जज़्बा

जज़्बा देश के लिए

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 26 Jan, 2020 | 0 mins read

दोनो ही बैचैन है, दोनो ही उत्साहित और दोनो ही दुखी है। स्टेशन की भीड़ भाड़ से दूर, दोनो एक दूसरे में ही खोए हुए है,

"खूब मेहनत करना, मुझे रोज़ फोन करना किसी भी बात की चिंता मत करना.."

"ठीक है बाबा, मम्मी की तरह बात कर रहे हो अब"

"तुम्हे भेजते हुए ऐसा ही लग रहा जैसे छोटे से बच्चे को बड़ी जंग पर भेज रहा हूँ"भारी मन से दोनो ने एक दूसरे से विदा ली और वो ट्रेन में बैठ गई।

कल्पना ट्रेन में बैठकर खिड़की से बाहर खड़े उस शख्स को देख रही है, जिसकी आंखों में पानी भरा है लेकिन चेहरे पर आत्मविश्वास की मुस्कान है।। वो शख्श जो एक आतंकवादी हमले में दोनों पैर खोकर व्हीलचेयर पर बैठा है।।
"देखो घरवालों के खिलाफ जाकर भेज रहा हु अब ट्रेनिंग में मेरी नाक न कटा देना"
"डिअर परेड के बाद सबसे पहली सलामी तुम्हे दूंगी आकर"
"इंतजार करूँगा! सलामी का नही तुम्हे कस के गले लगाने का।।ये सब सोचकर अचानक हंसी आ गयी बाहर खड़े शैलेश भी हँसे,और बिछड़ने का दुख,कुछ कर गुजरने की ललक में बदल गया।।।


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