विदेशी ताकतों का अधिप्रचार

किसान आंदोलन अब सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तूल पकड़ रहा हैं। जिसमें कई राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ बोलीवुड से लेकर विदेशों की जानी मानी हस्तियाँ अपना उल्लू सीधा कर रही हैं। आलम तो यह है कि दुनिया की इन तीन बड़ी शख्सियतों में इतनी असमानताएं हैं कि इन्हें किसी एक विषय पर साथ देखने के बारे में पहले कभी सोचा ही नहीं जा सकता था लेकिन किसान आंदोलन ने इन तीनों को एक साथ ले आया और जिससे यह बात साबित होती है कि इस आंदोलन के पीछे बहुत बड़ी ताकत का हाथ है।

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Nidhi Jain
Nidhi Jain 07 Feb, 2021 | 1 min read
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किसान आंदोलन अब सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तूल पकड़ रहा हैं। जिसमें कई राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ बोलीवुड से लेकर विदेशों की जानी मानी हस्तियाँ अपना उल्लू सीधा कर रही हैं। आलम तो यह है कि दुनिया की इन तीन बड़ी शख्सियतों में इतनी असमानताएं हैं कि इन्हें किसी एक विषय पर साथ देखने के बारे में पहले कभी सोचा ही नहीं जा सकता था लेकिन किसान आंदोलन ने इन तीनों को एक साथ ले आया और जिससे यह बात साबित होती है कि इस आंदोलन के पीछे बहुत बड़ी ताकत का हाथ है। इनमें पहली रिआना है, जो अमेरिका की मशहूर पॉप सिंगर हैं। दूसरी स्वीडन है, जो कि पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग की है और तीसरी एडल्‍ट फिल्‍म इंडस्‍ट्री में काम कर चुकी अमेरिका की एक मॉडल मिया खलीफा की है इन तीनों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है। चाहें वो भारत में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया है या फिर किसी ओर कारण वर्ष जिसका पता तो समय आने पर ही पता चलेगा। अवश्य ही यह रहस्यमय ताकत कितनी बड़ी है कि इसकी साजिश कितनी खतरनाक होगी इसका तो अंदाजा हम लगा ही नहीं सकतें।उल्लेखनीय है कि एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि चार और पांच फरवरी को बड़ा ट्विटर अभियान चलाया जाएगा, जो अभियान Twitter Storm नाम से होगा व 13 और 14 फरवरी को विदेशों में भारतीय दूतावास और सरकारी संस्थानों के आस पास बड़े प्रदर्शन किए जाएंगे यानी यह भी पहले से ही तय था एंव

एक दस्‍तावेज से पता चला है कि, 26 जनवरी के लिए जो प्‍लान तैयार किया गया था ठीक यह भी उसी तरह तय हुआ है। जिसमें एक खास ईमेल एड्रेस Scrap Farmers Act @ Gmail. Com पर किसानों के समर्थन में फोटो और वीडियो भेजने की बात कही गई है।साथ ही इसमें हैशटैग Ask india why के साथ डिजिटल स्ट्राइक करने की बात भी लिखी हुई है व भारत के प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री के अलावा International Monetary Fund, World Trade Organization और वर्ल्‍ड बैंक को इसमें टैग करके कृषि बिल का विरोध करने की अपील की गई है।

बहरहाल 26 जनवरी को भारत और विदेशों में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना है। ये भी इसमें लिखा है और इससे ये बात साबित होती है कि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा संयोग नहीं, बल्कि एक प्रयोग था।

एंव भारत के बड़े उद्योगपतियों की कंपनियों और दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन करें। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की राजधानी दिल्ली में जो भी हुआ था वह अवश्य ही भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई थी और इस सोची समझी साजिश से यह साबित हो जाता है कि यह साजिश अब भी भारत के खिलाफ काम कर रही है।

हैरानी वाली बात तो यह है कि अमेरिका की पॉप स्‍टार रिआना, एनवॉयरमेंटल एक्टिविस्‍ट ग्रेटा थनबर्ग और पॉर्न स्टार मिया खलीफा के बाद अब ब्रिटेन की मेंबर ऑफ पार्लियामेंट क्लाउडिया वेब किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटिश संसद में बहस कराना चाहती हैं। जिसके लिए लेबर पार्टी की सांसद क्‍लाउडिया वेब ने एक सिग्‍नेचर कैंपेन भी चलाया हैं। क्‍लाउडिया का दावा है कि सिग्‍नेचर कैंपेन को अब तक एक लाख से ज्यादा लोग समर्थन दे चुके हैं और इसलिए अब किसान आंदोलन का मुद्दा ब्रिटिश पार्लियामेंट में बहस के योग्य है क्योंकि, यूके की संसद के नियमों के मुताबिक 1 लाख से ज्‍यादा दस्तखत वाला कोई भी पिटीशन संसद में बहस के योग्य हो जाता है लेकिन सवाल तो यहउठता है कि भारत के मुद्दे को ब्रिटिश में उठाने की जरूरत ही क्या थी?

