दोस्ती की आढ़ में पनपते रिश्ते

कुछ लोग दोस्ती का नाजायज फायदा भी उठाते हैं

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 06 Oct, 2020 | 1 min read

              # दिल की ये आरज़ू थी कोई हमनवां मिले

                  अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले #



दोस्ती,  एक ऐसा शब्द है , जो हर रिश्ते से ऊपर है , जिसमें कोई खुन का सम्बन्ध नहीं , कोई जात-पात का सम्बन्ध नहीं , कोई छोटा या बड़ा नहीं , कोई लिंग का सम्बन्ध नहीं , ना ही किसी विशेष जीव से की जाती है दोस्ती ।

दोस्ती किसी की भी किसी से हो सकती है , एक बच्चे की बड़े से , एक बुजुर्ग की बच्चे से , एक इन्सान की एक जानवर से , एक पुरुष की पुरुष से , नारी की नारी से , अथवा नारी की पुरुष से ।

 क्या कोई स्त्री किसी पुरुष की दोस्त नहीं हो सकती , क्या नारी और नर का सिर्फ मां - बेटा , या भाई - बहन तथा अन्य रिश्ते , जो होते हैं , बस वहीं रिश्ता है एक पुरुष और स्त्री में या फिर प्यार या हवस का ही रिश्ता होता है नर - नारी में ?                   दोस्ती की आढ़ में काम पूर्ति करना , या काम पूर्ति के लिए दोस्ती का खेल खेलना कहां तक उचित है ??

नर और नारी का पवित्र रिश्ता नहीं बन सकता क्या ??

हर पुरुष ,  स्त्री को काम - पूर्ति की ही नज़र से ही क्यों देखता है ?

क्या एक स्त्री और पुरुष के बीच रिश्ते को किसी नाम की पहचान देना ज़रूरी है ??

 क्या एक स्त्री एक पुरुष की दोस्त नहीं हो सकती ??

बराबर का दर्जा देने की बात हर पुरुष करता है , लेकिन बराबर का दर्जा देना बहुत मुश्किल लगता है ।

किसी पुरुष को किसी स्त्री की आंखें अच्छी लगती है , किसी को किसी के होंठ पसंद है , तो किसी को किसी चाल-ढाल, यहां तक कोई पुरुष तो ये भी कहता है उसे स्त्री का जिस्म अच्छा लगा इसलिए वो उससे दोस्ती करना चाहता है , उसे उसकी छाती अच्छी लगती है , या गाल अच्छे लगते हैं , कुछ पुरूष तो साफ लफ्जों में कह भी देते हैं ।

हर पुरुष नज़रों से चूमता रहता है औरत को , काम की आढ़ में दोस्ती का नाटक रचता है कोई तो कोई किसी झूठे रिश्ते की आढ़ लेता है । काम की इच्छा स्त्री - पुरुष दोनों को होती है , लेकिन अधिकतर स्त्रियों को ही रिश्ते की आढ़ में बहकाया जाता है ।

और स्त्री लाज, शर्म , हया का पर्दा ओढ़े सब सुनती है , सब सहती है और चुप हो जाती है , किसी से शिकायत भी नहीं कर सकती ‌।

स्त्री कितनी भी स्वछन्द हो जाए , कितनी भी आगे बढ़ जाए , ये समाज फिर भी पुरुष प्रधान ही रहेगा , पुरुषों को यह जानना होगा , समझना होगा कि स्त्री भी उनके बराबर का दर्जा रखती है , उसे केवल भोग की वस्तु ना समझे ।

स्त्रियों को भी जागरूक होना होगा , पुरूषों की हर ग़लत बात का मुंह तोड़ ज़वाब देना होगा । आत्मरक्षण के लिए अपनी अस्मत बचाने के लिए मज़बूत बनना होगा हर स्त्री को , तभी पुरुष निभा पाएंगे स्त्री से एक पवित्र रिश्ता , एक खूबसूरत रिश्ता

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Prem Bajaj

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