हम जो उतरे सागर में साहिल पे खड़े लोग देखा किए ,
मौजों ने लगाया पार हमें साहिल ने फिर मझदार में ला खड़ा किया ।
ना -खुदा के ज़ुल्मों - सितम का करूं क्या मैं बयां ,
सितम तो मुझ पर अपनों ने ही किये ।
माना कि हम दो किनारे हैं दरिया के मिलना मुमकिन नहीं
चलते हैं साथ ये भी तो कम नहीं ।
रहते हो ख़्वाबगाह में भी किनारे की तरह ,
एक किनारा खामोश और एक सिसका किए ।
फ़ना हो कर इश्क में तुम्हारे तड़फते रहते हैं रात भर
यूं ही तेरी आंखों के समुन्दर में डूब जाने के लिए ।
सारा जहां बेशक कर ले किनारा तुझसे मेरा साथ ना छुटेगा
दो किनारों सा है प्यार हमारा संग रहा , संग रहेगा ।
लहर नहीं मैं कश्ती हूं प्यार के समुन्दर की, लहर तो आकर लौट जाती है ,
कश्ती किनारे का साथ सदा रहता है ।
नहीं होश कोई हम दोनों को ,इस प्यार की उफ़नती नदी का
पानी मदहोश किए जाता है छु कर तुझे , मुझे आ छुता है ।
हम दो किनारे मिलकर बिछड़ने के लिए , बिछड़ कर मिलने के लिए ,
ये लहरें कुछ तुमसे ले आती हैं , कुछ मुझको दे जाती हैं ,
यही तो हमारा प्रेम है , दो किनारों का अमर प्रेम ।
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