तेरे बिना भी क्या जीना-12

माहिरा के चाचाजी ने कहाँ पर उसकी शादी फिक्स कर दी? वह कोई बोझ तो थी नहीं किसी पर!

Originally published in hi
Reactions 1
380
Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 10 Apr, 2022 | 1 min read

विवाह-मंडप के आसपास कोई दो अनजान, कान की कच्ची, महिलाएँ यह चर्चा कर रही थीं कि दुल्हन का एकबार सामूहिक बलात्कार हो चुका है। 

और उनकी ये बातें हवा में तैरती हुई, एकबारगी समीप ही बैठे दूल्हे के कानों में जाकर प्रवेश कर गई! बस,,फिर क्या था ? वह गुस्से से आग- बबूला हो उठा। और फिर तैश में आकर शादी भूलकर उठ खड़ा हुआ और लगा ज़ोर- ज़ोर से गालियाँ देकर कन्यापक्ष के सात पुरखों का तारन करने!


इस उद्धार कार्य में अब दूल्हे के घरवालों के साथ- साथ वर-पक्ष के अन्य लोग भी शामिल हो चुके थे।

उन्मत्त भीड़ फिर गाली- गालौज से आगे बढ़कर जुतमपैजार पे उतर आई थी। 

शादी का माहौल तुरंत एक बदसूरत सीन में तब्दिल हो चुका था, जहाँ शिक्षा एवं संस्कार की कोई आवश्यक्ता न थी। लोग अपनी पाशविक वृत्ति का प्रदर्शन बड़ी खुशी से कर रहे थे!


लग ही नहीं रहा था कि कोई भी सज्जन इस शादी में उपस्थित है कोई! सबके सब अपनी भद्रता के मुखौटे उतार चुके थे।


अचानक हुए इस हमले के कारण कन्यापक्ष ने भी अपने बचाव हेतु हथियार उठा लिए थे -- जिसे जो भी मिला, उसने वही हाथ में उठा लिया। किसी ने मंडप का बाँस खींच लिया तो कोई हवनकुंड से लकड़ी निकाल लाया और जिसे कुछ भी न मिला वह हाथ में केवल अपनी पादुकाएँ लेकर मुकाबला करने खड़ा हो गया। 

महिलाएँ भी कोई अपवाद न थीं। उन्होंने भी अपनी रंग- बिरंगी मखमली स्लीपरें अपने हाथों में उठा रक्खे थे!


मंहगे रेशमी कपड़े पहनकर बन-ठनकर शादी में शामिल होने वाले लोग भी इस हद तक कभी नीचे गिर सकते हैं, यह बात आशीष ने अगर अपनी आँखों से न देखा होता तो उसके लिए विश्वास करना सच में बहुत कठिन था! आश्चर्य से आँखें फाड़कर उसने देखा कि उसका भाई चीकू भी लाठी लेकर भीड़ के बीच में खड़ा है!


इन सबके बीच माहिरा के पिता, जो कभी बड़े प्रतापी पुलिस अधिकारी रह चुके थे, केवल निश्चल खड़े थे। वे थके हारे से, अपनी पगड़ी उतारकर, हाथ बाँधे वरपक्ष के सामने खड़े थे। कन्यादान करने के लिए वे बैठे ही थे कि यह बखेरा आरंभ हो गया था।

" पर माहिरा, वह कहाँ गई?" अस्फुट स्वर में आशीष ने खुद से प्रश्न किया। आशीष की आँखें उसे ढूँढती हुई वहाँ तक पहुँच गई जहाँ पर माहिरा किसी सज्जन और एक भद्रमहिला से कुछ बातचीत कर रही थी। 


आशीष भी चुपचाप उस ओर चल दिया। और वहाँ पहुँचकर छिपकर उन लोगों की बातें सुनने लगा!


