समाज के चौथे स्तंभ के रूप में जाने जानी वाली पत्रकारिता का समाज में एक विशिष्ट स्थान रहा है। आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता ने अपना अपूर्व योगदान दिया है। देश के कई देशभक्तों ने स्वयं के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से भारतीयों के हृदय में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अलख जलाई थी, जिससे अंग्रेज भी विद्रोह के डर से धर-धर कांपते थे परन्तु यही पत्रकारिता वर्तमान में अपना मूलभूत स्वरूप खो अपने उद्देश्यों से पूर्णतः भटक चुकी है।
आज हम पत्रकारिता के वर्तमान स्वरूप मीडिया को प्रिंट मीडिया, रेडियो, टीवी के इतर हम अपने मोबाइल में भी देख सकते है। तकनीकी विस्तार के साथ-साथ पत्रकारिता में भी विभिन्न चैनल्स के बीच प्रतिद्वंदिता देखने को मिलती है। प्रत्येक चैनल अपना चैनल दूसरे से श्रेष्ठ और सच्चा खबरी बताता है और इसका मुख्य कारण है टीआरपी।
आज से करीब दो दशक से पूर्व टीवी में समाचार देखने का माध्यम सिर्फ़ दूरदर्शन हुआ करता था जिसमें राजनीतिक, सामाजिक खबरें हीं मूल रूप में ही दिखाई जाती थीं। दर्शकों को देश-विदेश, राजनीति-सामाजिक घटनाओं का सही सूचना प्राप्त होती थी पर नब्बे के दशक आते-आते कई प्राइवेट न्यूज़ चैनलों ने हमारे जीवन में प्रवेश किया। जब इतने सारे न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गई तो उनमें आपस में प्रतिद्वंदिता स्वभाविक है। दर्शकों को अपने चैनल को दूसरे से बेहतर सिद्ध करने के लिए नये-नये हथकंडे अपनाते हैं जिससे उनके चैनल में ज्यादा से ज्यादा दर्शक आ सकें। ज्यादा दर्शकों के आने से उनकी टीआरपी बढ़े हो जिससे ज्यादा से ज्यादा एड आ सकें। हमारे देश में काफी गंभीर मुद्दे हैं जिन पर इन समाचार चैनलों का ध्यान होना चाहिए। ऐसे मुद्दे रखने चाहिए जिसे वास्तव में सुलझाने की जरुर है पर न्यूज़ एजेन्सी सिर्फ़ एक मुद्दे को ही पकड़कर चलती है जिसे 24 घंटे प्रसारित किया जाता है। सही खबर के नाम पर ये चैनल डिबेट करवाते हैं जिसका मूल्य उद्देश्य था अपने विचारों को देना पर अब डिबेट में ही झगड़ते-झगड़ते अपना परिणाम बताते हैं जबकि यह काम पुलिस और जाँच कंपनियों का है।
अमूमन यही हाल अखबारों का है। एक अखबार स्वयं को दूसरे से बेहतर बताने की कोशिश में मसालेदार बनाकर छापते हैं। तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। किसी भी खबर को तोड़-मरोड़कर एक नये रंग कलेवर में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जिसकारण मुख्य मुद्दा छुप जाता है पर इन पत्रकारिता की चाँदी हो जाती सबसे ज्यादा भ्रामक स्थिति तो सोशियल मीडिया में चल रही है। एक मुद्दे को इतने तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि रीडर उसको सच मानने लगते हैं।
सरकार की यह जिम्मेदारी बनती हैं कि मीडिया में दिखाई जा रही सूचनाओं की एक दिशानिर्देश बनाए और उन पर कड़ाई से पालन हो जिससे दर्शकों के बीच सही तथ्य ही पहुँचे। मीडिया सिर्फ़ घटनाओं को दर्शकों तक पहुंचाने में मीडियम काम करे न कि निर्णायक। मीडिया को निष्पक्ष काम करना होगा जिससे देश में जनता के बीच भ्रम और तनाव की स्थिति न बने।
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी 'वृन्दावनी'
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बढिया जी
धन्यवाद डियर
Very nice
Thanks dear
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