घरेलू हिंसा

#Ichallengeyou स्त्री और घरेलू हिंसा #6

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Pallavi verma
Pallavi verma 13 May, 2020 | 1 min read

इस अधिनियम की शुरूआत साल 2005 में हुई और 26 अक्टूबर 2006 को इसे लागू किया गया।

इस अधि नियम के अनुसार किसी भी महिला को घर के अंदर, किसी भी तरह से ( शारीरिक या मानसिक)प्रताड़ित किया जाना घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है।

किस किस को लाभ

इसमें महिला के पति से लेकर उसके नजदीकी रिश्तेदार भी शामिल है , घरेलू हिंसा से सारी महिलाओ को सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, चाहे वो माँ, पत्नी,किशोरी ही क्यो ना हो।

पित्र सत्तात्मक समाज मे महिलाओं को इन्सान की तरह नही वस्तु की तरह समझा जाना भी घरेलू हिंसा का एक कारण हो सकता है।

त्वरित न्याय

महिला के द्वारा शिकायत करने पर मजिस्ट्रेट के द्वारा त्वरित कार्यवाही की जाती है और 60 दिन के भीतर न्याय दिलाने का प्रयास किया जाता है।

साक्ष्य की कोई अनिवार्यता नहीं

कानून यह मानता है कि, घर के अंदर हुई हिंसा का कोई साक्ष्य नहीं होता, इसलिए महिला के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य ही घरेलू हिंसा का आधार मान लिया जाता है।

नियम

महिला अपने क्षेत्र मे ही इस केस की सुनवाई करवा सकती है, केस ट्रांसफर कर दिये जाते हैं ।

यदी पीड़िता चाहे तो बंद कमरे में सुनवाई की जाती है।

यह कानून घरेलू हिंसा को रोकने के लिये राज्य एवं केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार ठहराता है और किसी भी हालत मे सरकार की जबाब दार है ।

अतः महिला किसी तरह की हिंसा ना बर्दाश्त करे और घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराए।

नोट-: इस कानून का गलत प्रयोग नहीं करना चाहिए,केवल बदला लेने इसका प्रयोग करना कानून के साथ खिलवाड़ माना जाएगा,और वह दंड का अधिकारी होगा।

धन्यवाद

पल्लवी वर्मा

स्वरचित

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