कागज की नाव और लाखों की मुस्कान
शाम के सात बज रहे थे , मैं आज ऑफिस से निकलने मे लेट हो गया था । क्योंकि आज बॉस ने काम का पूरा बोझ मुझ पर ही डाला हुआ था । काम निपटाते निपटाते कब सात बज गए पता ही नही चला । पर हां मन मे एक बैचेनी जरूर थीं कि जैसे ही घर पहुंचगा मैडम गुस्से मे बरसना शुरू हो जाएंगी और होंगी भी क्यों ना ? आज मैडम की डिमांड थीं बच्चों के साथ पिक्चर देखने की और मैंने भी सुबह ऑफिस निकलते वक्त हडबड़ी मे हां कह दिया था और साथ मैं ये भी कह आया था कि हम बाहर डिनर भी करेंगे । पर मैं ये थोडी़ जानता था कि शाम को यूं तेज बारिश आ जाएंगी । ऑफिस के अंदर बैठे बैठे कहाँ बाहर का कोई हाल पता चलता है । पता तो तब चला जब मैं घर जाने के लिए पार्किंग एरिया से अपनी कार निकालने के लिए बाहर आया । बाहर आकर देखा तो मूसलाधार बारिश ह़ो रहीं थीं । बाहर निकल कर मैंने यहाँ वहाँ सड़क पर नजरें दौडाई तो कोई नजर नहीं आया शायद सब अपने अपने घरों मे छुपे होंगे बारिश के डर से । मैंने भी कुछ देर वहीं खडा़ रहकर वेट करने का निश्चय किया क्योंकि पार्किंग एरिया तक जानें से मैं पूरा गीला हो जाऊंगा । ये मैं अच्छी तरह जानता था । त़ो मैं वहीं खड़ा रहा खडें खडे कुछ याद आया तो मैने अपनीं जेब मे से फोन निकाल कर देखा । फोन मे नेटवर्क नहीं आ रहे थे । ये देखकर मैने एक चैन की सांस ली । खुशी इस बात की थीं कि नेटवर्क की वजह से मैडम फोन करकर मुझ पर नहीं बरस पा रही हैं । वरना अब तक तो मैडम दस से पंद्रह बार कॉल कर चुकीं होतीं । ये सब सोच रहा मैं अभी भी उसी स्थिति मै अपना कोट बाजुओं मे लटकाएं खड़ा था । तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी -" कुनाल साहब " । मैने पीछे मुड़कर देखा तो रामू काका खड़े थे । ये हमारी ऑफिस के कैंटीन मे ही चाय का एक छोटा सा स्टॉल लगाते थे । और मैं दिन मे चार से पांच बार इनकी चाय पीने कैंटीन जाया करता था । रामू काका को देखकर मैने परेशान होते हुए कहा -" अरे काका , आप " । व़ो मुझसे उम्र मे काफी बड़े थे इसलिए मैं उन्हें काका बुलाया करता था ।
" हां साहब , बारिश बहुत तेज हैं ऐसे मे ना तो कोई ऑटो मिल रहा है और ना ही रिक्शा । पैदल घर जाऊंगा तो गीला हो जाऊंगा इसलिए बारिश रूकने का इंतजार कर रहा हूँ " । कहते वक्त काका ने अपना छाता अपने सिर से हटाकर मेरे सिर पर लगा दिया । ये देखकर मैं चौंकते हुए बोला -" अरे काका , आप गीले हो जाएंगे " ।
" कोई बात नहीं साहब , हमें आदत हैं । इप गीले हो गए तो आपका इतना मंहगा कोट खराब़ हो जाएंगा " । उनकी बात सुनकर मैं चुप रहा और फिर थोडी़ देर बाद कुछ सोचकर बोला -" काका , आप एक काम कीजिए मुझे पार्किंग एरिया तक ले चलिए । फिर मैं आपको अपनी कार से आपके घर पर ड्राप कर दूंगा " ।
" जी साहब , मैं आपको एरिया तक तो ले चलता हूँ पर आप कृपया मुझे छोडने मेरे घर तक ना जाएं " ।
" क्यों काका , क्या हुआ , क्या मैन आपके घर पर जानें लायक नहीं हूं " । मैने बड़ी सादगी से सवाल किया ।
" अरे नहीं, नहीं कुनाल साहब , ऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए । मैं बस इसलिए मना कर रहा था क्योंकि वहाँ की सड़कें बहुत टूटी फुटी हुई हैं और फिर मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ आप कैसे , मेरा मतलब ,उस वस्ती मे आप जैसे बड़े लोग जाएंगे तो " । कहते कहते रामू काका शर्मा के मारे रूक गए तो मैं बोला -" चलिए आप , मुझे गाडी़ तक ले चलिए " । मेरी बात सुनकर वो मुझे गाड़ी तक ले जाएं । मैने पार्किंग एरिया से गाड़ी निकालीं और फिर काका की ओर देखकर बोला -" चलिए बैठिएं , काका " ।
