अम्मा

सूर्य पुत्र

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Pallavi verma
Pallavi verma 29 May, 2020 | 1 min read

अम्मा- अम्मा ,प्यारी अम्मा .... 

कैसे चांद निकलता नभ में ,कैसे गुम हो जाता है ?

कैसे पहरा देता सूरज, अंबर में खो जाता है?

कैसे बादल मे उड़ते पँछी,नीड़ में छुप जाते हैं ?

कौन उनको समय बताता ?कैसे समझ ये पाते हैं ?


मेरे लल्ला, मेरे मुन्ना, मेरे प्यारे बच्चे, सुन ! 

धरती चलती धुरी पर अपनी, रात-दिन तभी होते हैं ।

जिससे सारा जगत है चलता, सूर्य घड़ी उसे कहते हैं ।

चंदा लेकर रोशनी सूरज की, चांदनी छिटकाता है।

सूरज को ही उगता देख, मुर्गा बांग लगाता है।

सूर्य के साथ ही जगते- सोते, पँछी हमको सिखलाते हैं !,

प्रकृती के साथ ही चलना सीखो, चीं-चीं कर बतलाते हैं ।

अब ,सूर्य नमस्कार कर लो तुम बच्चू , हम सूरज को जल चढ़ा आते हैं ।

इसी कारण ही तो, हम सब भारतीय,सूर्य पुत्र कहलाते है।


पल्लवी वर्मा 

मौलिक ,स्वरचित



   

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