अब लड़कों को समझाना है

रेप के कारण व निवारण

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 12 Oct, 2020 | 1 min read
Boys Rape

यत्र नार्येस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता।

यह व्यक्तव्य हम बचपन से सुनते आ रहे हैं पर वर्तमान में एक महिला का जो स्थान देवी का मिलना चाहिए था वह आज सिर्फ़ एक भोग्या ही बनकर रह गई। हम एक ओर जहाँ महिलाएं चाँद और अंतरिक्ष पर जा रही हैं वहीं दूसरी तरह महिलाएं शोषण का शिकार हो रही हैं।बलात्कार,शोषण,मारपीट की शिकार महिला को ही समाज दोषी मानता है और जो गुनहगार है वह निडर घूमता है।

हमारे समाज में हमेशा औरतों को चुप रहने को कहा जाता है। यही कारण है कि इस तरह के कुछेक मामले ही सामने आ पाते हैं। सबसे ज्यादा महिलाएं अपने घर-परिवार में असुरक्षित हैं। घर व रिश्तेदारों पुरूष द्वारा बच्चियों का यौन-शोषण किया जाता है। सर्वे में जो तथ्य आये हैं वह भयाभय हैं। 

सबसे गंभीर बात इस कुकृत्य को छुपाने के लिए एक बड़ा वर्ग लड़कियों के कपड़ों को जिम्मेदार मानता है पर छोटी-छोटी बच्चियों के यौन-अंग भी विकसित नहीं होते और ग्रामीण क्षेत्र में स्त्रियाँ तन ढके वस्त्र पहनती हैं फिर भी इनके बलात्कार होते हैं।.सच तो ये हैं यह कृत्य गुनहगार की विकृत मानसिकता का परिचय है।

अवधारणा

1-बलात्कार के लिए समाज हमेशा से एक लड़की को ही दोषी मानता है। सोचने वाली बात है क्या लड़की ने बलात्कारी को बुलाया?नहीं न तो फिर एक लड़की जिम्मेदार कैसे? पहले ये सोच बदलनी होगी।

2-बलात्कार का उम्र और कपड़े से कोई लेना देना नहीं है। विदशों में महिलाएं बहुत छोटे या कम कपड़े पहनती हैं और वहाँ रेप रेट बहुत कम है।

3-समाज बलात्कार के लिए फिल्म और सीरियल को जिम्मेदार माना जाता है कुछ हद तक यह सही हो सकता है पर पूर्ण रुपेण नहीं।

4-बलात्कार का एक कारण शिक्षा की कमी बताया गया है। बचपन से ही हम बच्चों में भेदभाव करने लगते हैं। बच्चों को नैतिक, आध्यात्मिक, वैचारिक मूल्यों की शिक्षा की कमी इसका कारण है।

निवारण ( लड़कों को सिखाना है)

सर्वप्रथम हमें बचपन से ही अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्हें आपस में समरसता, एकता का भाव पढ़ाना चाहिए। हम समाज के दो भाग स्त्री और पुरुष में सिर्फ हम स्त्रियों को ही यह कहते हैं ऐसा करो, वैसा मत करो। ऐसे कपड़े पहनों,ऐसे उठो वैसे बैठो। जबकि हम समाज के दूसरे हिस्से यानी पुरुषों को कुछ नहीं कहते। हम बचपन से ही अगर अपने लड़कों को कहें ऐसा करो ,ऐसा न करो। हमें लड़कियों की जगह लड़कों को अच्छी सीख देनी होछोटी-छोटी बातें ही बालमन में डाल दी जाती हैं जैसे कि गुलाबी रंग लड़कियों वाला रंग है और नीला रंग लड़कों का। जबकि ऐसा क्यों ?किसी को नहीं पता। इसी प्रकार रोना लड़कियों की निशानी है ये विचार भी बालपन से ही डाल दिए जाते हैं। अतः हमने स्वयं जो मापदंड बनायें हैं उनका स्वमूल्यांकन करना पड़ेगा कि क्या आज के परिवेश में वह सही हैं या नहीं।अपने लड़कों को नैतिक, चारित्रिक व आध्यात्मिक शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे वो लड़कियों क़ सिर्फ़ उपभोग की बस्तु न मानें। लड़कों को बताना होगा जैसे तुम्हारी बहन है वैसी ही अन्य लड़कियां होती हैं।

अतः हमें लड़कियों को समझाने की बजाए हमें अपने लड़कों को नैतिकता का पाठ पढ़ना चाहिए।

धन्यवाद 

राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'



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