" मैं , मैं कैसे " । काका हिचकिचाते हुए बोले ।
" बैठिएं ना " । मैने फिर से जोर देकर कहा त़ो वो गाडी का गेट खोलकर बगल वालीं सीट पर बैंठ गए । उनके बैंठते ही मैंने गाडी़ स्टार्ट की और उनके घर की ओर मोड़ दीं । बारिश अभी भी उतनी ही तेजी से हो रही थी और गड़गडाते बादलों की आवाज सबकों सुन्न कर रही थी । बारिश के कारण बादल घिर आएं थें चारो तरफ घनघोर अंधेरा था । मैने अपनी गाडी़ की लाइट ऑन की और साठ की स्पीड से आगे बढता गया । काफी ड्राइव करने के बाद हम काका की वस्ती मे पहुंच गए । काका ने सहीं कहा था ये वस्ती तो सच मे बहुत गंदी थी । जगह जगह पानी भरा हुआ था । नालियों का पानी रोड पर आ रहा था । चारों तरफ से एक अलग ही बूं आ रही थी । कच्चे मकानों से मिट्टी रिस रहीं थीं ।
" बस साहब , यही रोक दों " । काका की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा । मैने ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी । अभी गाडी़ रूकी ही थी तभी मेरी नजर सामने एक पांच - छह के साल के बच्चे पर गई । हाथ मे कागज की नाव लिये वो उस नाव को सड़क के गड्डों मे भरे पानी मे तैरा रहा था । और बड़ी ही मासूमियत से उस तैरती नाव को देख रहा था । अंधेरा होने की वजह से जितना मेरी गाडी़ की लाइट उस पर पड़ रही थीं । उतने मे उसकी केवल शक्ल ही दिख रही थीं । मगर उसके चेहरे की मुस्कान तो अमीरों से भी ज्यादा चमकदार थीं । ऐसी मुस्कान तो मैने कभी किसी करोडपति की भी नहीं देखीं थीं । बदन को झांकने के लिए जिसके पास पर्याप्त कपडे भी ना थे । उस बच्चे की चेहरे की ये मुस्कान लाखों मे एक थीं । किसी ने सही कहा हैं बचपन की मासूमियत बहुत ही अनोखी होती हैं । मैं अभी भी उसे ही ध्यान से देख रहा था इतने मे काका मुझे देखकर बोले -" साहब , नाती हैं अपना बहुत शौक हैं इसे बारिश मे नाव तैराने का । जिद करता है कि तैरना सीखना हैं मगर गरीबी के कारण इसके मां - बाप इसका सपना पूरा नहीं कर पाते "। इतना कहकर काका गाडी़ से उतर गए । पर मैं अभी भी बडे ही प्यार से उस मासूम को देखता रहा । एक अलग ही बात थीं उस बच्चे में । बच्चों तो बच्चे होते है ना वो कहां अमीरी , गरीबी मे फर्क जानते है । वो तो अपनी मासूमियत मे कुछ अलग करना चाहते हैं । एक ये बच्चा हैं जो स्विमिंग सीखना चाहता हैं मगर पैसे नहीं है और एक मेरा बेटा हैं जिसें हर शाम स्विमिंग के लिए धकेल कर स्विमिंग क्लॉस भेजना पड़ता है । सोचकर मैं अपनी गाडी़ से उतरा और काका को आवाज लगाने लगा । मेरी आवाज़ सुनकर काका मेरे पास आएं हैं और बोले -" साहब , यहाँ बहुत पानी हैं आपके जूते खराब़ हो जाएंगे । आप गाडी़ मे ही बैठिएं " । उनकी बात सुनकर मैने उन्हें प्यार से देखते हुए कहा -" आप मेरी फ्रिक मत कीजिए काका और ये लीजिए कुछ पैसे । अपने नाती को स्विमिंग सीखाना इसके स्विमिंग क्लॉस का सारा खर्च मैंं उठाऊंगा " ।
" नहीं , नहीं कुनाल साहब , ये क्या कह रहे हैं आप , मैं ये पैसे नहीं ले सकता " । काका घबराते हुए बोले
" काका , ले लीजिए ना , इन्हें एक तोहफा ही समझ लीजिए छोटा सा मेरी तरफ से अपने नाती के लिए " । कहकर मैने वो पैसे जबरदस्ती उनके हाथों मे सौंप दिए और गाडी़ मोड़कर वहाँ से निकल आया । अब तक बारिश भी रूक चुकीं थीं । पर आज मन मे एक अजीब ही खुशी थीं । जैसे मैने किसी के बचपन को सवांरने मे अपना योगदान दे दिया हों ।
ये रचना पूर्णतः मौलिक हैं ।
रचना कैसी लगीं कमेंट्स करकर जरूर बताएं ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
संदेशप्रद कथा
Shukriya
बहुत बढ़िया
शुक्रिया
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