पाश्चात्य परिधान और आधुनिक विचारTitle

पाश्चात्य परिधान में भी भारतीयता कायम रह सकती है , यदि विचार शुद्ध हो

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 06 Oct, 2020 | 1 min read

आज का युग आधुनिक युग कहा जाएगा , क्योंकि आजकल बहुत सी नई - नई टेक्नोलॉजी आ गई है , आज के इन्सान ने बहुत तरक्की है , इन्सान चांद तक पहुंच गया है ।

मानव सभ्यता को कपास की खेती और सुती वस्त्र ही भारत की देन है । आदिकाल में तो मनुष्य जानवरों की खाल से ही तन ढकता था , इस तरह से देखा जाए तो आज के युग में बहुत परिवर्तन आया है , और परिवर्तन प्रकृति का नियम है । लेकिन इस परिवर्तन में हमें अपनी संस्कृति , अपने संस्कार , अपनी सभ्यता नहीं भूलनी चाहिए ।

पाश्चात्य और आधुनिक में भी फर्क होता है । जैसे पहरावे को ही लें , पेंट ,कोट , शर्ट ,जींस    इन्हें हम आधुनिक कहेंगे , पाश्चात्य नहीं , क्योंकि लगभग 2 दशक पहले के पुरूष भारतीय संस्कृति का विशेष परिधान कुर्ता और पाजामा या धोती संग कुर्ता पहनते थे , और स्त्रियां साड़ी अथवा सलवार - सूट , घाघरा - चोली पहनते थे । घाघरा का स्थान लहंगा - चोली ने ले लिया है , पुरूषों की वेषभूषा में भी बदलाव आया है । आजकल तंग वस्त्रों का प्रचलन बहुत चल पड़ा है , जिससे त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं ,और आक्सीजन की मात्रा पूरी नहीं मिल पाती , जिससे शरीर में मेलोनिन का स्तर गिरता है , जो बहुत सी बिमारियों का कारण बनता है ।

 किसी भी परिधान को पहनने से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर वो परिधान हमारी संस्कृति से मेल खाता है अर्थात उस परिधान से हमारी संस्कृति , हमारी सभ्यता आहत ना हो । पाश्चात्य परिधान के साथ हम पाश्चात्य खान-पान और पाश्चात्य विचार भी अपनाने लगे हैं । हमारी पहचान "" भाषा , भेष भजन और भोजन "" से है । अंग्रेजों और मुगलों ने हमारी भाषा और भेष को बदल दिया , आज हम पिज़्ज़ा - बर्गर , कोला , बियर इत्यादि पी कर खुद को आधुनिक समझते हैं , देशी खाने और तड़के तो कहीं लोप हो गए हैं । हर घर में बच्चों को केवल इंग्लिश बोलना सिखाया जाता है , इंग्लिश अंतरराष्ट्रीय भाषा है , लेकिन हमारी मातृभाषा हिन्दी है , हमें बच्चों को हिन्दी भी सिखानी चाहिए । हम पाश्चात्य विचार अपना कर अपनों से दूर हो रहे हैं , सभी अपने छोटे से परिवार में ही खुश रहने लगे हैं जिससे रिश्तों में दुरियां बढ़ गई हैं ।

अन्य देशों में जर्मनी, फ्रांस, रशिया, जापान, चाइना में सभी अपनी मातृभाषा बोलते हैं , तो हम हिन्दी बोलते हुए क्यों हिचकिचाते हैं । हमें दूसरी भाषा के साथ अपनी भाषा का भी सम्मान करना चाहिए ।

पाश्चात्य परिधान हो या पाश्चात्य विचार इसे अपनाने में गुरेज़ नहीं , अपितु हमें अपनी संस्कृति के साथ दूसरों की संस्कृति भी सीखनी चाहिए । लेकिन ये ध्यान रहे उससे हमारा कोई अपना आहत ना हो । आधुनिक विचार और आधुनिक टैक्नालाजी अपना कर ही आज हम हर काम मशीन से करते हैं , जिसमें हमारे लिए कुछ शुभ है हम वो विचार अपनाएं ।

बहुत से ऐसे पाश्चात्य विचार है जिनसे हमारे संस्कारों का ह्रास होता है , जैसे पाश्चात्य सभ्यता को देखते हुए बच्चे बड़े- बुजुर्गों के पांव ना छुना , उनके साथ ना रहना , बहुत से ऐसे हैं जो बुजुर्गों के साथ रहना नहीं चा थे , तो उनमें संस्कार कहां से आएंगे ।

इसलिए हमें पाश्चात्य परिधान और आधुनिक विचारों को इस हद तक अपनाना चाहिए कि हमारी सभ्यता और संस्कृति आहत ना हो ।

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Prem Bajaj

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