अम्मा- अम्मा ,प्यारी अम्मा ....
कैसे चांद निकलता नभ में ,कैसे गुम हो जाता है ?
कैसे पहरा देता सूरज, अंबर में खो जाता है?
कैसे बादल मे उड़ते पँछी,नीड़ में छुप जाते हैं ?
कौन उनको समय बताता ?कैसे समझ ये पाते हैं ?
मेरे लल्ला, मेरे मुन्ना, मेरे प्यारे बच्चे, सुन !
धरती चलती धुरी पर अपनी, रात-दिन तभी होते हैं ।
जिससे सारा जगत है चलता, सूर्य घड़ी उसे कहते हैं ।
चंदा लेकर रोशनी सूरज की, चांदनी छिटकाता है।
सूरज को ही उगता देख, मुर्गा बांग लगाता है।
सूर्य के साथ ही जगते- सोते, पँछी हमको सिखलाते हैं !,
प्रकृती के साथ ही चलना सीखो, चीं-चीं कर बतलाते हैं ।
अब ,सूर्य नमस्कार कर लो तुम बच्चू , हम सूरज को जल चढ़ा आते हैं ।
इसी कारण ही तो, हम सब भारतीय,सूर्य पुत्र कहलाते है।
पल्लवी वर्मा
मौलिक ,स्वरचित
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