बेटी हूँ मैं

एक बेटी गर्भ से गर्व तक की यात्रा

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 10 Aug, 2020 | 1 min read

मेरे कोख में आते ही घर में खुशियाँ छाईं थीं।

बुआ भी बहुत कपड़े-खिलौने भरपूर लाई थीं।।


नाम अनगिनत माँ-पापा,दादी-दादी रखने लगे।

ईश्वर से मेरे छोरा होने की दुआ रोज करने लगे।।


नौ माह पूर्ण कर मैं खूबसूरत संसार में आ गई।

पर घर में सभी के चेहरों पर लंबी उदासी छा गई।।


न घर में सजावट थी न ही कोई बँटी मिठाई थी।

ऐसा लगा मानों में सच कोई अनचाही माँग थी।।


बेटी थी खुद को इस माहौल में मैं ढालने लगी थी।

मैं खुद ही हँसने,समझने,ऊँची उड़ान भरने लगी थी।।



पढ़ने-लिख कुछ करने की आग मन में रखने लगी।

खुली आँखों से आगे बढ़ने के हजार सपने बुनने लगी।


समय ने करवट ली और मैं आज एक कलमकार बनी।

बेटे ने साथ छोड़ा तो मैं ही माँँ-पिता की पतवार बनी।।

स्वरचित,मौलिक व अप्रकाशित

धन्यवाद

राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'










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radhag764n

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