"बहु घरेलू चाहिए पर बेटी को अफ़सर बनाना है"

बहुयों को बेटियों से कम नहीं आँकना चाहिए।नारी तो शक्ति का रूप है।

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Poonam chourey upadhyay
Poonam chourey upadhyay 31 Aug, 2020 | 1 min read

जहाँ एक तरफ घर मे पिंकी के रिश्ते की बातें चल रही थी, वहीं एक तरफ पिंकी की अफसर बनने की तैयारियां भी चल रही थी।

"पिंकी तुम यहाँ रानी के साथ किचन में क्या कर रही हो, परीक्षा की तैयारी कौन करेगा?"जाओ यहाँ से, बहु तो है ना घर के काम करने के लिए" ऐसा कहकर सुधा जी ने पिंकी को बहुत ज़ोर से फटकार लगाई।

"अरे माँ, मैं भाभी के साथ थोड़ा खाना बनाने में मदद कर देती हूं, वो भी अकेले काम करने में थक जाती हैं ," पिंकी ने बड़े प्यार से अपनी माँ को समझते हुए कहा।

"वो तो बहु है इस घर की, उसे तो सब काम करना ही पड़ेगा, और घर के कामकाजों में रखा भी क्या है, पढ़ाई नहीं करेगी तो तू एक दिन इसके जैसी घरेलू रह जाएगी ,अफसर बनना है ना तुझे तो, तेरे पापा का भी यही सपना था" सुधा जी ने रानी को ताना मारते हुए पिंकी से बोली।

यह सब सुनकर रोहित अपने आपको बोलने से नहीं रोक पाया, वह बोल पड़ा, "माँ पिंकी को थोड़ी देर रानी के साथ काम में हाथ बटाने दिया करो ये कब सीखेगी, घर के कामकाज"।रानी की वैसे भी आजकल तबियत ठीक नहीं रहती है, असल में रानी का पांचवां महीना चल रहा था, वो प्रेग्नेंट थी।

अरे राम, अब तू भी बहु की तरफ बोलने लगा, न जाने क्या जादू किया है इस महारानी ने मेरे बच्चों पर, "मेरी तो कोई सुनता तक नहीं है इस घर में",तेरी नौकरी के लिए हमनें रात दिन एक कर दिया था तब जाकर आज तू इतना कमा रहा हैं, तेरे से भी घर के काम करवाती तो आज घर मे बैठा होता,और ये महारानी जब से आई है तेरे पैसों पर ऐश कर रही है । रोहित भी वहाँ से चल दिया,अपनी माँ के ताने मारने की आदत से रोहित भी परेशान था।ऐसा कहकर सुधा जी वहाँ से बड़बड़ाते हुए निकल गयी।

और सुन ले लड़कियो को काम आना कोई ज़रूरी नही है, मेरी पिंकी जब अफसर बन जाएगी तो उसके घर तो 8-10 नौकर चाकर वैसे भी लगे रहेंगे" सुधा जी बड़े गर्व से रोहित से बोली।

रानी एक बहुत गरीब परिवार से थी पर बहुत पढ़ी लिखी थी।पैसा न होने की वजह से वहाँ प्रतियोगिता परीक्षायों की तैयारी नही कर पायी, और उसके माता पिता ने उसकी जल्दी शादी भी करवा दी थी।

आखिर एक दिन ऐसा आया जब सुधाजी को पिंकी के अफसर बनने और दादी बनने की खुशी साथ- साथ मिल गयी। उस दिन सुधाजी का तो मानो खुशी का ठिकाना ही नही था।

पर थोड़े समय बाद सुधा जी को पिंकी की शादी की चिंता सताने सी लगी थी। पिंकी अब पूरे 30 की हो चुकी थी और घर का कोई काम भी पिंकी को नही आता था,और अब तो पिंकी ऑफिस के काम में भी बहुत व्यस्त रहती थी।

एक दिन की बात है पिंकी को रिश्तेवाले देखने आ रहे थे, रानी ने नाश्ते से लेकर खाने तक की पूरी तैयारी कर रखी थी।

"अरे बहु,पिंकी को लेकर आ जाओ" सुधाजी ने रानी को आवाज़ लगाई।

जैसे ही रानी,पिंकी को लेकर आई, सुधाजी बोल पड़ी। मेरी बेटी तो अफसर है अफसर,आपके बेटे के भाग्य खुल जाएंगे अगर इससे रिश्ता पक्का होगा तो। इतने में रमाजी तुरंत पलटकर बोली-पर हमें तो नौकरी नहीं करवानी है बहु से, हमें तो आपके जैसी घरेलू बहु चाहिए," देखो कितनी प्यारी है आपकी बहु"

"मैं अपनी अफसर बेटी को घरेलू क्यों बनाऊँगी, आपके जैसे 10 आएंगे 10 जाएंगे, आपको क्या पता,लाल बत्ती की गाड़ी में घूमती है मेरी बेटी" सुधा जी थोड़ा गुस्से से बोली।

आगे भी बहुत से रिश्ते पिंकी के लिए आते रहे पर उसके लायक कोई लड़का नहीं मिल रहा था, कारण एक तो सुधाजी का घमंड कम नहीं होता था और एक तरफ पिंकी को कोई पसंद नहीं आता था।

ऐसे ही पिंकी अब 33 की होने को आ गयी थी।धीरे-धीरे अब शायद सुधाजी को समझ में आ रहा था कि लड़कियों के जीवन में नौकरी के साथ साथ काम को भी महत्व देना चाहिए। इतने भी एक दिन अचानक से सुधाजी बोली,"अब तो मुझे बेटी ही नहीं, बहु भी अफसर चाहिए" ऐसा सुनकर वह खड़ी रानी की आँखों में भी आँसू आ गए।

"रानी बेटा अब से तुम अकेले कोई काम नहीं करोगी,अब मैं भी तुम्हारे हर काम में मदद करूँगी" सुधाजी ने बड़े प्यार से रानी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला। अब पिंकी को जब भी ऑफिस से छुट्टी मिलती वो भाभी के साथ पूरा काम करवाती और रानी को जब भी समय मिलता वो पिंकी के साथ बैठकर परीक्षा की तैयारी करती। अब सुधाजी भी उनके पोते बिट्टू को संभाल लेती,सुधा के सब कामों में हाथ बटाती।अब रानी भी पढ़ाई करने के लिए वक़्त निकाल पाती।और एक दिन उनकी बहूरानी रानी भी अफसर बन ही गयी ।

अब सुधाजी में बहुत बदलाव आ गया था। बहु के प्रति उनकी सोच बदल सी गयी थी। वह बहु और बेटी को बराबरी का दर्जा देने लगी थी।

अब तो पिंकी का भी एक अच्छे घर मे रिश्ता हो गया था। घर मे सभी कामों के लिए नौकर होने की वजह से सुधाजी को बहुत आराम हो गया था,उनकी ज़िंदगी तो मानो अब बदल सी गयी थी।

आज भी हमारे समाज मे बहुत से घर ऐसे है जहाँ बहुयों को, बेटियों से कम आक़ा जाता है। अगर सुधाजी जैसा बदलाव सभी में आ जाएं तो दुनिया की कोई भी बेटी किसी पर निर्भर नहीं रहेगी।

नारी तो शक्ति का रूप है। जरूरत है तो उसके प्रति अपनी सोच बदलनी की?

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