माँ की अलमारी, भाग-7 ( अंतिम भाग)

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 11 Jun, 2021 | 1 min read

" भैया, अनिकेत! आप?"

" हाँ बहना, माफी माँगने आया हूँ, तुमसे! हमने तुम पर बड़ा भारी अन्याय किया है। तुम्हें बिन बताए ही तुम्हारा हक़ छिन लिया है!!माफी के लायक तो हम है नहीं, पर क्या,,, फिर भी, तुम माफ कर पाओगी,, हमें?"

" सुहानी भी बहुत दुःखी है। वह भी मेरे साथ यहाँ आना चाहती थी पर उसकी तबीयत अचानक खराब हो गई--इसलिए,," अनिकेत ज़मीन पर आँखें गढ़ाए हुए बोला।

वह इस समय भी सफेद धोती पहने था। और शरीर के ऊपरी हिस्से पर एक पतली सी चादर ओढ़ रखी थी उसने। पैरों में रबर के चप्पलों के अलावा उसके पहनावे में और कोई विशेष आडम्बर न था!

" अनिकेत,,, कैसे हो?"

" अरे रवीन्द्रण अंकल, आप?!! मैं ठीक हूँ। आप कैसे हैं?"अनिकेत अंकल को कमरे से बाहर निकलते देख कर थोड़ा सा हैरान था। पर उससे भी ज्यादा हैरान शायद मायरा थी, यह देखकर कि अंकल और अनिकेत पूर्व परिचित हैं!

" मैं अच्छा हूँ बेटा। सुहानी बहू की तबीयत ज्यादा खराब है, क्या?" " नहीं अंकल, वह उसको जरा सी थकान है। आजकल जल्दी ही बेचैन हो उठती है,, बस वही है,, डाॅक्टर ने उसे बेडरेस्ट के लिए बोला है।"

" हाँ बेटा, ऐसी हालत में यह तो होता ही है, पूरा ख्याल रखना उसका!" " जी---।" रवीन्द्रण इसके बाद मायरा को उदास देखकर खुशी से झूमते हुए बोले,,, " अनिकेत ने तुम्हें खुशखबरी दी है कि नहीं कि तुम अब बुआ बनने वाली हो?" मायरा अब तक अपने पिछले व्यवहार को याद करके शर्म से ज़मीन में गढ़ी जा रही थी। उसे याद आया कि कैसे उसने कल सुहानी का हाथ छुड़ाते समय उसे पीछे धकेल दिया था, जिससे वह सोफे पर गिर पड़ी थी। परंतु इसके बावजूद भी वह मायरा को रोकने उसके पीछे- पीछे गेट तक दौड़ी आई थी!

" कितने भले लोग हैं ये। रिश्ते बनाने के हाथ बढ़ा रहे हैं, और मैं हूँ कि उनसे भाग रही हूँ!" मायरा को जैसे ही मालूम पड़ा कि सुहानी माँ बनने वाली है, उसका मन और भी ग्लानि से भर उठा था! उसने दौड़कर अनिकेत के पैर पकड़ लिए--

" भैया, मैं सचमुच बहुत अभागी हूँ,,, आप लोगों का इतना स्नेह पाकर भी आपको ही संदेह कर बैठी थी। पर सच कहती हूँ आपसे कि आपके बारे में आज से पहले मैं कुछ भी नहीं जानती थी। माँ ने कभी भी आपका ज़िक्र न किया था। "

"बहुत बड़ी भूल हुई थी मुझसे कल,,, बिना आपकी बात पूरी सुने ही आपको इतना बुरा भला कह दिया था। मुझे माफ कर दीजिए,, प्लीज!"

" अरे पगली,,, देख मैं मातृदशा में हूँ! ऐसी शोक की हालत में पैर नहीं छूते। उठ जा रे! ---अंकल जी, अब आप ही इसे समझाइए न! पैर ही नहीं छोड़ती है, पगली!"

