परिंदे प्यार के

प्यार का कोई मजहब नहीं होता

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 25 Oct, 2020 | 1 min read


अब्दुल आज पहली बार कालिज जा रहा है , इसलिए थोड़ा सा नर्वस हैं ।

यार क्या हुआ तुम तो लड़कियों के जैसे कर रहा है , इतना काहे घबरा रहा है ।

हामिद , यार पता नहीं क्यों मुझे घबराहट क्यों हो रही है , वहां इतनी सारी लड़कियां होंगी ना ।

तो ?   लड़कियां तुझे खा जाऊंगी क्या ? चल अब चलें , लेट हो रहा है ।

दोनों ने जैसे ही कालिज में एंटर किया सामने से काली कमीज , सफेद सलवार , सफेद दुपट्टा ,

लंबे घने बाल , गोरा - चिट्टा रंग , बड़ी- बड़ी आंखों में काजल , चांद जैसे मुखड़े पर छोटा सा काला

तिल, तेज़- तेज़ , लम्बे- लम्बे कदम रखती चली आ रही है और अचानक से अब्दुल से टकरा गई ।

और अब्दुल के हाथ से किताबें गिर गई ।


ओह,  सो साॅरी , दरअसल मैं जल्दी में थी , शायद बस से उतरते वक्त मेरा पर्स गिर गया , वही ढुंढने जा रही हूं ।

हामिद ..... जी मोहतरमा कहीं ये तो नहीं ???

हमें ये कालिज के गेट पर पड़ा मिला , हमने उठा लिया , सोचा अन्दर आफिस में जमा करा देंगे , जिसका भी होगा खुद ले जाएंगे ।

जी, जी , यही है ।

पर्स लेते हुए . ‌ धन्यवाद 🙏 मि० ?

हामिद , हामिद नाम है हमारा , और ये हमारे दोस्त हैं , अब्दुल ।

हामिद जी, अब्दुल जी आप दोनों का धन्यवाद ।


आप पर्स चैक कर लिजिए ।


इसकी कोई ज़रूरत नहीं । इसमें पैसे तो थे नहीं ।


पैसे नहीं थे ? फिर आप एक खाली पर्स के लिए इतनी परेशान हो रही थी ।

किसी की निशानी है , इसलिए , बहुत सी यादें जुड़ी है इस पर्स के साथ ।

 अब्दुल .... लगता है कोई बहुत ही खास शख्स है ,

जिनकी यादें इससे जुड़ी है , मिस, हम आप का नाम जान सकते हैं ?

अचानक अब्दुल को बोलता देख हामिद भोंचक्का रह जाता है कि जो लड़कियों के नाम से घबरा रहा था , वो बेतकल्लुफ़ होकर लड़की से बात कर रहा है ।

जी हां बहुत ही खास , एंड बाई दी वे मुझे खुशी कहते हैं । कह कर खुशी चली जाती है ।

अब्दुल दूर तक उसे जाते हुए देखता रहता है ।

अमां यार अब्दुल , अब चलो भी क्लास का टाईम हो गया है ।

ये क्या, क्लास में जा के देखा तो खुशी वहीं नज़र आई ।

हामिद , मुझे कुछ हो गया है , हर जगह मुझे खुशी ही खुशी नज़र आ रही है ।

यार ये तेरा वहम नही , सच है । खूशी भी इसी क्लास में है ।

ये सुन कर तो अब्दुल को जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो ।

जाकर खुशी के साथ बैंच पर बैठ जाता है ।

हामिद अब्दुल के व्यवहार पर हैरान हैं , वो हर पल खुशी या खुशी के बारे में ही बात करता है ।

 खुशी भी अब्दुल की बातों से प्रभावित होती है ।

दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए , साथ में बैठना , साथ में खाना , बस हर समय मन कहता कि दोनों साथ रहे हर पल , अक्सर फोन पर काफी देर तक बातें करते रहते ।


अब्दुल , क्या हुआ रे तुझे , तु आजकल बाकी सबसे कटा सा रहता है बस खुशी का ही नाम रटता है ,लगता है तुझे प्यार हो गया है ।

अमां हमिद कैसी बात करते हो , प्यार और मैं , ये प्यार किस परिंदे का नाम है , मुझे तो ये भी नहीं मालूम ।


