गंगा दशहरा का पर्व

गंगा दशहरा का हिंदू धर्म में महत्व

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 31 May, 2020 | 1 min read

भारत भूमि सदैव से ही अपने सभी पर्व, त्यौहार,व्रत,दिवस,तिथि व जयंतियाँँ हर्षोल्लास से मनाता है।सरल शब्दों में कहेंं भारतीय 365 दिन पर्व को किसी न किसी रूप में मनाते हैं।उन्ही में से एक है गंगा दशहरा का पर्व।


गंगा को विश्व की पवित्र नदी माना जाता हो।मान्यता है कि जितना शुद्ध गंगा का जल है उतना किसी और नदी का नहीं है।गंगा को भागरथी, जान्हवी आदि नामों से जानते हैंँ।


गंगा नदी का अवतरण इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए मां गंगा को स्वर्ग से धरती पर अवतरित करने के लिए तीन बार कठोर तप किया।इस पर माँ गंगा ने प्रसन्न होकर ज्येष्ठ मास की दशमी तिथि व हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से धरती पर अवतरण लिया था।


माँ गंगा का वेग इतना तेज था कि शिव-शंभु ने अपनी जटाओं में स्थान दिया इसके बाद माँ गंगा गोमुख नामक पवित्र स्थान से निकलकर गंगा सागर में कपिल मुनी के आश्रम में राजा भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया।यहां से गंगा बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है।


गंगा दशहरा को हिन्दू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है।इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान,तर्पण, तप आदि पवित्र कार्यों को किया जाता है।मान्यता है इस दिन किया गया दान व धर्म का फल दोगुना मिलता है।


ज्येष्ठ मास के दशमी से पूर्णिमा तक अत्यधिक गर्म दिन माने जाते हैं अतः इस दिन पंखा,मटका, जल,शरबत, सत्तू के दान का अत्यधिक महत्व है।


आज भी पतित पावनी माँ गंगा धरती पर मनुष्यों का उद्धार कर रही हैं।गंगा तट की मिट्टी बहुत उपजाऊ मानी गई।अतः कृषकों के लिए यह जीवनदायिनी नदी है।यह भारत की सबसे लंबी नदी मानी गई है।


भारतवर्ष सदैव ही प्रकृति पूजक माना गया है।आर्यों के समय से ही सूर्य, चंद्रमा, तारों,नदी व पेड़ों की पूजा का विधान है जिससे की मनुष्य प्रकृति से जुड़ सके।अतः प्रकृति हमें फिर सचेत कर रही है बिना प्रकृति के मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं है।


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धन्यवाद


राधा गुप्ता


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