कैसी आपदा में प्रकृति ने फैलाई है , या कोई इश्वर की रज़ा है इस महामारी के फैलाने में ।
क्या कोई सोच रहा है ये बात , या हर कोई अनजान बन बस एक दूरी पर टिका है ,
ना जाने क्या होगा संसार का ।
कभी किसी जीव ने यह नहीं सोचा क्यों हम जीव हत्या कर रहे हैं ,
क्या सिर्फ एक जिव्हा के स्वाद के लिए , क्या उन्हें जीने का हक नहीं , जिन्हें हम मार कर खा रहे हैं ।
क्यों हम प्रकृति पर कहर ढा रहे हैं , क्यों विनाश कर रहे हैं हम प्रकृति का ।
क्यों हम बेजुबान पक्षियों को पिंजरे में कैद कर रहे हैं , क्या उन्हें हक नहीं खुले आकाश में विचरने का ।
जब हम फैलाते हैं गन्दगी , कभी सोचा है इसका प्रभाव हम पर भी हो सकता है , जब हम हवा को करते
हैं प्रदुषित , क्या वो हमें प्रभावित किए बिना ही छोड़ देगी हमें ।
आज प्रकृति ने ऐसी आपदा बरसाई है कि हर कोई डरा हुआ है, सहमा हुआ है , एक तरफ कुछ लोग
डर कर घरों में दुबके हैं तो एक तरफ रक्षा करने वालों को , हाथ देने वालों को सहायकों को ही
नुकसान पहुंचाया जा रहा है , कैसा है ये इन्सान , क्यों इन्सान की फितरत इतनी बदल गई ।
क्यूं आज मानवविहिन सी है धरा , क्यूं शुन्य सी हो गई है ये धरा , कहां गए वो राम , रहीम
जो इसी धरती की पैदाइश थे , कहां गए वो गांधी जैसे अहिंसा वादी , काश इन्सान , इन्सान
को समझ पाता , ग़र एक - दुजे से निभाया होता प्यार का नाता , तो क्यों आज इन्सान का ये हश्र होता ।
आज मौत के डर इन्सान को कितना बदल दिया है , जिन पक्षियों को करते थे कैद
आज वो बाहर आज़ाद हैं और इन्सान अन्दर कैद हैं ।
पशु भी घूम रहे हैं सड़कों पर बेधड़क , सोंधी- सोंधी खुशबु है हवा में , भंवरे , तितलियां मंडरा रहे हैं फूलों पर , आन्नद लेते
हुए फूलों के रस का , कोयल चहक रही है कवि सी मधुर वाणी में हर गली में , नहीं कोई शोर गाड़ियों का , नहीं कोई प्रदुषित हवा में ले रहा सांस है । क्या हम उबर पाएंगे इस स्थिति से ???
हमने एक जुट होकर , साहस कर के इस महामारी का सामना करना होगा ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.