एक अधूरा ख्व़ाब़ (Written for paperwiff tv)

एक अधूरा ख्वाब

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 27 Feb, 2021 | 1 min read

जिन्दगी में जितने भी ख्वाब हुए पूरे,

पर उससे भी कहीं अधिक रह गए हैं अधूरे!


बचपन में देखा था मैंने एक सपना,

कि सफेद कोट पहनकर,

मरीज़ों की सेवा में, कुछ योगदान करूँ अपना।

किस तरह बन गया था, यह मेरा सपना,

आज, इतने वर्षों के बाद, कुछ याद नहीं है उतना!

शायद किसी फिल्म या धारावाहिक का मुझ पर असर हुआ था!

किसी डाॅक्टर का किरदार, मेरे अल्हड़ मन को भा गया था!


जिन्दगी में जितने भी ख्वाब हुए पूरे,

पर उससे भी कहीं अधिक रह गए हैं अधूरे!


यही सब सोचकर दसवी के बाद विज्ञान का विषय मैंने चुना था,

MBBS एंट्रेस एग्ज़ाम को अपना लक्ष्य गुना था!

सब कुछ ठीक- ठाक चल रहा था,

पर मेरे अभियंता पिता को शुरु से ही था यह नापसंद

अपनी पसंद के साथ ही साथ उन्होंने

गणित का विषय भी मुझ पर थोपा था!

अच्छा लगता था उनको अपना वह सपना

मुझ सी अबला पर थोपना,

कहते थे जरूरी होता है,

काटने से पहले वृक्ष को रोपना।


जिन्दगी में जितने भी ख्वाब हुए पूरे,

पर उससे भी कहीं अधिक रह गए हैं अधूरे!


माताजी का सपना मगर ज़रा इससे खास था

उन्हें थी ख्वाहिश केवल एक पुत्र रत्न की,

कैरियर- वैरियर से उनका न था ज्यादा वास्ता!

सो इंतज़ार अगर थी उनको किसी चीज़ की

तो वह थी अपने जल्दी सास बन जाने की,

बस बेटी ग्रेजुएट हो जाए,

तो उसके हाथ तुरंत ही पीले कर दिए जाएंगे,

दामाद के रूप मे तब उन्हें एक अदद पुत्र मिल पाएँगे।

बस यही एक ख्वाब दिन- रात उनकी आँखों में

बसा करता था!

जो मेरे सपनों पर भी भारी पड़ता था!


जिन्दगी में जितने भी ख्वाब हुए पूरे,

पर उससे भी कहीं अधिक रह गए हैं अधूरे!


खैर, शादी -ब्याह की दिल्ली अब तक दूर थी,

उससे पहले ज्वाइंट की परीक्षा clear करनी थी।

खूब पढ़े थे एनसीआरटी की किताबें,

और brilliant tutorials की मोटी- मोटी study materials सारे,

दो वर्षों तक,

साथ में करना था बारहवीं का भी preparation भी।

पर हाय रे किस्मत,

ज्वाइंट के दिन पूने मेडिकल्स का भी डेट परा था।

मन दिग्भ्रमित हो रहा था,

कि कौन- सी परीक्षा में बैठे?

पूना, दिल्ली, कलकत्ता, बनारस सब जगह की परीक्षाओं का फार्म भरा था,

पर एक अदद सीट न इस बदनसीब के हाथ आया था!

पर तब भी आशा बंधी बंगलौर के मेडिकल कालेजों का!


जहाँ रहना पड़ता था विद्यार्थियों को होस्टल में।


MBBS न सही पर BHMS तो मिल ही चुका था!


लेकिन पिताजी को मेरे होस्टल में रहना न मंज़ूर हुआ।

बोले माता- पिता, जो भी पढ़ना हो घर में रहकर पढ़ो ,

हम मर गए हैं जो होस्टल मैं रहना चाहते हो?


इस तरह मिट गए खाक में मेरा

वह मेडिसिन पढ़ने का सपना।

बड़े जतन से पाले थे मैंने यही एक अदद ख्वाब अपना!


जिन्दगी में जितने भी ख्वाब हुए पूरे,

पर उससे भी कहीं अधिक रह गए हैं अधूरे!


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