भेल पूरी सा'ब आ गए

किसी को चिढ़ाने पर वह कैसा महसूस करता है।

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 25 Jul, 2020 | 1 min read

बात उन दिनों की है जब मेरे पिताजी B H E L में सेवारत थे। BHEL यानी भारत हेवी इलैक्ट्रिकल लिमिटेड जिसे हम आसानी और प्रयत्न लाघव हेतु "भेल" कहा करते थे। इस समय भेल कंपनी से जुड़ी एक मज़ेदार किंतु दुःखद किस्सा याद आ रहा है जिसे मैं आज आप सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ।

कहते हैं कि किसी के लिए जो मज़ा है वह कभी- कभी दूसरे के लिए सज़ा समान हो जाता है! यह कहानी भी कुछ वैसी ही है। मज़ाक में हम बहुत कुछ कह जाते हैं, लेकिन क्या कभी यह सोचते हैं कि जिसपर बीतती हैं उनको कैसा महसूस होता है?

एकदिन मेरे पिताजी दफ्तर से घर आकर बोले,

" आज दिल्ली ऑफिस में एक बंदे ने ज्वायन किया है, उसका नाम है-- जयदेव पुरी। परंतु ज्वाइनिंग के साथ- साथ किसी ने उससे कहा--- अब भेल में आया पुरी। हा हा हा।"

इसके बाद सबलोग उस सज्जन को " भेलपुरी" के नामसे पुकारने लगे थे। पिताजी भी रोज़ घर आकर भेलपुरी सा'ब के नए कारनामों के किस्से सुनाया करते थे। मेरा भी दिन भर का मनोरंजन अब उन्हीं किस्सों के जरिए होने लगा था। आखिर,मुझे भी तो अपने स्कूल के दोस्तों को कुछ मज़ेदार सुनाना होता था!!

बात इसके कई महीने बाद की है।

कुछ दिनों से मैं यह देख रही ही थी कि पिताजी आजकल घर आकर गुमसुम से रहा करते हैं। भेलपुरी के किस्से भी नहीं सुनाते हैं! एकदिन जब मुझसे रहा न गया तो मैंने उनसे पूछा कि,

" पापा, आज भेलपूरी के कोई किस्से सुनाइए न?"

मेरी बात सुनकर पिताजी थोड़ी देर शून्य को ताकते रहे। फिर वे बोले,

" बेटा बहुत बड़ी गलती हो गई हैं, हमसे। ऐसा किसी के साथ नहीं करना चाहिए।"

" पापा, क्या हुआ है? बताइए न?"

" परसो दोपहर को लंचटाइम में वे भेलपुरी सा'ब सबके लिए भेल और पूरी लेकर आए! हम सब चकित थे। पूछने लगे कि बात क्या है? यह दावत क्यों दी जा रही है? परंतु साहब ने सबसे विनयपूर्वक अनुरोध किया कि उसे पहले खा लें।

सबका खाना समाप्त होने पर उन्होंने हाथ जोड़कर सबसे कहना शुरु किया,

'Ladies and gentlemen ,अभी- अभी जो आपने खाया, उस चीज़ को भेलपुरी कहते हैं। और मेरा नाम है जयदेव पुरी, कोई भेलपुरी नहीं! Please don 't get confused!आपके मनोरंजन के लिए और भी कई अन्य तरीके हो सकते हैं, कृपया मेरे साथ वह भद्दा मज़ाक आइंदा से न करें।

और यह कहते हुए उनकी आँखों से आँसू निकल आए थे।

उसी दिन पूरे दफ्तर के लोगों को पहलीबार यह अहसास हुआ कि मज़ाक में कही हुई बातों से लोग कितने hurt हो सकते हैं।"

इसके बाद पिताजी मुझसे बोले,

" बेटा, एकबात का हमेशा ख्रयाल रखना कि आपके शब्दों से कभी किसी को कष्ट न पहुँचे।"

मैंने भी इसके बाद से यह बात हमेशा के लिए गाँठ बाँध ली थी।


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  • Akhilesh Upadhyay · 3 years ago last edited 3 years ago

    शीर्षक पढ़कर ही .... काफी दिलचस्प कहानी प्रतीत हो रही थी....और हां वास्तविक रूप में भी ये दिलचस्प ही है।।।।

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत धन्यवाद आपका, अखिलेश जी🙏

  • Varsha Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सीख देती कहानी बधाई

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you, Varsha ji🙏

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