विदाऊट बिल उपकरण

औरत की कीमत एक उपकरण के बराबर

Originally published in hi
Reactions 0
346
prem bajaj
prem bajaj 04 Jun, 2021 | 1 min read

 

जी हां दोस्तों बिना बिल का भुगतान किए कोई उपकरण। हम जो भी उपकरण खरीदते हैं, पहले उसके लिए कुछ ना कुछ भुगतान करते हैं, फिर उसके बाद जब हम उसे इस्तेमाल करते हैं तो बिजली या सैल का खर्च वहन करते हैं।

लेकिन एक ऐसा उपकरण है जिसे लाने पर ना तो हम कुछ भुगतान करते हैं, और उसके बाद जब हम उससे काम लेते हैं तो भी कुछ नहीं देते, उस उपकरण का नाम है स्त्री, औरत, लड़की कुछ भी कहें, है तो वो नारी ही। नारी पुरुष प्रभुत्व समाज में महज एक उपकरण ही बन कर रह गई है। जब हम एक लड़की या नारी कहें, उसे ब्याह कर, अर्थात शादी करके लाते हैं, तो हम साथ में उसके माता-पिता से दहेज या मदद के रूप में कुछ ना कुछ धन राशि लाते हैं, कुछ लोग तो कहते हैं कि, " हमें तो कुछ नहीं चाहिए, आप अपनी बेटी को जो चाहो दे दो" कोई पूछे उनसे अगर उन्होंने ही अपनी बेटी को देना है तो वो अपने घर पर ही रख कर उसका खर्चा वहन करें, फिर आप क्यों लेकर जा रहे हो???

चलो ले आए शादी करके, मानो एक मशीन ले आए घर में।

अरे, अरे, एक मशीन नहीं, ये तो मल्टीटेलेंटिड मशीन हुई ना, #सास ने कहा, अब तो मैं फ्री हो गई, बहु जो आ गई खुद संभाले घर, #ननद ने कहा, "अपने तो मजे, जब जी चाहा कुछ ना कुछ आर्डर कर दिया बस , भाभी है ना मेरी हर जरूरत का ख्याल रखने के लिए, मैं तो बेटी हूं इस घर की, मैं भला क्यों काम करूं"। #ससुर जी तो अब पोते के सपने लेने लगे, और अगर छोटा #देवर हुआ तो उसके नखरे तो आसमान छुते हैं, भाभी जो है नखरे उठाने को, अब आई #पति देव की बारी, सुबह-सुबह सिर धोकर बालों से पानी झटकती, हाथों में चाय का प्याला लिए, मस्त अदाओं से लुभाती हुई, कातिल निगाहों में प्यार लिए, लबों पर नशा बेशुमार लिए, आकर पति देव को जगाएगी, फिर उनका हुक्म बजाएगी, मनपसंद नाश्ता होगा, लंच भी पैक ए-वन होगा, बेफिक्र हो आफिस जाएंगे, "पीछे हो ना तुम घर संभाल लेना कुछ हो ज़रूरत तो खुद देख लेना, मुझे तो समय मिलेगा नहीं, मैं तो आफिस से लेट आऊंगा"!

अरे सबसे पहली विडम्बना तो रह ही गई, अगर शादी की रात चादर लाल ना हुई, अर्थात चादर पर खून के धब्बे ना हुए तो ये मशीन डिफेक्टिव पीस है जी, बेचारी, समझाने में कितनी मुश्किल होती है,कि आजकल खेलकूद में झिल्ली फटने से प्रथम सहवाह के दौरान खून नहीं निकला सकता, बड़ी मुश्किल से सबको सन्तुष्ट करना होता है कि मैं वर्जिन हूं।

रात को सुन्दर सेज पर पति को रोज़ नए रूप में प्राणप्यारी चाहिए, कभी हो थकी या बेमन तो सौ बातें सुनाएंगे, " क्या इसी लिए शादी की थी, रात का सुख भी नहीं, अगर तुम मेरी रात रंगीन नहीं करोगी तो मैं और कहां जाऊंगा, अपनी पत्नी के पास ही तो आऊंगा ना" और अगर पत्नी का मन हो हमबिस्तर होने को और पति का ना हो तो वो निर्लज्ज," शर्म करो कुछ, कैसे व्यवहार कर रही हो, भला स्त्रिया भी ऐसे करती हैं क्या"!

