झिल्ली डायन (भाग -5)

राज बड़ा एक नए खतरे की ओर

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Pragati gupta
Pragati gupta 07 Jul, 2020 | 1 min read

क्या"?इतना कुछ करना पड़ेगा।

"हां ,बेटा!पर सम्भालते हुए करना। झिल्ली डायन तुम्हें रोकने की हर सम्भव कोशिश करेंगी, पर तुम उसके बहकावे में मत आना। हो सकता हैं वो तुम्हें बाबा तक न पहुंचने देगी।"

"अब ठान लिया हैं तो करना तो पडेगा ही अब भले ही प्राण क्यों न चले जाए ,मैं उसे मुक्ति दिलवा कर रहूंगा। मुझे आशीर्वाद दो मैं निकलता हूं।"

"रूको! बेटा ये लो मां वैष्णो का तावीज पहन लो,ये तुम्हें हर मुसीबत से बचाएगा और ये भावुती अपने गले पर लगा लो ,इससे वो डायन तुम्हें मारने का प्रयास नहीं कर पाएगी"।

राज उस बूढ़ी औरत का आशीर्वाद लेकर निकल जाता है।

गांव से बाहर निकलते ही वो शामपट के लिए बस पकड़ता है। शामपट पह़ुचते -पहुंचते सूरज डूबने लगता हैं वो हाथ पर बंधी घड़ी की ओर देखता है तो शाम के 6बज रहे थे। राज बस स्टैंड पर खड़ा -खड़ा खंडोलनगर पहुंचने के लिए बस का इंतजार करता है, शाम के 7.30बज रहे थे पर अब तक वहां से खंडोलनगर के लिए एक भी बस न गुजरी, उसने इधर-उधर नजर घूमांई तो थोड़ी दूर पर एक पान की दुकान थी,उसनें अपना बैग उठाया और उस दुकान की ओर चल पड़ा ।

"भाइयां , यहां से खंडोलनगर के लिए बस कितने बजे मिलतीं हैं।

"खंडोलनगर का नाम सुनकर पान वाला चौंक जाता है"।

"क्या……………आपको खंडोलनगर मतलब आप वहां क्यों जा रहे है।"

"अरे भाई!काम से जरहा हूं, आप इतना क्यों चौंक रहे हैं।"

"नहीं बस ऐसा ही पूछा। वैसे खंडोलनगर के लिए यहां से एक ही बस जाती है । जो दोपहर से 2बजे निकलती हैं, पर पर उसमें मुश्किल से 4,5सवारी रहतीं हैं।"

"ये सुनकर राज अचम्भित हुआ।4,5 सवारी पर ऐसा क्यों, मतलब इतने काम लोग, ऐसा क्या हैं वहां .………………….।"

"खंडोलनगर को भूत-प्रेतों का नगर माना जाता है इसलिए बहुत कम लोग ही वहां जाते हैं।"

" क्या भूत-प्रेतों का नगर पर मैं तो कंडोलिया बाबा से मिलने जा रहा हूँ।"

"जब तो मुश्किल है, चलिए फिर भी कोशिश कर लीजिए आप,हो सकता हैं सफल हो जाओं।

"जी ठीक है। तो आज विश्वाम का कोई अड्डा मिलेगा।"

"साहब मैं खुद अकेला पड़ा रहता हूँ ।आपको कहाँ ले जाऊ। लेकिन हां वो जो सामने धर्मशाला दिख रही हैं, वहां मदद मिल सकती हैं।"

"ठीक है!धन्यवाद " कहकर राज वहां से चला जाता हैं"।

राज धर्मशाला पहुंचता है तो देखता है, वहां एक अधेड़ उम्र का आदमी जिसकी उम्र पचपन के पार थीं बड़ी बड़ी ढाढ़ी-मूछें उसे बहुत डरावना दिखा रही थी।

"जी मुझे आज रात विश्वाम की जगह चाहिए"। राज हांफते-हांफते बोलता है।

"क्यों कहा से आए हो"। आदमी भारी आवाज मे पूछतां हैं।

"जी मैं कोछा से आया हूँ"।

"ठीक है, चलों ..।.."

"कहाँ"।

"अरे !ये धर्मशाला बंद हो चुकी हैं अब ये रोड नही चलता ।जबसें खंडोलनगर पर भूत -प्रेतों का राज्य हुआ है कोई वहां नहीं जाता तो अब यात्री भी नहीं आते तो धर्मशाला भी नहीं चलती"।

"तो आप मुझे……"

"चिंता न करो… मेरे घर चलों यहां से थोड़ी दूरी पर है, वहां खाना-पीनाखाकर आराम करना और सुबह निकल जाना ..।

क्रमशः (…………)


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