शहर रैन बसेरा

शहर रैन बसेरा

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 19 Dec, 2020 | 1 min read

चल परदेशी घर अपने लौट के जाना है ये शहर तो है रैन बसेरा

यहां कोई किसी को नहीं पहचानता , कौन है तेरा कौन मेरा ।


गांव पड़ी है ज़मीन बंजर मेरी ना था उसपे कुछ पनप रहा

सोचा शहर में जाएंगे कुछ कमाएंगे कोई वहां भी बनेगा मेरा  ।


 लम्बी सड़कें , लम्बी - लम्बी गाड़ियां , बड़े - बड़े घर हैं यहा

उन बड़े घरों के लोगों के दिलों में नहीं बना पाया घर मैं मेरा ।


पैसे के अमीर लोग दिलों के ग़रीब हैं नाम के रिश्ते बनाते हैं

असली रिश्तेदारों से काटते कन्नी कोई नहीं किसी का चचेरा ममेरा ।


चल मुसाफिर उस मिट्टी में , उसी पे हाथ आजमाएंगे मेहनत की खाएंगे

क्या करूं इस शहरी ज़िंदगी का ,जहां कोई नहीं अपना ये है रैन बसेरा ।

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Prem Bajaj

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