बेरूखी

बेरूखी

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 04 Oct, 2020 | 1 min read

क्यूं जलाते हो दिल हमारा कर के हमसे किनारा ,

 रह कर दूर तुमसे अब ना होगा हमारा गुज़ारा ।


ग़र नहीं पूरे करने थे अहदे-इल्तिफाते

 तो क्यों तुमने पकड़ा था हाथ हमारा ।


तुम क्या गए ज़माना और वक्त भी साथ-साथ

बिगड़ गया हमारा , अब नहीं होता बिन तेरे गुज़ारा ।


रंगत ज़रा भी ना आई रूख़सारों पे उनके ,

खुन-ए-ज़िगर भी हमने पिलाया हमारा। ।


अब भी ग़र आ जाओ तो ऊम्र अभी भी बहुत है ,

 फ़कत आधी ही कटी है करते इन्तज़ार तुम्हारा ।


दमें - आखिर तक करेंगे इन्तज़ार तुम्हारा, ग़र

 आए तुम तो मशहर में भी रहेगा इंतज़ार तुम्हारा ।


लगा के दिल तुमसे शिकवा रहा ताउम्र खुद से

रहा इश्क अधूरा वक्त को नामंजूर था मिलन हमारा ।



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Prem Bajaj

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