शतरज

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Neha 29 Dec, 2019 | 0 mins read

शतरज ! ज़िन्दगी की शतरंज में आज प्यादा हूँ , बाहर कम और खुदमे ज़्यादा हूँ मै वक़्त को वक़्त देना सीख रहा हूँ , एक दिन इस वक़्त को भी जीतूंगा मै ! सागर की गहराइयों को भी देखा है , आसमान की ऊंचाई भी नापुंगा मै दर्द की इन्तेहाँ को भी सहा है , एक खुशहाल कल भी बनाऊंगा मै ! जो आज अकेला चल रहा हूँ , एक दिन इसे कारवाँ बनाऊंगा मै जो आज तरसा हूं सबके वक़्त को , एक दिन मेरे वक़्त को क़ीमत बनाऊंगा मै ! टूटा हूँ , बिखरा भी हूँ , अपनी राह में गिरा हूँ पर ए ज़िन्दगी अभी रुका नहीं हूँ मै न हार मानी थी , न मानूँगा , ऐ ज़िन्दगी तेरे सितमों से हौसला टूटने नहीं दूंगा मै ! जो तोड़ गए टुकडों में , इन टुकड़ों को मूरत बनाऊंगा मै जो आज नाम लेने से कतराते हैं , उनको अपना पत्रकार बनाऊंगा मै ! ज़िन्दगी के खेल में कुछ कच्चा हूँ , कई बार हार के सीख हूँ मै शतरंज की एक बाज़ी नहीं , पूरा खेल जीतूंगा मै ! ज़िन्दगी की शतरंज में आज प्यादा हूँ , बाहर कम और खुद में ज्यादा हूँ मै थोड़ा वक़्त तो दो मुझे , इस प्यादे से उस राजा को मात दूंगा मै !

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