चाय

चाय की इबादत

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Pragati gupta
Pragati gupta 28 Jan, 2020 | 0 mins read

नर्म सी प्यारी सी व़ो सुबह की चाय सबसे न्यारी सी

पीते जिसे इस दिल को बड़ा चैन मिलता

सुबह जिससे मेरी जिससे मेरा दिन ढ़लता

कड़क सी वो थोड़ी सी सुस्ती सारी भगा जाती

वो सुबह की गरम चाय सपने कितने दिखा जातीं

फीकी जरा भी हो तो दुनिया अधूरी लगतीं

जितनी मिठास भरो इसमें दुनिया उतनी मीठी लगतीं।

हल्की सी हो जरा तो ख्वाहिश मे पलट जातीं

ये चाय मेरी जिंदगी बदल जातीं …

आलस्य जो ये दूर भगातीं

सुबह उठते ही मुझे इसकी तलब़ सताती

मिट जाती सारी थकान इसके एक घूंट से

सारी नींद, सारे दर्द ये उड़ा ले जातीं ।

जितनी दफ़ा इससे रूबारू हूं उतनी प्यास ये बढ़ा जाती

ये सुबह की चाय उम्मीदें कितनी जगा जाती

न मिलें जो ये एक दफ़ा , त़ो आबरु मेरी भी मुझसे सवाल उठातीं

कहाँ गई वो तेरी सबसे प्यारी सहेली ।…तेरी जो तुझे. इतना सता जातीं ।

चाय क्यों तुझे इतना सता जातीं ।

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