गर्म रोटी

माँ की याद

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 1913
rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 24 Jan, 2020 | 1 min read

"सुनो अब क्या कर रही हो?"
"कुछ नही किचन साफ करूँगी"
"पहले खाना खा लो"
"हम्म खाऊँगी, काम निपटा कर तस्सली से.. काम पड़ा हो तो मुझसे खाना नहीं खाया जाता"
"जैसी तुम्हारी मर्जी,ठंडा खाना है तो खाओ"
छवि ने कोई जवाब नही दिया,क्या जवाब देती, की अब उसे ठंडा खाने की आदत हो गई है।
सारा काम निपटाते निपटाते खाना गर्म करने की हिम्मत ही नही होती, गैस चूल्हा फिर गन्दा हो जाएगा यही सोचकर रह जाती है।
सब लोग अपने अपने बिस्तर तक पहुँच चुके थे, सास ससुर, और रवि
शादी को अभी एक साल ही हुआ है..लोअर मिडिल क्लास की फैमिली है..सपने बहुत बड़े नही है,बस रोजमर्रा के काम आसानी से होते रहे बस इतनी ही सोच है सबकी
छवि खाना खाने बैठी, जनवरी के महीना, सब्जी बर्फ सी ठंडी हो चुकी है,रोटियां सख्त और सुखी..
छवि आज सुबह से कुछ कामो में इतनी बिज़ी थी कि सुबह से अब खाने का टाइम मिल पाया है,उस पर भी खाने के ठंडेपन ने उसकी भूख ही मार दी है।
अचानक आँखों के कोर गीले हो गए..सोचा गर्म कर ही लेती हूं,पर पिछले हफ्ते हुए टाइफाइड ने खाना गर्म करने की हिम्मत भी नही जुटाने दी।
कुछ देर बैठ कर उसने मेज पर सर टिका दिया..आज मम्मी की बहुत याद आ रही है,कभी ठंडा खाना नही खाने देती थी।
तभी बेल बजी..उठ कर गई तो सामने माँ खड़ी थी..
"मम्मी!तुम इस समय अचानक..क्या हुआ?सब ठीक तो है?"
"अरे हाँ रे, सब ठीक है..हम कुछ पडोसनो की मंडली ऋषिकेश जा रही है, अड्डे पर बस रुकी 1 घण्टे को तो सबसे कह कर आई हूं कि बेटी का घर 10 मिनट दूर है मिल कर आती हूँ'
"अरे मम्मी अभी आपको ही याद कर रही थी..आओ सबको बुलाती हूं"
"नही मेरी बच्ची सब लेट गए है, किसी को मत जगा.. मैं तो बस तुझे देखने आई थी अब निकल जाऊँगी"
"ठीक है मम्मी"
"तू खाना खा रही थी"?
"हम्म,पर ठंडा खाने का मन नही हुआ"
"चल मैं गर्म करके लाती हूँ"
"नही मम्मी, आप बैठो मैं लाती हूँ ..दोनो खाएंगे"
"मैं खाकर आई हूँ, बैठ मैं लाती हूँ"
पलक झपकते ही सारा खाना धुंआ उठाता हुआ मेज पर हाजिर था
"अरे आपने फुल्के ताजे क्यो सेक दिए"?
"क्योंकि तुझे पसन्द है..छवि ने जल्दी से खाना शुरू किया, ना जाने आज पेट ही नही भर रहा था, वो लगातार खाए जा रही थी..खाना मुँह तक जाता और सीधे पेट मे..
तभी छवि की मम्मी उसे ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगी..छवि.. छवि..
"खाने दो मम्मी, सालो बाद गर्म खाना नसीब हुआ है"कहते कहते वो फफक उठी
अचानक उसकी आंख खुली, सामने रवि थे जो लगातार उसे हिला रहे थे
"त..तुम,मम्मी कहाँ गई"?
"छवि ,मम्मी जी को गए हुए 6 महीने हो गए है"
"ह..हाँ, पर मम्मी मुझे..वो गर्म खाना"इतना कह छवि फिर रो पड़ी
"रवि ने उसे अपने गले से लगाया और बोला"जब तुम यहाँ टेबल पर सोई हुई बड़बड़ा रही थी मैं सब समझ गया था..और मैंने एक उपाय सोचा है"
"क्या?"
"वो आते है ना बर्तन जिनमे सब्जी रोटी गर्म रहती है,वो लेकर आऊँगा मैं"
"पर वो बहुत महंगे होते है'
"तुम्हारी खुशी से  अनमोल नही है, ऊपर बैठी सासु माँ वरना किसी दिन मेरे सपने में आकर छड़ी से पिटाई करेंगी मेरी"
छवि खिलखिला उठी"चलो आप सो जाओ मैं खाना गर्म कर लूं"
"नही,तुम बैठो मैं लेकर आता हूँ" इतना  कहकर रवि चला गया
और छवि ने मन ही मन धन्यवाद दिया अपनी माँ को इतना अच्छा जीवन साथी चुनने के लिए..

0 likes

Support rekha shishodia tomar

Please login to support the author.

Published By

rekha shishodia tomar

rekha

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.