और यह कहकर अनिकेत अपना हाथ मायरा के सिर पर रख कर अत्यंत स्नेहपूर्वक फेरने लगा! रवीन्द्रण यह सब देखकर केवल हौले से मुस्कुराए, पर कुछ बोले नहीं। वे वहीं खड़े- खड़े भाई- बहन के मिलन की इस दृश्य को देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे! और सोच रहे थे कि विमला के जीते जी यह दिन क्यों न आया? इसके बाद अनिकेत ने मायरा को बलपूर्वक उठाकर गले से लगा लिया।

दोनों ही एक साथ प्रेमाश्रु की बारिश में भींग उठे। कुछ देर के बाद अनिकेत रुँधे हुए स्वर में बोला, " कल माँ का श्राद्ध है। सारा काम मैं अकेले कैसे कर पाऊँगा?तुम चलोगी, मेरे साथ? " सुहानी ने बार- बार अनुरोध किया है कि तुम्हें साथ लेता आऊँ! पर फैसला तुम्हारे हाथों में है!" मायरा की आँखें अभी तक सजल थी, पर वह अपने भाई के इस आह्वान को और ठुकरा न कर सकी। इसलिए हामी में अपनी गर्दन हिला दी। ***********************************************

उपसंहार: दो वर्ष बाद!

अनिकेत , सुहानी और उनका साल भर का नन्हा सा बेटा राहुल आज सुबह- सुबह तैयार होकर मायरा को छोड़ने एयरपोर्ट पर आए हुए हैं! मायरा की अमरीका जाने वाली फ्लाइट 9:40 को छूटेगी और शाम तक फ्रैन्कफ्रूट पहुँचेगी! फिर कल सुबह दूसरी फ्लाइट में मायरा को फ्रैन्कफ्रूट से यू एस के लिए रवाना होना है! मायरा ने पिछले वर्ष इंजीनियरिंग में अपने काॅलेज में टाॅप किया । उसके बाद एक साल तक एक कंपनी में जाॅब करने के उपरांत इस समय अपनी माँ का अधूरा सपना पूरा करने और एम एस करने यूएस जा रही है!

मायरा ने आज वही पर्पल वाली साड़ी पहन रखी है जो उसकी माँ विमला ने बतौर उसके बर्थडे के लिए खरीदा था, पर वे स्वयं अपने हाथों से कभी पहना न पाई थी! इसलिए माँ की आशीर्वाद के साथ मायरा अपना नया जीवन शुरु करना चाहती है! पर पता नहीं रवीन्द्रण अंकल क्यों नहीं आए अब तक? मायरा के आज की इस कामयाबी के पीछे उनका भी कम योगदान नहीं है। माना कि एम आई टी में दाखिला उसे स्वयं के बलबूते पर मिला है, परंतु स्काॅलरशीप हेतु आवेदन करना, अमरीका प्रवास में रहने-खाने और ट्यूटशन का इंतज़ाम करना, पार्ट- टाइम जाॅब आदि सब की प्लानिंग अंकल जी की ही थी। अंकल जी अब तक कुँवारे ही हैं।

माँ के जाने के बाद मायरा और अनिरुद्ध दोनों के वे अभिभावक और शुभचिंतक बन कर सदा साथ में रहे हैं। उनके जैसा हितैषी आज इन दोनों के लिए कोई और नहीं हैं! उस दिन विमला के श्राद्ध के उपरांत बुआ जी को गाँव भेजकर मायरा अनिरुद्ध के परिवार के साथ नाना जी के घर पर पर्मानेन्टली शिफ्ट हो गई थी। तब से दोनों भाई - बहन साथ -साथ रहे है।

सुहानी को भी उस समय किसी अपने की जरूरत थी, परंतु उसके परिवार में कोई न था। अनिकेत से शादी से पहले वह अनाथाश्रम में पली बड़ी थी! मायरा के रूप में उसे भी एक बहन मिल गया था!

नानाजी के घर शिफ्ट होते समय मायरा अपने सभी सामानों के साथ वही "माँ की अलमारी" भी साथ लेकर आई थी। उसका मानना था कि इस अलमारी की वजह से ही उसे अपना यह प्यारा सा परिवार मिला। अगर उस दिन अलमारी को ठीक करने का ख्याल उसके मन में न आता तो न उसे अनिरुद्ध की वह चिट्ठी मिलती और न उसका यह परिवार! राहुल के आने के बाद तो इनके भाई- बहन- भाभी के रिश्ते को और मजबूती मिल गई। सबके सब एक अटूट पारिवारिक बंधन में बँध गए थे।

मायरा को भी पहली बार भरा-पूरा परिवार मिला था। वह भी बहुत खुश थी। लेकिन आज उन सबको छोड़कर जाते हुए उसे बहुत ही दुःख हो रहा था। बार- बार दिल मसोस कर रह जाता था,पर जाना भी जरूरी था! मायरा बार- बार अपनी कलाई घड़ी में समय देख रही थी। और कितना साथ रह गया?!!

