आजाद परिंदा

इश़्क जो कहीं अधूरा सा रह गया

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Pragati gupta
Pragati gupta 30 Jan, 2020 | 0 mins read

आजाद परिंदे की तरह उड़ चला

मैं फिर यहीं कहीं

ढूंढ लो मुझे साथियों

मैं ना गुम हो जाऊं फिर कहीं

एक आशियाने मे बसेरा हैं मेरा

जहां से गुजरता हैं रास्ता तेरा

खुशियों मे समाया इश्क मेरा

ढूंढता फिरता है अब परवान तेरा

मैं उड़ चला फिर इन हसीं वादियों

कर लो कैद मुझे जंजीरों मे

लौट न आऊंगा जो उड़ चला एक दफ़ा

मुड़ न पाऊंगा फिर बढ़ा जो कदम इस तरह

वक्त हैं तूं चली आ ,फिर गम न करना कि मैं न रहा

तेरी खुशी मेरी मौत मे हैं तो लो मैं चला

सम्भाल ले वरना आज मुझे अपने इमान की तरह

पिघल जाऊंगा वरना मैं किसी मोम की तरह

इश्क हूँ तेरा हिफाजत बना ले

वरना ये दूरियां बन न जाए मौत की वजह

समा जाऊंगा मैं तेरी बाहों मैं

जकड़ ले मुझे किसी हवा की तरह

मैं लौट न आऊंगा फिर कभी यहां

मैं न बेवफा सनम , न मैं मनचला

तेरी फिक्सिंग मे हिफाजत मेरी , लो चला मैं चला

तेरी फिक्र मे समाया इश्क़ लो चला मैं चला।।

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