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हिन्दी की boliyaan

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 14 May, 2020 | 1 min read

हिन्दी भाषा का इतिहास-4

हिन्दी की बोलियाँ-2

4) ब्रज भाषा :- ब्रजभाषा की बोली"ब्रज" है। प्राचीन शूरसेन प्रदेश ही वर्तमान ब्रजमण्डल का क्षेत्र है। विशुद्ध रूप में मथुरा, आगरा और अलीगढ़ ब्रज का क्षेत्र है। साथ ही इटावा, कानपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर, एटा, बुलंदशहर, मैनपुरी, बदाऊँ, में भी ब्रजभाषा बोली जाती है। राजस्थान में भरतपुर, धौलपुर तथा मध्यप्रदेश के पश्चिमी ग्वालियर में ब्रजभाषा का मिश्रित रूप मिलता है, ब्रजभाषा मध्यकालीन हिन्दी साहित्य की प्रमुख काव्यभाषा थी। सूरदास और तुलसी ने इसे अमर कर दिया है।

5) बुंदेली:- यह बुंदेला राजपूतों के क्षेत्र बुन्देलखंड की बोली है। अपने विशुद्ध रूप में बुंदेली उत्तरप्रदेश की झाँसी, जालौन और हमीरपुर में बोली जाती है। साथ ही मध्य प्रदेश के भोपाल, ग्वालियर, दलिया, सागर, टीकमगढ़, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा और बालाघाट जिलों के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती हैं।

6) कन्नौजी:- डाॅ॰ ग्रियर्सन ने कन्नौजी को ब्रज भाषा की उपबोली माना है, इसका मुख्य क्षेत्र कन्नौज ( उत्तर प्रदेश) है। फर्रुखाबाद, इटावा, शाहजहाँपुर, हरदोई, पीलीभीत के क्षेत्र में कन्नौजी का प्रभाव है।

7) अवधी:- अवधी, अवध प्रांत की बोली है। इसका क्षेत्र व्यापक है। उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले को छोड़कर लखनऊ, बाराबंकी, लखीमपुर, खीरी, गोंडा, बहराइच, रायबरेली, सीतापुर, उन्नाव, फैजाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर में अवधी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त जौनपुर, मिर्जापुर के पश्चिमी भाग तथा फतेहपुर और इलाहाबाद के कुछ क्षेत्रों में भी अवधी प्रचलित है।

अवधी को "कोसली" भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे " बैसवाड़ी भी कहते है। किंतु बैसवाड़ा अयोध्या का एक भाग था। अतः वहाँ बोली जाने वाली" बैसवाड़ी" अवधी की उपबोली है।

अवधी में प्रचुर साहित्य की रचना हुई है। मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत में पूर्वी अवधी का रूप देखने को मिलता है, जबकि तुलसीदास के रामचरितमानस में अवधी का पश्चिमी रूप देखने को मिलता है।

तुलसीदास ने अवधी को परिष्कृत कर उसे साहित्यिक काव्यभाषा के रूप में नई पहचान दी। उनकी यह अवधी खड़ी बोली के अत्यंत निकट है। डाॅ हरदेव बाहरी का कहना है," उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों और संस्कृत के अवधीकृत शब्दों का बाहुल्य है। इनसे भाषा संपन्न हुई है, उसमें प्रयोग की लचक और भावों भी अभिव्यक्ति में विविधता के साथ सटीकता आई और उसे साहित्यिक स्वरूप प्राप्त हुआ। तुलसीदास कहीं कहीं लोकभाषा के स्तर तक अवश्य उतरे हैं, परंतु सामान्य रूप में उनकी अवधी शिष्ट, भावप्रधान और प्रौढ़ है।"

8) बघेली - यह बघेलखंड की बोली है। बघेली का केन्द्र है रीवां ( छत्तीसगढ़)। रीवां के साथ-साथ बघेली दामोह, जबलपुर, मांडला, बालाघाट,में भी प्रचलित है। अवधी और बघेली में काफी समानता है। इसमें साहित्य रचना सीमित है। इसमें पहले कैथी लिपि का प्रयोग होता था। परंतु अब सामान्यतः नागरी लिपि ही प्रयुक्त होती है।

9) छत्तीसगढ़ी- जैसा कि नाम से पता चलता है, छत्तीसगढ़ राज्य की बोली है छत्तीसगढ़ी। यहाँ कभी चेदिवंशीय राजाओं का राज्य था। अतः चेदिसगढ़ से छत्तीसगढ़ बना है। यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ी में वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा, विलासपुर, रायगढ़, खैरागढ़, रायपुर, दुर्ग, नन्दगाँव काँकेर का क्षेत्र आता है। इसमें पर्याप्त लोक साहित्य लिखा गया है।

( क्रमशः)

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