उसके फ्लाइट छूटने का समय अब नज़दीक आ गया था। पर रवीन्द्रण अंकल अब तक नहीं पहुँचे थे! कल उन्होंने कहा तो था कि मायरा को विदा करने जरूर आएंगे। मायरा ने राहुल को गोदी में लेकर प्यार किया। अनिकेत भैया से सबका अच्छे से ख्याल रखने को कहा और फिर सकुचाकर सुहानी के कान में उसने कहा--

" भाभी, मंगला को बोलकर आप जरा मेरी उस अलमारी की रोज़ एक बार सफाई करा देना।"

" हाँ बाबा, जानती हूँ, तुम्हारी उस कीमती चीज़ का,, मैं पूरा देखभाल करूँगी। तुम बेफिक्र होकर जाओ!" इतना कहना था कि दोनों ननद और भाभी संग- संग खिलखिला पड़े। तभी दूर से रवीन्द्रण अंकल आते हुए उनको दिखाई दिए। परंतु यह क्या-- हमेशा कोट पतलून पहनने वाले रवीन्द्रण अंकल आज लाल किनारी वाली सफेद धोती और सफेद मलमल का कुर्ता पहनकर एयरपोर्ट आए थे!

" भाभी, उधर देखिए,,, रवीन्द्रण अंकल ने यह कैसा हुलिया बना रखा है?!" मायरा दाँतों तले अपना ऊँगली दबाते हुए बोली!

रवीन्द्रण के निकट आने पर इस रहस्य का भी खुलासा हो गया। वे आजीवन नास्तिक थे परंतु आज सुबह- सुबह नहा धोकर मंदिर चले गए थे। और मायरा के उज्ज्वल भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर आए थे! उन्होंने आते ही सबसे पहले ईश्वर को अर्पित फूल मायरा के सर पर फिराया। फिर आशीर्वचन में कुछ बुदाबुदाकर उसे प्रसाद का लड्डू खिलाया! उनके इस स्नेह से मायरा की आँखें फिर से एक बार सजल हो उठी। उसका बिलकुल मन नहीं हो रहा था, इतने प्यारे लोगों को छोड़कर किसी और मुल्क में जाने की।

" अरे,,, मायरा बेटा,,, क्यों रोती हो,,, बस दो ही तीन बरस की तो बात है,,, देखना,, यह वक्त भी जल्दी बीत जाएगा!!,,,"

"तुम्हारे जाने के बाद मैं भी सोचता हूँ कि बोरिया- बिस्तर लेकर अनिरुद्ध के घर शिफ्ट हो जाऊँ,,, हा हा ।"

"चलो, चलो, बेटे,,,अब देर न करो,,, वर्ना फ्लाइट मिस हो जाएगी!"

" और सुनो टिकट,हाँ-- पैसे, मोबाइल आदि ठीक से दुबारा चैक कर लो,,, अरे ,, क्यों सोचती हो,,,हम विडियो पर रोज़ बातें किया करेंगे,, न,,, अनिकेत अब तुम ही समझाओ इस पगली को!" इतना कह कर रवीन्द्रण भी छिपकर अपने आँसू पोछने लगे! एयरपोर्ट में फ्लाइट के जाने का अनाउन्समेन्ट होने लगा था--। भाई- भाभी और पितृ सम अंकल से गले मिलकर और राहुल को प्यार से पुचकाकर मायरा तब भारी मन से उस ओर चली-- जहाँ एक सुनहरा भविष्य बाहें फैलाए उसकी स्वागत को खड़ा था!

( समाप्त)  

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Moumita Bagchi

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Charu Chauhan · 2 years ago last edited 2 years ago

    सकारात्मक अंत 👏

  • Ruchika Rai · 2 years ago last edited 2 years ago

    वाह

  • Moumita Bagchi · 2 years ago last edited 2 years ago

    थैंक यू चारू एवं रुचिका जी🙏🥰😍

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