तेरे बिना भी क्या जीना- 6

यह अचानक क्या हो गया?!! क्या इस हादसे से उभर भी कभी पाएगा हमारा हीरो?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 01 Mar, 2022 | 1 min read

"बम्मम धूम्मम् धड़ाम्म्मऽऽ $$$ऽऑऑऑम्मम् !"


पास ही कहीं एक तीव्र धमाकेदार विस्फोट सा हुआ। वह आवाज इतनी तेज और ऐसी अचानक थी कि आशीष इस समय जिस पेड़ के पीछे खड़ा था वह समूल थरथराने लगा। 


रात के समय विश्राम लेती पक्षियाँ भी उस आवाज़ से भयभीत होकर इधर- उधर पंख फड़फड़ाने लगी थी।


उस जोरदार आवाज़ के साथ ही पेट्रोल जलने का एक तीक्ष्ण गंध भी आशीष के नाक के भीतर दाखिल हुआ था।


क्षण भर में उसने अपनी गर्दन घुमायी तो देखा कि पीछे का आसमान प्रकाशमान हो उठा है। वह सब कुछ भूलकर उसी दिशा में भागा, यह देखने के लिए कि आखिर वहाँ पर हुआ क्या है? 

हड़बड़ाहट में आशीष अपनी पैंट की ज़िप भी ऊपर करना भूल गया था। उसी हाल में वह दौड़ गया हाइवे की ओर!!

अभी पाँच मिनट पहले वह यहीं पर था। रात का सन्नाटा उस समय चारों ओर बिखरी पड़ी थी। परंतु पल भर के अंदर ही मानो किसी ने इस स्थान की कायापलट कर दी थी।


ओह!!! कितना दर्दनाक दृश्य था! जिस सुजानसिंह की गड्डी में वह यहाँ तक पहुँचा था वह सड़क के किनारे औंधी पड़ी हुई थी, जिसमें से धू-धू करती आग की लपटें बाहर निकल रही थी।


उसके पास ही एक ओर भाड़ी भरकम ऑयल टैंकर भी पड़ा हुआ था जो इस समय पलट चुका था और उसमें से निकलने वाली भयानक आग की लपटें रात के आसमान का रंग बदल डाल रही थी।


आशीष थोड़ा आगे बढ़ आया तो पाया की सुजानसिंह की झुलसी हुई देह बीच सड़क पर गिरी हुई है। इससे लगभग एक हाथ की दूरी पर एक और छिन्न- भिन्न अनजान सी देह भी उसे पड़ी मिली, जो शायद उस टैंकर के चालक का रहा होगा। 


आशीष अब उस पंचर मैकनिक को ढूँढ रहा था। 

आश्चर्य!! घोर आश्चर्य!! उसका खपरैल का घर लेकिन इस हादसे से अछूता सड़क के दूसरे किनारे पर ज्यों का त्यों खड़ा था!!


आशीष को अब बात समझते देर न लगी।

टैंकर का चालक किसी वजह से अपनी नियंत्रण खो चुका था और आकर उसने सड़क के किनारे खड़ी सुजानसिंह की गाड़ी पर टक्कर मार दी। गति तेज़ होने के कारण वह टैंकर उस गाड़ी को अपने साथ घसीटता हुआ सड़क के दूसरी ओर ले आया और फिर वहीं पर पलट गया। 

इसके बाद उस टैंकर में मौजूद जलनशील तेल में आग लगते देर न लगी। फिर जो कुछ हुआ वह सब इस समय आशीष के आँखों के सामने था।

आशीष उस खपरैल की ओर बढ़ने लगा ताकि उस मैकनिक को ढूँढकर पूछ सकें कि उसने सुजानसिंह को समय रहते चेताया क्यों नहीं था?

तभी उसे सुजान की गड्डी के नीचे एक जोड़ी आदमियों के नंगे पैर दिखाई दिए!!


आशीष ने पहले तो कई "मैकनिक साहब" कह कर उसे पुकारा। जब उस ओर से कोई जवाब न आया तो उसने झुक कर उसके पैर पकड़कर उसे गाड़ी के नीचे से निकालने की कोशिश की। ताकि, अगर अभी भी उस देह पर कुछ जान बची हो तो कुछ मदद की जा सकें!


