प्रबल इच्छाशक्ति की कहानी

परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर भी सफलता प्राप्त की जा सकती है ,बशर्ते मन में दृढ़ इच्छाशक्ति वा दूरदर्शिता होना जरूरी है ,आइए देते हैं कि एक अध्यापक ने ऐसा क्या किया कि अपने प्रबल इच्छा शक्ति से उन्होंने क्या-क्या प्राप्त किया.....

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Neha Srivastava
Neha Srivastava 09 Jul, 2020 | 1 min read

यह बात अधिक पुरानी नहीं है ,,यह कहानी एक ऐसे गांव की है! जहां से किसी भी बच्चे ने सरकारी नौकरी नहीं पाई थी, उन दिनों सरकारी नौकरी को बहुत ऊंचा ओहदा मानते थे ,,एक गांव के ""अध्यापक के दृढइच्छाशक्ति और दूरदर्शिता की कहानी"" है जिन्होंने अपने बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करने की प्रबल इच्छा शक्ति जागृति की ---आइये देखते हैं कैसे....


क्यों री... प्रमिला सुना है गांव के मास्टर जी के तीनों बच्चों ने सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली है!! हां दीदी पाती भी क्यों ना ,,उनके पिता के दिन रात एक कर के मेहनत जो की थी प्रातः भोर चार बजे ही अपने तीनों बच्चों को उठाकर मुँह धुलाकर पढ़ने के लिए बिठा देते थे.... हमेशा सत्य बोलने वाले ,,कठिन परिश्रम करने वाले ,सबकी मदद करने वाले , पूजा भक्ति करने वाली अध्यापक है।।

वे ऐसे सख्त अध्यापक थे, जिनकी लाठी की आवाज से ही बच्चे दुबककर के कोने में बैठ जाते थे... पता है दीदी तब तो गांव में उनके घर पर बिजली का कनेक्शन भी ना था भोर में ही लालटेन में तेल डाल कर बच्चों को पढ़ने के लिए बिठा देते और उनसे सवाल पूछते रहते और बच्चे ध्यानपूर्वक पढ़ते रहते थे.... गणित उनका प्रिय विषय था ,, वे अपनी कक्षा में भी सभी बच्चों को ध्यानपूर्वक पढ़ाते रहते थे....बच्चों ने भी आगे पढने के लिए बहुत ललक थी... ""पांच-पांच किलोमीटर ""पैदल चलकर स्कूल जाना आना पड़ता था..... बारहवी के बाद गांव के बाहर शहर जाकर ,अकेले रह कर पढ़ाई करते और बहुत सारी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई को जारी रखा !! इलाहाबाद जाकर तैयारी में जुट गए ""सफलता एक बार मे कभी नहीं मिलती"' ,,उसके लिए अथक प्रयास करना पड़ता है !!

मास्टर जी को पेड़ों का बहुत शौक था,, पेड़ों की रख रखाव एक पिता की तरह करते थे और उन्हें खेती-बाड़ी का भी बहुत शौक था,,, एक अकेला कमाने वाला और खाने वाली कुल आठ लोग,,, खेती बारी भी कुछ खास ना थी....फिर भी कभी भी उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में पैसों को वरीयता नहीं दी ,,ना तो उन्होंने ""घर का शौक रखा ना कपड़ों का"" उनकी केवल एक प्रबल इच्छा थी कि उन्हें कैसे भी अपने बच्चों को अच्छे से अच्छी पढ़ाई करवानी है एवं उन्हें अच्छे संस्कार भी देने है!!

उनके सभी बच्चों ने तैयारी जारी रखी,, बच्चों ने भी अथक प्रयास किया... धीरे-धीरे सफलता भी मिलती गई,, बड़े बेटे को विदेश मंत्रालय मे ,,मंझलें बेटी को रेलवे मंत्रालय मे और छोटी बेटे को भी दिल्ली में नौकरी प्राप्त हो गई .... मैंने तो यह भी सुना है दीदी अब तो उनके बहुत ठाठ बाट हो गए हैं....

लोग पहले मास्टरजी की बातें सुनकर गांव वाले उन पर पीठ पीछे ताने भी मारते और कहते कि शहर के बच्चे जो पढ़ने में इतनी तेज होते हैं वह तो नौकरी पा नही रहे ....तो उनके बच्चे कैसे पा सकते हैं ''आज जब उनका लक्ष्य प्राप्त हो चुका है तो वो भी गांव वालों के लिए एक मिसाल बन गए हैं !!कि जब उनके बच्चे नौकरी पा सकते हैं, तुम गांव की कोई बच्चा सरकारी नौकरी पा सकता है बशर्त दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए!! उसके बाद गांव के बहुत से बच्चों को पढ़ाई में लगन वा मेहनत करने लगे जिससे उन्हें सफलता भी प्राप्त होती गई।।।

"""यह एक सच्ची कहानी है जो गांव वालों के साथ-साथ शहरों के लिए भी एक मिसाल बन गई थी कि जैसे मास्टर जी ने अपने बच्चों को अच्छी पढाई और संस्कार दिया ,,वैसे ही हम भी अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने की कोशिश करेंगे!!!

हर काम को करने में अनेक बाधांंए आती है.. लेकिन ,"""हम अगर उनका सामना पूरी ईमानदारी व दृढ़ इच्छाशक्ति से करे.... तो हमें एक ना एक दिन सफलता जरूर प्राप्त होगी।।।

......नेहा श्रीवास्तव....


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