कैसी आपदा आई है

कैसी ये महामारी है

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 08 Nov, 2020 | 1 min read

कैसी आपदा में प्रकृति ने फैलाई है , या कोई इश्वर की रज़ा है इस महामारी के फैलाने में ।

क्या कोई सोच रहा है ये बात , या हर कोई अनजान बन बस एक दूरी पर टिका है ,

ना जाने क्या होगा संसार का ‌।

 कभी किसी जीव ने यह नहीं सोचा क्यों हम जीव हत्या कर रहे हैं ,

क्या सिर्फ एक जिव्हा के स्वाद के लिए , क्या उन्हें जीने का हक नहीं , जिन्हें हम मार कर खा रहे हैं ।

क्यों हम प्रकृति पर कहर ढा रहे हैं , क्यों विनाश कर रहे हैं हम प्रकृति का ।

क्यों हम बेजुबान पक्षियों को पिंजरे में कैद कर रहे हैं , क्या उन्हें हक नहीं खुले आकाश में विचरने का ।

जब हम फैलाते हैं गन्दगी , कभी सोचा है इसका प्रभाव हम पर भी हो सकता है , जब हम हवा को करते

हैं प्रदुषित , क्या वो हमें प्रभावित किए बिना ही छोड़ देगी हमें ‌।


 आज प्रकृति ने ऐसी आपदा बरसाई है कि हर कोई डरा हुआ है, सहमा हुआ है ‌, एक तरफ कुछ लोग

डर कर घरों में दुबके हैं तो एक तरफ रक्षा करने वालों को , हाथ देने वालों को सहायकों को ही

नुकसान पहुंचाया जा रहा है , कैसा है ये इन्सान , क्यों इन्सान की फितरत इतनी बदल गई ।

क्यूं आज मानवविहिन सी है धरा , क्यूं शुन्य सी हो गई है ये धरा , कहां गए वो राम , रहीम

जो इसी धरती की पैदाइश थे , कहां गए वो गांधी जैसे अहिंसा वादी , काश इन्सान , इन्सान

को समझ पाता , ग़र एक - दुजे से निभाया होता प्यार का नाता , तो क्यों आज इन्सान का ये हश्र होता ।

आज मौत के डर इन्सान को कितना बदल दिया है , जिन पक्षियों को करते थे कैद

आज वो बाहर आज़ाद हैं और इन्सान अन्दर कैद हैं ‌ ।

पशु भी घूम रहे हैं सड़कों पर बेधड़क , सोंधी- सोंधी खुशबु है हवा में , भंवरे , तितलियां मंडरा रहे हैं फूलों पर , आन्नद लेते

हुए फूलों के रस का , कोयल चहक रही है कवि सी मधुर वाणी में हर गली में , नहीं कोई शोर गाड़ियों का , नहीं कोई प्रदुषित हवा में ले रहा सांस है । क्या हम उबर पाएंगे इस स्थिति से ???

 हमने एक जुट होकर , साहस कर के इस महामारी का सामना करना होगा ।

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Prem Bajaj

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