मां की खुरपी

पेड़ बचाओ

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 813
rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 14 Nov, 2019 | 1 min read

माँ की खुरपी

चारो तरफ सुनहरे रेत से तपती धरती, मैं यहाँ क्यों हूं,?कैसे आया?

कंठ में सुई की चुभन जाने किस कारण है?

अँधियाती लू के थपेड़े गालों को मानो चीरे डालते है।

दूर दूर तक कोई जीव नही दिख रहा...ये कौन..कौन है वहाँ?

पापा आप? आप तो?

मृत पिता को देख समझ नही आ रहा क्या कहूं? क्या करू?

पापा कुछ बोलते क्यों नही हो?ऐसे ही बिना बोले चिर निंद्रा में सो गए थे आप आज तो कुछ कहो...

पिता जाने कहाँ चल दिये? मैं भी पीछे पीछे बिना कारण चल पड़ा हूं..

पर एक मिनट ये तो मैं ही हूं.. पर मैं नही हूं..मतलब मैं देख रहा हूं ये तो कोई छोटा बालक है..ओर वो बालक मैं ही हूं..

ओह!!पिताजी मुझे लेकर या कहूँ की उस बालक को लेकर पेड़ के नीचे बैठ गए..

आह!! कितनी ठंडी शीतल छाया..मानो जन्मों से इसी की तलाश थी..

लेकिन..लेकिन..रेगिस्तान में इतना बड़ा पेड़?

पापा,मम्मी कहाँ है? बालक ने पूछा

पिता बिना जवाब दिए मुस्कुराए..सर उठाकर ऊपर देखा..बालक ने भी देखा..मैंने भी देखा..माँ का चेहरा..हाँ माँ ही तो है...

ओह!!माँ.. प्यारी माँ लौट आओ वापस..तुम्हारे बिना ऑफिस से घर आने का मन नही करता माँ...

चेहरा मुस्कुराया..मुस्कुराहट जिसमे कहीं एक शिकायत छुपी थी...एक टहनी पर छोटी सी खुरपी टँगी थी..

उफ्फ कैसा सपना था ये..?तकिया आंसुओ से भीगा हुआ था..

अचानक कुछ याद आया..दौड़ कर बाहर गया..फोन निकाला..

हैलो..हाँ रामकिशोर..आँगन में खड़ा जो पेड़ काटने को बोला था वो नही काटना है..इसलिए मत आना..

"पर बाबू जी,फिर फैंसी रेलिंग कैसें लगेगी"

"कोई जरूरत नही"

बाहर माँ थी.. पेड़ की रोपाई करते हुए, पानी देते हुए, जानवरो से बचाते हुए..साथ मे बालक भी मिट्टी की डले बना इधर से उधर फेंकता हुआ खिलखिला रहा था...

मैं मुस्कुराया..माँ आज भी बिना बोले शिकायत जताती है..

रेखा तोमर


0 likes

Support rekha shishodia tomar

Please login to support the author.

Published By

rekha shishodia tomar

rekha

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.