" चाचा जी, आपने तो कहा था कि रिश्ता तय करते समय आपने इन सबको हमारे अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया है? फिर,,, आज यह लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं कि हमने इनको धोखा दिया है?! बताइए,,।"


इससे पहले कि माहिरा के चाचा जी कुछ कह पाते, चाची जी बीच में ही बोल उठी--

" अरे माहिरा,,,क्या कहते ये,,, और किस मुँह से कहते कि हमारी बिटिया का बलात्कार हुआ था?!!छि: यह भी कोई मुँह से कहने वाली बात है?! वैसे ही क्या कुछ कम जगहँसाई हुई है,,, जो और करा आते?!"

" परंतु,,, चाची जी,,, मैं तो कभी शादी नहीं करना चाहती थी,,, आप ही लोगों ने कहा कि ये लोग काफी समझदार है सुलझे हुए और आधुनिक हैं,,,इन सबबातों से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता,,, तभी,, हम और पापा इस शर्त पर राज़ी हुए थे रिश्ता करने को कि आप इन लोगों के सामने कि-- कुछ भी छिपाया नहीं जाना चाहिए--- फिर आपने हमसे झूठ क्यों बोला!?" माहिरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था!


" अरे, बेटी,,, समझा कर! अगर सारी बातें इनको बता देता तो,,, ये तो क्या,,, इस दुनिया का कोई भी लड़का तेरे से शादी करने को कभी तैयार नहीं होता! दूसरों के जूठन को भला कौन मुँह लगाता है?!"


" जूठन---!!" इसके आगे माहिरा कुछ न कह पाई। 


शब्दों ने फिर उसके जुबान का साथ न दिया। वाणी ने मौनव्रत धारण कर लिया! वह अवाक् एक टक अपने सगे चाचा और चाची को देखने लगी।


शादी उसकी जरूरत न थी कभी। वह अपने गुज़ारा भर स्वयं कमा सकती थीं। 

इन्हीं दोनों ने ही बार- बार माहिरा से यह कह कर उसे शादी के लिए तैयार करवाया था ," एक बार तेरी शादी हो जाए,, फिर सब ठीक हो जाएगा। मैं सब ठीक कर दूँगा,,,भरोसा रख मुझ पर!" चाचा जी ने कितना भरोसा दिलाया था उन दोनों को उस दिन। तब क्या पता था,,,

माहिरा कुछ देर चुप रह कर फिर बोली--


" मै तो पहले ही शादी करना नहीं चाहती थी---!"


" हाँ तुम्हें क्या,,, मत करो शादी,,,, जिस खान दान की बेटी एकबार प्रदूषित हो गई हैं, उनसे कौन भला रिश्ता जोड़ना चाहता है? 

अब हमारी भी तो बेटियाँ हैं,,, कभी उनके बारे में भी सोचा है---?" चाची गुस्से से चीखती हुई बोली। उनके नाटक का अब पर्दाफाश हो चुका था!


"तो यह सब स्वाँग आपने अपनी बेटियों के खातिर रचा था?" माहिरा सच को जानकर फिर से हतवाक् हो गई।


जिस स्नेहिल चाचा की छत्रछाया में वह बड़ी हुई थी। उन्हें माहिरा इस समय पहचान नहीं पा रही थी। ये जो पितृसत्तात्मकता के ध्वजाधारी स्वार्थी पुरुष और रमणी उसके सामने खड़े थे। ये दोनों उसके चाचा-चाची नहीं हो सकते थे!


स्वार्थ का मुखौटा अब भलीभाँति उतर चुका था। इन दोनों के लिए ही माहिरा और उसके माता- पाता का अपमान कोई अर्थ नहीं रखता था। इन्हें अगर कोई चिंता थी तो वह यह कि अपनी बेटियों के हाथ कैसे पीले करेंगे। और उसी के इंतज़ाम में उनको माहिरा की जिन्दगी से खेलने से भी तनिक भी संकोच न हुआ!

