मस्ती भरा बचपन

बचपन जीवन का ऐसा पड़ाव होता है जहाँ किसी बात की कोई फिक्र नहीं होती है ।

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Preeti Gupta
Preeti Gupta 10 Sep, 2020 | 1 min read
#thepoetryblast

सबसे अच्छा जीवन बाल रूप

जीवन का सबसे अनमोल रूप ,

बाल मन बड़ा चंचल,

टिकता नहीं किसी भी पल,

करता नित नई अठखेलियां।।


अपने बाल रूप के हुनर से सबको 

खूब रिझाता,इत-उत डोलता फिरता 

दिन-भर,धमा-चौकड़ी खूब मचाता,

करता नित नई अठखेलियां।।


तोतली बोली से सबके, चेहरे पर 

मुस्कान लाता,अच्छे-बुरे की पहचान 

कहाँ,वो तो सबसे बतियाता,

करता नित नई अठखेलियां।।


खेल-खिलौने लेकर वो तो,

सब बच्चों के साथ खेलता,

दादा-दादी की लाठी बन,

पार्क में घूम आता,

करता नित नई अठखेलियां।।


दादी का चश्मा लगा आँखो पर,

दादा की लाठी ले उनको

अपना अभिनय दिखाता,

तेरी एक मुस्कान से,

पापा का दिन बन जाता,

करता नित नई अठखेलियां।।


पापा के कंधे पर बैठ कर,

दुनिया की सैर कर आता,

छोटे-छोटे कदमों से चलकर,

पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर देता,

करता नित नई अठखेलियां।।


पकड़ने को जो पीछे आये,झट से 

माँ के आँचल में छिप जाये,थोड़ी ही 

देर बाद,फिर से नयी शरारत सूझ जाती,

करता नित नई अठखेलियां ।।


थक कर जब सो जाता, 

घर में सन्नाटा हो जाता ,

तेरी मासूम चेहरे को निहारती,

माँ प्यार से तेरा माथा चूमती,

करता नित नई अठखेलियां ।।


नींद में हल्की सी मुस्कान से,

मन ही मन खूब मुस्कुराता ,

तुम सबकी जान हूँ मैं ,

इस बगिया की पहचान हूँ मैं, 

करता नित नई अठखेलियां ।।


मेरे बचपन से तुम भी, 

अपना दुबारा बचपन जी लो,

इस व्यस्त भरे जीवन में ,

तुमको खूब हँसता और हँसाता हूँ 

करता नित नई अठखेलियां।।


जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, 

फिर ये पल कहाँ से लाऊँगा,

संस्कारों की सीख से, 

जब सींचोगे  मुझे,

तो सब मस्ती भूल जाऊँगा, 

करता नित नई अठखेलियां ।।


तुम्हारी घर की रौनक हूँ मैं !मुझ से ही,

फैला हैं तुम सबके जीवन में उजियारा ,

अभी तो मस्ती कर लेने दो,

बचपन को जी भर के मुझे जी लेने दो,

करता नित नई अठखेलियां ।।


ये समय न लौटकर के आयेगा, 

जीवन-चक्र में भी जब उलझ जाऊँगा ,

दिन -रात की भागदौड़ में पीस जाऊँगा, 

करता नित नई अठखेलियां ।।


मेरे सपने तुम्हारे सपने पूरा करना होगा,

अग्रसर होकर जीवन में आगे बढ़ना होगा ,

फिर इस अवस्था से निकलना होगा,

करता नित नई अठखेलियां ।।


अभी मुझे न रोको,

अपनी बचपन की यादे संजोने दो,

कैद कर दूँ इन्हें तुम्हारे मस्तिष्क के पटल पर,

करता नित नई अठखेलियां ।।



अभी न मुझे फिक्र किसी की,

मनमौजी बन जी लेने दो,

मैं जब बड़ा हो जाऊँगा आपकी ,

यादों के चश्मे से अपना बचपन देखूँगा ,

करता नित नई अठखेलियां ।। 

प्रीती गुप्ता

स्वरचित

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Preeti Gupta

preetigupta1

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Neha Srivastava · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर❤❤

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