बचपन

बचपन की यादें

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 20 Dec, 2020 | 1 min read

आया याद वो बचपन का ज़माना , पिता की डांट, मां का लोरी सुनाना ।

वो छोटी-छोटी बातों पे पल में रूठना और पल में मान जाना ।

वो दौड़ कर तितली पकड़ना , वो राधा बन कान्हा को ढुंढना ।

वो दोस्तों संग मस्ती करना , स्कूल ना जाने के बहाने ढुंढना ।

वो बारिश में भीगना उस पर बीमार हो छींकना और डांट खाना ।

वो छुक - छुक रेल बनाना , ऊंचे-ऊंचे सपनों की बातें करना ।

यही तो था असली ज़िन्दगी का ख़ज़ाना ।


क्यों नहीं होता सबका एक सा बचपन का ज़माना , कुछ होते हैं ऐसे

जिनका बचपन भी होता बदनसीब है , ना पिता की डांट ,ना मां का

दुलार नसीब है , क्या कहें ऐसे बचपन को क्यों कुछ बच्चों का फूटा नसीब है ।

दिन भर करते मज़दूरी , रात को सड़क पर सो जाते , ऐसे बच्चे स्कूलों में

भला कहां पड़ पाते ।

कहां भला नसीब उन्हें खिलौनों से खेलना , कहां मिल पाता उन्हें सुकून ,

बिमारी में भी काम का बोझ पड़ता झेलना ।

कोई तो इन पर करो कर्म , छोटे-छोटे बच्चों को बना कर मजदूर ना छीनो

इन बदनसीबों का बचपन ।


भाई से कभी करना झगड़ा , कभी उस पर प्यार लुटाना ।

वो दुल्हा - दुल्हन का खेल खेलना , गूड़ियों की शादी रचाना ।

वो छोटे - छोटे बर्तनों में खाना पकाना , झूठ-मूठ सबको खिलाना ।

कभी टीचर , कभी मम्मी , कभी पापा बन भाई को डांट लगाना ।

काश कोई लौटा दे मेरे बचपन का ज़माना ......

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Prem Bajaj

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