इधर खुशी की सहेलियां उसे छेड़ती कि तुझे अब्दुल से प्यार हो गया है ।

हां , शायद , मुझे भी ऐसा ही लगता है , उसे ना देखूं तो चैन नहीं आता ।


फ़रवरी का महीना दो दिन बाद वैलेंटाइन डे है , और खुशी सोचती है कि शायद अब्दुल उसे अपना वैलेंटाइन बनाएगा ।

लेकिन अब्दुल ने कुछ नहीं कहा , तो खुशी ही उसे लाल गुलाब देती है ।

अब्दुल , मैं आज इकरार -ए- मोहब्बत करती हूं ।

आई लव यू !

ख़ुशी , मैं भी तुम्हें तहे - दिल से मोहब्बत करता हूं , लेकिन अभी मुझे आगे पढ़ना है , अपने अब्बा का सपना पूरा करना है ।

लेकिन क्या तुम्हारे पेरेंट्स इस शादी के लिए मान जाएंगे , और क्या तुम मेरा इंतजार करोगी ‌। वैसे मैंने अपने अम्मी-अब्बु को सब बता दिया है उन्हें कोई एतराज़ नहीं ।

मेरे मम्मी - पापा भी नए ख़्यालात के है , उन्हें कोई एतराज़ नहीं होगा ।

उस दिन खुशी और अब्दुल बहुत खुश थे , मनचाही मुराद जो मिल गई थी , घुमते- फिरते शाम ढल गई , अचानक से बहुत जोरों से बारिश होने लगी , कोई बस भी नहीं रूक रही थी , भीगते - भागते पैदल चलते जा रहे थे कि जहां कोई सवारी मिलेगी तो चढ़ जाएंगे , लेकिन कहीं कुछ नहीं रूक रहा , बुरी तरह से थके हुए , उस पर भूख, और बारिश से भीगने के कारण ठंड महसूस हो रही थी , रास्ते में गेस्ट हाउस नज़र आया थोड़ी देर वहीं रूके , रूम में अकेले , जवानी का जोश , बारिश ने भी आग लगा दी थी , रोक नहीं पाए खुद को , एक तुफ़ान आया और बहा दिया सब कुछ , छीन लिया दोनों का कुंवारापन ।


उफ़्फ़्फ़् ये ज़ालिम जवानी भी तो काबू में नहीं रहती ।

ख़ैर , जो होना था हो चुका , दोनों ने अपने-अपने घर में पहले से बताया हुआ था कि वो शादी करना चाहते हैं , दोनों के घरवाले राज़ी थे ।

अचानक कुछ दिनों बाद एक महामारी आई कोरोना , जिसमें हिन्दू- मुस्लिम का दंगा - फसाद हुआ , एक - दूजे पर तलवार , गोली , पत्थर जो भी कुछ किसी को मिलता सब एक - दूजे को खत्म करने पर तुले हैं ।

सबका प्यार नफरत में बदल गया ।

अब्बा उन्हें मत मारिए , वो खुशी का परिवार है , खुशी आपकी होने वाली बहु है , कुछ तो सोचिए ।


पापा अब्दुल मेरा प्यार है आप उसके परिवार को कैसे मार सकते हैं ।

लेकिन कोई नहीं सुन पा रहा था , सब नए ख़्यालात पीछे छूट गए थे , बस नज़र आ रहा था तो केवल हिन्दू या मुसलमान ।

 कोई नहीं इन परवानों की बात सुन रहा था , उन सबको मना करते , समझाते - समझाते दोनों बीच में आ गए और मारे गए ।

अब्दुल का परिवार , खुशी का परिवार , अपने बच्चो की लाशे देखकर रो रहे हैं ,अपने आप को धिक्कार रहे हैं , कि हिन्दू-मुस्लिम के झगड़े में दो प्यार के परिंदे उड़ गए , छोड़ गए ये मतलबी जहां , आकाश में आज़ाद परिंदे बन कर अब उड़ेंगे , जहां ना कोई हिन्दू होगा , ना मुसलमान , बस प्यार और प्यार ।


आज प्यार के परिंदे खुले आकाश में आज़ादी से विचर रहे हैं ।


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Prem Bajaj

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