खरीदें हुए रिश्तों की उम्र नहीं होती . ...
गरीबी के आंसू किसी को नज़र नहीं आते , मासूम मुन्ना के हाथ में कागज़ का टुकड़ा है ।
बापु दीदी ने ऐसा काहे लिखा ।
रामलाल रोए जा रहा है , क्या कहे वो , उसके सामने वो दृश्य उजागर हो गए ।
मालिक आज थोड़ा सा धान दे दो सुखा पड़ा है खेतों में फ़सल तो है नाहीं , बच्चे भूखे हैं ।
धान तो लेजा लेकिन पहले ही इतना कर्जा है तेरे सिर पे कब चुकाएगा ।
मुनिया की शादी कहां से करेगा , और तु कहता है मुन्ना को पढ़ाऊंगा , इस गरीबी में कैसे करेगा ,
तुझे कहा तो है मुनिया की शादी मुझ से कर दे बस उम्र ही तो थोड़ी ज्यादा है मेरी ,
और कोई ऐब तो नहीं मुझमें मगर तु माने तब ना , जा घर जा के सोच के आज ही बता दियो ।
जी मालिक सोचना ही पड़ेगा अब तो धान तो हुआ नाहीं सारा साल कहां से खाएंगे ।
अरी ओ मुनियां की अम्मा अब तु ही समझा मुनियां को कहती है जमींदार से शादी नहीं करेंगी ,
अरी इतना बड़ा आदमी और कहती है मैं वहां खुश नहीं रह सकती ,
का कमी है , राज करेगी राज समझा ना इसको मुन्ना को भी तो पढ़ाना है ,
जमींदार कह रहा है कर्जा भी माफ़ कर देगा और मुन्ना को भी पढ़ा देगा ।
बापु मेरे को तो वो खरीद लेगा, का मेरी खुशी खरीद लेगा ?
खरीदी हुई जिंदगी की उम्र ना ही होवे बापु ।
सच कहती थी बिटिया हमने उसकी शादी करा दी
पर कभी खुश नहीं दिखी वो एक साल में ही सब खत्म हो गया ।
ज़ार -ज़ार रोज़ जा रहा और उस कागज़ को चूमे जा रहा है
जैसे उसमें बेटी नज़र आ रही हो ।
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