ब्रिटिश के सांसद में भारत के मुद्दे पर बहस होना साफ करता है कि भारत के खिलाफ जो विदेशी ताकतें काम कर रही हैं, वो अब धीरे धीरे एक्‍सपोज होने लगी हैं।

कुल मिलाकर एक बात यह है कि भारत को बदनाम करने के लिए यह ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया गया हैं।

लेकिन इंटरनेशनल प्रोपेगेंडा शायद यह भूल गए है कि भारत को निशाना बनाकर चलाए जा रहे अभियान कभी सफल नहीं होंगा व भारत इस साजिश को कामयाब नहीं होने देगा। इसमें अब कोई शक नहीं है कि दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 70 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है और अब इस आंदोलन का रिमोट कंट्रोल भारत से दूसरे देशों में शिफ्ट हो गया है और इन्हीं देशों से अब इस आंदोलन को नियंत्रित किया जा रहा है। गौरतलब है कि यह ठीक उस मार्केटिंग स्‍ट्रैटजी की तरह है, जिसमें किसान आंदोलन एक प्रोडक्‍ट बन कर रह गया है और इस प्रोडक्‍ट को बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज एंडोर्स कर रहे हैं यानी इसका प्रचार कर रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या इन हस्तियों को यह पता है कि जिन किसानों का उन्होंने समर्थन किया, वही किसान सीमित संसाधनों की वजह से भारत में पराली जला कर प्रदूषण फैलाते हैं और पिछले दिनों किसानों ने सरकार के सामने यह मांग भी रखी थी कि पराली जलाने पर कार्रवाई के नियमों को खत्म कर देना चाहिए और सरकार ने किसानों के दबाव में आकर यह मांगें मान भी ली थीं। हालांकि इन सब साज़िशों से यह स्पष्ट होता है कि किसानों के आंदोलन को मिल रहा यह समर्थन सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, पूरी तरह से प्रायोजित है और मार्केटिंग कंपनियां अपनी कमाई और भारत की बदनामी के लिए ग्रेटा थनबर्ग और रिआना जैसी सेलिब्रिटीज का उपयोग कर रही हैं। वहीं रिआना और ग्रेटा की तरह अमेरिका की एक मॉडल और पॉर्नस्‍टार मिया खलीफा भी इसमें पीछे नहीं है। वह भी किसान आंदोलन का बढ़-चढ़कर समर्थन कर रही है।बहरहाल मार्केटिंग की भाषा में समझें तो अब किसी मुद्दे पर समर्थन जुटाने का यह नया तरीका बन गया है। जैसे कोई सेलिब्रिटी किसी ब्रांड को एंडोर्स करता है, ठीक वैसे ही अब इन सेलिब्रिटीज का प्रयोग ऐसे मुद्दों के लिए भी होने लगा है, जिसमें भीड़ को उस प्रोपेगेंडा का हिस्सा बनाया जाता है, जिसकी डोर मुट्ठीभर लोगों के हाथों में होती है और किसान आंदोलन के साथ भी कुछ वैसा ही हो रहा है। यह आंदोलन जब शुरू हुआ था तो तब इसका मकसद था कृषि कानूनों को रद्द कराना लेकिन जिस दिन से इस आंदोलन ने झूठ के हाईवे पर चलना शुरू किया है उसी दिन से ही यह आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया और 26 जनवरी को जो भी हुआ वह इस आंदोलन का असली चेहरा ही है। लगातार भारत सरकार लोगों से अपील कर रही है कि इस विषय पर प्रतिक्रिया देने से पहले तथ्यों का पता लगाया जाए और इन मुद्दों को अच्छे से समझा जाए। सोशल मीडिया पर सनसनीखेज हैशटैग लगाने और कमेंट करने का लालच न तो पूरी तरह से सही है और न ही जिम्मेदाराना है, खासकर तब जब ऐसा जाने-माने और अन्य लोग करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में अमेरिका में लोगों का ध्यान अपनी नीतियों और विषयों की तरफ आकर्षित करने के लिए लगभग 25 हज़ार करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जिससे यह समझा जा सकता हैं कि यह व्यापार कितना बड़ा हैं। गौरतलब है कि इतिहास के पन्नों में दर्ज कई ऐसी घटनाएं हैं कि जिससे यह पता चलता है जब-जब भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी ताकतों की घुसपैठ हुई, तब तब भारत को नुकसान हुआ।

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