पलायन

पलायन

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 19 Dec, 2020 | 1 min read


सात साल का मासूम राजु बहुत दिनों से घर पर था , मां स्कूल नहीं भेज रही थी , ना ही खुद काम पर जा रही है ।

बाबा भी सारा दिन घर पर ही रहते हैं मजूरी पर नहीं जाते थे , और जब भी पूछता कि सब घर पर ही क्यों बैठे हैं , कोई जवाब ना मिलता ।


मां कहती थी स्कूल जाएगा , नई ड्रेस होगी , नई किताबें-कापियां, और मां कहती थी स्कूल में खिचड़ी - दलिया भी मिलेगा , मुझे बड़ा अच्छा लगता है , पर मां स्कूल भेजती ही नहीं ना ही घर पर बना के देती है, कहती है थोड़ा - थोड़ा खाओ , कल के लिए भी रखना है , बाबा बताओ ना , मां स्कूल क्यों नहीं भेजती , तुम भी काम पे क्यों नहीं जा रहे ।

राजू बेटा का करें कोरोना ने तो सब ओर बेरोजगारी फैला दी , सब काम बंद पड़े हैं , हम कहां जाएं काम मांगने , कोई भी तो काम नहीं दे रहा !

वो कैसे बाबा !

कोरोना के डर से सब एक - दूसरे से दूर-दूर रहने लगे हैं , पहले तो कम जगह में इत्ते सारे लोग काम करते थे, अब तो सबको दूर - दूर रहते हैं , इसलिए मालिक ने आधे से ज्यादा लोगों को घर भेज दिया , अब घर पर क्या करें , और भी कोई काम नहीं दे रहा ,सब कोरोना से डर रहे हैं ‌।


आज तो और भी अजीब लग रहा है सारे घर का सामान बांध रहे हैं दोनों , ले दे कर सामान में दो बिस्तर और दो - चार जोड़ी कपड़े और आठ- दस बर्तन ही तो हैं ।

मां ये क्या हो रहा है ??? जिज्ञासा है मासूम की आंखों में ।

गुस्से में ---- पूछ अपने बापू से , गांव जाने की ज़िद्द पकड़े है , भला छोटा सा टुकड़ा ज़मीन का , वो भी बंजर , क्या बोएंगे और क्या खाएंगे ‌।


अरी कह रहा हूं ना मेहनत करेंगे तो इश्वर फल जरूर देगा , बेरोजगार हुआ हूं अपाहिज नहीं  !

हम मजूर हैं हमारे हाथों में हमारी तकदीर है मेहनत करेंगे बंजर धरती को भी उपजाऊ बना देंगे , ईहां भूखे मरने से तो भलो है । ना ईहां काम है , ना कोई मदद करने वाला , उपर से मकान का किराया भी सिर पे पड़े जा रहा है , कहां से लाएं , सहर की मंहगाई हो अलग , ऊंहां अपनी एक झोंपड़ी तो है , चार बंधु भी हैं , जब सब ठीक हो जाएगा इहां बापस आ जाएंगे , अब जल्दी करो देर मती करो पलायन में ।


मां बापु ठीक बोले है , बापु मैं भी मेहनत करूंगा आप के साथ , और हम बेरोजगारी खत्म कर देंगे , फिर थोड़े दिनों में यहां वापस आ जाएंगे , चलो मां पिलन करते हैं ।

 पिलन नहीं बबुआ पलायन , हां इश्वर करें जल्दी ही सब ठीक हो जाएं फिर से हम यहां आएंगे और राजु को स्कूल भी भेजना है ।

राजू के माता-पिता गांव के लिए पलायन करते हैं , लेकिन बेरोजगारी यहां भी पीछा नहीं छोड़ती ।

बंजर भूमि पर मेहनत करते हैं , लेकिन खाद और बीज कहां से आए ? सोच कर आए थे ठाकुर मदद करेगा ।

हजूर थोड़ा सा अनाज दे दो , बच्चे भूख से बिलख रहे हैं , तीन दिन से अन्न का दाना नहीं गया मुंह में , मर जाएंगे हजूर ।

 राजू के बापु तुम्हारी मदद कहां से करें हम , हम तो खुदए ही बेरोजगार बने बैठे हैं ।

कोरोना ने तो जन- जन की कमर तोड दी है, क्या गांव क्या शहर , सब जगह बेरोजगारी ने पांव फैलाते हैं , ना जाने क्या होगा , भगवान् ही मालिक है सबका , ना जाने ये बेरोजगारी कितनो की जान लेगी ।

राजू का पिता सोच रहा है कब कोरोना जाएगा और कब ये बेरोजगारी खत्म होगी , कहीं किसी की जान ना ले ले ये बेरोजगारी । बहुत संता रही है ये बेरोजगारी ।



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Prem Bajaj

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