साहिल

साहिल

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 20 Dec, 2020 | 1 min read



हम जो उतरे सागर में साहिल पे खड़े लोग देखा किए ,

मौजों ने लगाया पार हमें साहिल ने फिर मझदार में ला खड़ा किया ।

ना -खुदा के ज़ुल्मों - सितम का करूं क्या मैं बयां ,

सितम तो मुझ पर अपनों ने ही किये ।

माना कि हम दो किनारे हैं दरिया के मिलना मुमकिन नहीं

चलते हैं साथ ये भी तो कम नहीं ।


रहते हो ख़्वाबगाह में भी किनारे की तरह ,

 एक किनारा खामोश और एक सिसका किए ।

फ़ना हो कर इश्क में तुम्हारे तड़फते रहते हैं रात भर

यूं ही तेरी आंखों के समुन्दर में डूब जाने के लिए ।

सारा जहां बेशक कर ले किनारा तुझसे मेरा साथ ना छुटेगा

दो किनारों सा है प्यार हमारा संग रहा , संग रहेगा ।


लहर नहीं मैं कश्ती हूं प्यार के समुन्दर की, लहर तो आकर लौट जाती है ,

कश्ती किनारे का साथ सदा रहता है ।

नहीं होश कोई हम दोनों को ,इस प्यार की उफ़नती नदी का

पानी मदहोश किए जाता है छु कर तुझे , मुझे आ छुता है ।

हम दो किनारे मिलकर बिछड़ने के लिए , बिछड़ कर मिलने के लिए ,

 ये लहरें कुछ तुमसे ले आती हैं , कुछ मुझको दे जाती हैं ,

यही तो हमारा प्रेम है , दो किनारों का अमर प्रेम ।


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Prem Bajaj

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