  आखिर पत्नी इन्सान नहीं क्या? उसके अरमान नहीं क्या? उसके जज़्बात नहीं क्या? कभी उसका भी मन कर सकता है कि वो सेक्स करे या ना करे, ज़रूरी तो नहीं कि जब पति का मन हो तभी पत्नी का भी मन हो।

चलिए जी अब सबको बच्चे की याद आई, सास ने भी बहु को सुनाई, " बहु अब जल्दी से पोता दे दो, तो मैं गंगा नहा लूं, पति देव को अभी मस्ती में जीना है, अभी तो कुंवारा रस पीना है, बच्चे के लिए अभी ना तैयार हमारा सीना है।

 क्या करें, किसकी माने? पति की या सास की? चलिए हो गया पांव भारी बहु का। अच्छा ही हुआ कुछ समय के लिए तो लाड़-प्यार, दुलार मिलेगा, सब नखरे उठाएंगे, बेटा जो चाहिए, अब भला इसमें वो नारी बेचारी क्या करे, वो कोई मशीन है क्या, कि जिसे, जैसे हम चाहे वो उसी मोड पर चले, चलिए जी तीसरा महीना चढ़ गया तो टेस्ट कराया गया, बेटी है, अबार्शन करा दो।

**हालात की मारी ने अपने हाथों अपनी कोख उजाड़ी, फिर से शुरू हुई मां बनने की तैयारी,

फिर गए टेस्ट कराने, मगर सरकार ने इस बार पलटी मारी,

 भ्रुण टेस्ट कराने पर होगी सज़ा भारी,

आस लिए बेटे की कर रहे सब बहुत की तामीरदारी।

लेकिन नतीजा निकला वही फिर जनी बेटी, किस्मत गई उसकी मारी**

बस जी फिर क्या, कोई ना लाड ना प्यार,

 जन दी बेटी इसलिए तु है खतावार।

फिर से वही सबकी खुशियों का ख्याल, सारी जिम्मेदारी घर की, उस पर ये नन्ही सी जान, कोई भी तो नहीं उसका, क्या मिला उसे? केवल तानें," बेटा होता तो अब हमारी गोद में खेल रहा होता, तुने तो बेटी जन दी, लगता है अब बेटे के लिए, कुछ और सोचना होगा। और ?

क्या मतलब? अर्थात बेटे की दूसरी शादी। नहीईईईईईईई,  सपने में भी बर्दाश्त नहीं हकीकत में कैसे सहेगी, फिर एक बार मां बनने का चांस लेगी, अब के फिर बेटी पैदा हुई, अब भला इसमें मेरा क्या कसूर, जींस तो आपके बेटे के हैं ना, बेटा और बेटी पुरुष के जींस पर निर्भर होता है। बस इतना कहना था कि हो गया शुरू, गाली-गलौज का सिलसिला।

ये क्या हैं सब, औरत कैसा उपकरण है, घर के काम करने वाला , या पति का बिस्तर गरम करने वाला या बच्चे पैदा करने वाला उपकरण, या केवल गाली-गलौज सहने वाला, या मार-पीट बर्दाश्त करने वाला या एक पत्नी के होते हुए केवल बेटे की चाह में सौतन को बर्दाश्त करने वाला या जिस पर तेल डाल कर जलाया जाए, उसमें भस्म होने वाला उपकरण, इन सब सुविधाओं के होते हुए भी उसका कुछ भुगतान नहीं करते हम लोग, विदाऊट बिल का उपकरण।

 

 

 

प्रेम बजाज

0 likes

Published By

prem bajaj

prembajaj

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.