जैसे ही आशीष नीचे झुका तो उसके कंधे पर लटकी उसका लैपटाॅप बैग सरकर सड़क पर गिर गया। 

आशीष को पहली बार यह अहसास हुआ कि वह तब से उस बैग को अपने कंधे पर लटकाए घूम रहा है। 

अरे हाँ, इसी में तो उसके पासपोर्ट, वीसा और जरूरी कागज़ात रक्खे थे!! बाकी उसका सारा लगेज़ तो गाड़ी के अंदर ही रक्खा था! ओह-- !!!


न, न ,,,वह मैकनिक भी अब नहीं रहा! वह भी इस हादसे का एक शिकार हो चुका था! उसका चेहरा बुरी तरह झुलस चुका था। उसके कपड़ों से आशीष को पता चला कि यही वह आदमी है जिसने उसे बैठने के लिए अपनी कुर्सी दी थी!!


आशीष ने उसकी झोंपड़ी की ओर देखा। वहाँ पर वे दोनों बेंत की बनी कुर्सियाँ ज्यों की त्यों पड़ी हुई थी! आशीष चल कर वहाँ तक गया और यंत्रचालित-सा उनमें से एक पर बैठ गया!


तभी एकायक उसे कुछ याद आया और इसके साथ ही मानो उसे एक ऐसा झटका लगा कि वह तुरंत फिर से खड़ा हो गया!


वह भी तो थोड़ी देर पहले यहीं पर था!! मुश्किल से पाँच मिनट के लिए वह पेड़ के पीछे गया था!

अगर हल्का होने के लिए उसने वही समय न चुना होता तो इस समय उसकी बाॅडी भी यहीं पर कहीं गिरी होती! 


यह सोचते ही एक अजीब सी अनुभूति की सिहरन उसकी नसों में दौड़ने लगी!!

अगर वह यहाँ से न गया होता तो-----! 


जीवन की क्षणभंगुरता की ओर शायद उसका पहली बार ध्यान गया। पल भर में ही सब कुछ हो गया था!! और वह जो इस भयानक हादसे में बच गया है-- यह किसकी इच्छा से?!!!

अनजाने में ही उसकी आँखें एक बार फिर आसमान की ओर उठ गई। इस समय उसकी आँखों में दो बूँद आँसू भी थे। 


कदाचित्, ऐसे समय पर ही हम उस सर्वशक्तिमान को याद करते हैं। इस तरह की कुछ दैवी घटनाएँ ही हमें अपनी नश्वरता और ईश्वर के होने का अहसास करा जाती है।


नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति भी ऐसी परिस्थिति में पड़ कर अपने सभी पुराने विश्वासों को ताक पर चढ़ाकर ईश्वर का एक बार धन्यवाद जरूर कर बैठता है।


आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति का उपज आशीष भी पूजा- पाठ ईश्वराधना में ज्यादा विश्वास न रखता था। समय ही कहाँ था उसके पास? 

सुबह से शाम तक बिज़नेस चलाने और पैसे कमाने की फिराक में वह लगा रहता था। परंतु अब उसे लग रहा था कि शायद हर किसी को थोड़ा सा समय अपने ईश्वर के लिए भी निकाल लेना चाहिए! अपने ही खातिर! यूँ ज़िन्दा रहने के वास्ते!!


दूर से अनेक लोगों के इस ओर दौड़करआने का शोर सुनाई दे रहा था। 

साथ ही आगे बढ़ती हुई कुछ गाड़ियों का फ्लैशलाइट भी इस समय आशीष के चेहरे पर आकर चमकने लग गया।


दिन भर का थका हारा, इस दर्दनाक हादसे को देख कर अपने ज़िन्दा होने का संपूर्णतः अहसास करने के बाद अब आशीष की सारी स्नायु-तंत्रियाँ धीरे- धीरे शिथिल पड़ने लगी थी! 


वह सड़क के किनारे , उस झोंपड़ी के समीप मूर्छित होकर गिर पड़ा!


क्रमशः


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