यहाँ पर यही सब बातें हो रही थी कि किसी पुरुषकंठ की जोर से आर्त -चित्कार मंडप की ओर से आया तो सबने पलट कर उधर देखा।


तीन गुंडे माहिरा के पापा को डंडे से पीट रहे थे जबकि वे अब भी हाथ जोड़े उन लोगों से शांत हो जाने का व्यर्थ अनुरोध किए जा रहे थे।

माहिरा दौड़कर अपने पापा को बचाने के लिए उनके पास गई। परंतु उससे भी पहले आशीष वहाँ पर पहुँच गया था।


उसने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से लाठी चलाने वाले के हाथ से लाठी छिन ली और उसी लाठी को बारी- बारी से बाकी दोनों के चेहरे के सामने घुमाते हुए उनको डराते हुए बोला--


" खबरदार,,, अब एकदम भी और आगे न बढ़ाना।" 


आशीष के दाहिने हाथ में बैंडेज बँधा था, लेकिन फिर भी बाएँ हाथ से उसने इतनी तेजी से लाठी चलाया कि तीनों गुंडे भी थोड़ी देर के लिए सहम गए थे!


इतने में घटना स्थल पर पुलिस आ गई और उपद्रवकारियों को पकड़कर ले गईं।


माहिरा के पापा के सर पर कोई चोटें आई थीं। जहाँ से खून की धार बहने लगी थी। चीकू और अन्य दोस्तों ने मिलकर उन्हें एक सोफे पर लिटा दिया। फिर चीकू कहीं से फर्ट- एड का सामान भी जुगाड़ लाया। 


निमंत्रितों में से दो डाॅक्टर साहब निकल आए थे जिन्होंने माहिरा के पापा मिस्टर सक्सेना की तुरंत दवा- पट्टी कर दीं।


थोड़ा सा फुर्सत पाकर अब आशीष ने विवाह मंडप के इधर- उधर नज़रें दौड़ाई तो देखा कि सारा का सारा मंडप एक दम तहस- नहस हो चुका था। जगह- जगह पर टूटी फूटी कुर्सियाँ और सोफाएँ पड़ी थी। सुकुमार फूलों की मालाओं को बुरी तरह से पैरों तले कुचला गया था।

खुशी का माहौल पलभर में मातम में बदला जा चुका था।


वह इन्हीं सब चीजों को गौर से देख रहा था कि तभी किसी ने धीरे से उसके कंधे पर एक हाथ रक्खा। आशीष ने तुरंत मुड़कर देखा तो वह चीकू था।


" देख, आशीष क्या सोचकर यहाँ पर आए थे,,, क्या से क्या हो गया!"

" हम्म्मम।" आशीष को समझ में नहीं आया कि अब और उसे क्या कहना चाहिए!

" चल आ तू मेरे साथ। अंकल जी उठकर बैठ गए हैं। चल देखें आगे और क्या कर सकते हैं हम! चल कर पूछते हैं,,,उनसे। नहीं तो सबको घर जाने को कहते हैं!"

" हाँ, हाँ चल!"

अंकल सक्सेना को घेरकर इस समय चालीस- पचास लोग खड़े थे। इसी समय पंडितजी वहाँ आकर खड़े हो गए और बोले,

" जजमान, शादी का मुहुर्त निकला जा रहा है। अगर इस मुहुर्त में बिटिया की शादी न हो पाई तो उसे जिन्दगी भर कुँवारा रहना पड़ेगा।"


"पर अब कौन मेरी माहिरा से शादी करेगा? जितनी बदनामी होनी थी वह तो हो चुकी। अब मैं किस मुँह से किसी से कहूँ कि मेरी बेटी से शादी कर लो!"


पल भर के लिए सन्नाटा पसर गया। बात तो सच थी, अब कौन सारी रामकथा जानने के बाद एक बलात्कारी लड़की से शादी करने के लिए तैयार होगा!


क्रमशः


1 likes

Published By

Moumita Bagchi

moumitabagchi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • j.tomar · 2 years ago last edited 2 years ago

    बहुत ही सुंदरता से समाज के यथार्थ को सामने रखा है/ बहुत बढ़िया, बधाई

Please Login or Create a free account to comment.