जाओ बुला रहे अंदर"

सतवीर अंदर पहुंचा।सामने नोटो की तीन गड्डियां पड़ी थी।

"नमस्कार सर, आपका जितना धन्यवाद करू उतना कम है, यकीन रखिये जल्द से जल्द पैसा लौटा दूंगा"

"लौटाने की जरूरत नही है, बस मेरा साथ देते रहो"

"आपके साथ ही हूं सर"

"वो तुम्हारे कस्बे में कोई असलम है"?

"जी "

"सुना आजकल विपक्षियों के साथ घूम रहा है"

"जी"

"ह्म्म्म, देखो ब्रेक लगाओ लगा सकते हो तो"

"किस पर ब्रेक?"

"असलम पर"

"जी"इतना कह पैसे उठा सतवीर बाहर आ गया, कुछ समझा कुछ नही समझा.. पैसे की गड्डी लिए खेत की मुंडेर पर बैठा रहा।

बचपन की सभी यादे आंखों में घूम रही थी,साथ साथ ईद का मेला घूमा तो जाहर के मेले में भी झूला झूले..उसने असलम की सेवइयां खाई तो असलम ने उसके मीठे पूड़े..."

अचानक विचारों को झटका लगा,कहीं से चींखने की आवाज आ रही थी।दौड़कर पहुंचा तो असलम के खेत पर खुदे झेरे(टयूबवेल के लिए खोदा गया गड्ढा) से आवाज़ आ रही थी।

असलम चींखते चींखते लगभग अचेत हो गया था..वो कराह रहा था।

सतबीर ने खोंसी गई गड्डियों पर हाथ फेरा, कुछ सोचा और दौड़ता हुआ अपने घेर पर रखी बरही उठा लाया।साथ मे दो तीन लोगों को बुलाकर लाया।

झेरे के पास खड़ी चारा मशीन पर एक कोना बांध दूसरी अपनी कमर में बांध धीरे धीरे नीचे उतर आया।

नीचे पहुंच उसने अचेत पड़े असलम को उठाया और बाहर खड़े लोगो को आवाज़ दी।

सबने मिलकर ज़ोर लगाया और सतबीर, असलम को लिए बाहर आ गया।बुग्गी में लेकर असलम के घर पहुँचा तो चींख पुकार मच गई।

बाजार में बैठने वाले एक बंगाली डॉक्टर को बुलाया गया..उसने उपचार किया और बोला.."सर में हल्की चोट लगी है कुछ देर में होश आया जाएगा..सीधे सर के बल गिरते तो जान जा सकती थी"

सतबीर असलम के सिरहाने बैठा रहा..असलम होश में आ रहा था..आंख खोलकर सतबीर को देखा..

"क्या भाईजान यहां कैसे"?

"चुप रहो अभी चोट लगी है"

"कैसे हो असलम, आज सतबीर ना होता तो तुम्हे खो बैठता ये बूढ़ा बाप"सगीर ने आंसू पोंछते हुए कहा।

असलम सहारा ले उठ बैठा,अपनी पत्नी से बोला"वो कल तुम्हे गड्डी दी थी रुपयों की..ले आओ जरा"

"गड्डी?कहाँ से लाये थे"?सगीर ने पूछा

"1 महीना हो गया है...इफ्तार साब ने दी थी दूसरी ट्यूबवेल खुदवाने के लिए"असलम ने नज़रे चुराते हुए कहा

सतबीर ने फिर से खोंसी गई गड्डियों पर हाथ फेरा.. असलम की तरफ देखा..मुस्कुराया..उसे सहारा देकर खड़ा किया और बोला"चलो बुग्गी में ज़रा घूमकर आते है..काफी दिन हुए.."

असलम ने टोपी सिर पर पहनी और बोला"बिल्कुल चलो"

दोनों एक साथ शाहू के दरवाज़े पर खड़े थे..अर्दली को पैसे दे..इफ्तार की बैठक में पहुंचे.. दोनों ने एक साथ सलाम ठोका पैसे रखे और एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख निकल आए।

बाहर निकल बुग्गी में बैठ कस्बे के चक्कर लगा ही रहे थे कि एक काला बादल आसमान में दिखा.. फिर दूसरा और तीसरा. कुछ ही देर में गड़गड़ाहट के साथ मूसलाधार बारिश ने एक एक पत्ते और मन को सराबोर कर डाला।

सगीर और छिद्दा आंगन में बैठे देख रहे थे..बुग्गी में आते हुए असलम और सतबीर को..देख रहे थे अपने बचपन और जवानी को एक साथ भीगते हुए..

दोनों ने एक साथ दुआ में हाथ उठाए..शुक्रिया अदा की अल्लाह और ईश्वर का इस बारिश का जिसने आने से पहले ही मन के मैल धो दिए थे।






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rekha shishodia tomar

rekha

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढिया, बहुत ही बढिया

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