जी हां सच सुना आप सबने , आप जितने चाहें सम्मान पत्र खरीद सकते हैं।
आज के समय में सम्मान पत्र बेचे और खरीदें जाते हैं।
लेखन की कोई कीमत नहीं रही, लेखक क्या लिखता है इसकी कोई वेल्यू नहीं।
बस जो लेखक किसी समाचार पत्र या पत्रिका की मेम्बर शिप ले उसी के लोगों को ही लगातार छपते हैं, जब उनके लेखों (रचनाओं) की गिनती होती है तो अधिक से अधिक रचना के लिए सम्मानित किया जाता है, जिसके लिए उन्हें प्रस्सति पत्र या कहें कि सम्मान पत्र दिए जाते हैं।
आज के दौर में रचनाओं की गुणवत्ता का मापदंड शुल्क हो गया है। घटिया से घटिया रचना भी शुल्क देने पर बेहतरीन साबित होती है
हालात यह है कि बहुत से आदरणीय संपादक ऐसे हैं जो शुल्क देने पर तो कुछ भी छापने को तत्पर रहते हैं।
अन्यथा तो कितना भी अच्छा लेख, कविता, कहानी, सामाजिक परिचर्चा क्यों ना हो, उसकी ओर देखते ही नहीं,उठाकर डस्टबिन में फेंक दिया जाता है।
और अगर कोई रचनाकार उनसे जानना चाहता है कि उसके लेखन में क्या कभी थी तो उल्टे-सीधे जवाब देकर ( जैसे किसी को ये कहना कि लेखन में समझ नहीं या किसी महिलि को ये कहना कि फलां तो *बुढ़ी पता नहीं क्या लिखती रहती है, या किसी को मैं कहना कि वो तो चार पैग पी कर लिखती है, ऐसी उल-जलूल बातें करके) उन्हें अपने ग्रुप से निष्कासित किया जाता है।
कुछ संपादक महोदय तो इतना नीचे तक गिर जाते हैं कि सोच कर भी हैरानी होती है, कि लेखिका से विडियो काॅल तक करते हैं, इसमें कुछ ग़लत नहीं। मगर बातचीत का विषय अगर लेखन है तो, लेकिन उनका विषय कुछ और ही होता है। लेखिकाओं से बात करने के लिए उनके पास समय ही संज्ञा है। ज़रा सोचिए ऐसा क्यों?
एक समय था जब कलमकार की कलम तख़्तों-ताज भी हिला कर रख देती थी। कलमकार को सर ऑंखों पर बैठाया जाता था।
एक वक्त आज है कि कलमकार की कलम खरीदी और बेची जाती है। सम्मान पत्र केवल उस कलमकार का हक बन गया है जो सदस्यता के पैसे दे अन्यथा तो उस कलमकार की कलम की कीमत ही नहीं रहती।
बहुत से कलमकार ऐसे हैं जिनकी सदस्यता के कारण रोज़ ही रचनाएं छपती हैं जिसमें से कुछ का तो सिर-पैर भी नहीं होता।
और सदस्यता ना होने के कारण अच्छे - अच्छे कलमकारों की अच्छी से अच्छी रचनाएं छापने से साफ मना कर दिया जाता है।
तो साथियों ख़रीद-फ़रोख़्त ज़माना है, रचनाएं खरीदी और बेची जाती हैं।
कलमकार खरीदें और बेचे जाते हैं।
अगर चाहिए सम्मान पत्र तो है जाईए तैयार या खुद बिकने के लिए या संपादक को खरीदने के लिए, लगाइए बोली ।
संपादक और कलमकार की बोली देखें कौन कितने में खरीदता है, और कितने में बिकता है।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.