निडर, निर्भय, नम्र हूँ मैं............

मेरी शर्मों हया को मेरी कमज़ोरी ना समझो, ये तो मेरा श्र्रंगार हैं, खुद को लिए काफी हूँ मैं, मुझे नहीं औरों को मेरी तलाश हैं.

Originally published in hi
Reactions 0
282
rashi sharma
rashi sharma 14 Jul, 2022 | 1 min read

ना जाने कौन सी बात मेरी कमज़ोरी की निशानी बन गई,

ना जाने किस वक्त लोगो को मेरी आँखों मे ड़र दिख गया,

जिन निडर आँखों में मेरे चमकते सपने ना दिखे,

उन आँखों में मेरा अचानक चौकना दिख गया,


अपनी खौफनाक कहानी कहीं और सुनाओ,

जो धबराते है उन्हें ड़राओ,

मुझे ना बताओ कि काली स्याह रात कैसी होती हैं,

ना जताओ की कुदरती चाँदनी रात सिर्फ कुछ लोगों की सगी होती हैं,

लाओ मेरा मखमली दुपट्टा थोड़ निर्भय हो कर आसमान का मज़ा तो लो लूँ,

बाहे फैला थोड़े चाँद - सितारो से दमन तो भर लूँ,


लफ्ज़ोंं मे प्यार और व्यकतित्व में शराफत घोल रखी हैं,

माना की मैं मौजी हूँ बहुत मगर खुद में मैने नम्रता की पहचान घोल रखी हैं,

चीखना - चिल्लाना मेरा शौक नही मजबूरी हैं,

ना बोलो तो सब कमज़ोर समझ लेते हैं,

इसलिए उन लोगो को अपनी बात से लाजवाब करना भी तो ज़रूरी हैं.

0 likes

Published By

rashi sharma

rashisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.