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Devnagri lipi ka vikas

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 19 May, 2020 | 1 min read

हिन्दी भाषा का विकास भाग -8

आज बात करेंगे लिखित हिन्दी की, अर्थात् हिन्दी की लिपि की। आप तो अब तक अवगत हो ही चुके हैं कि हिन्दी की लिपि को देवनागरी कहते हैं। आइए जानते हैं, उसके विषय में आज कुछ तथ्य:-

नागरी लिपि का विकास और मानकीकरण

लिपि किसी भी भाषा का मूर्त रूप होता है। हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि का विकास देश की प्राचीन लिपि ब्राह्मी से हुआ है। ब्राह्मी के दो भेद हैं- दक्खिनी और उत्तरी। उत्तरी ब्राह्मी से गुप्तलिपि विकसित हुई जो गुप्त साम्राज्य की प्रमुख लिपि थी। गुप्तलिपि ही कालांतर में "कुटील लिपि" या 'कुटिलाक्षर' के नाम से विकसित हुई जिससे चार लिपियाँ विकसित हुईं- पश्चिम में अर्धनागरी, पूर्व में पूर्वनागरी, दक्षिण में नंदीनागरी और मध्यप्रदेश में सामान्य नागरी। आगे चलकर सामान्य नागरी ही मध्य भारत में देवनागरी के रूप में विकसित हुई।

देवनागरी नामकरण में विद्वानों के मतभेद है। कुछ इसे नाग लिपि से विकसित मानते हैं, तो कुछ इसे गुजरात के नागर ब्राह्मणों द्वारा प्रयुक्त मानते हैं। एक मत यह भी है कि पाटलिपुत्र को 'नगर' और चंद्रगुप्त द्वितीय को 'देव' कहते थे। देवनगर से विकसित होने के कारण इसे देवनागरी कहा गया। जैसे दक्षिण में नंदीनगर में प्रचलित नागरी लिपि" नंदीनागरी" कहलाई।

देवनागरी को भारतीय संविधान में राजलिपि का दर्जा दिया गया है। हिन्दी के अतिरिक्त मराठी और नेपाली भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। संपूर्ण संस्कृत साहित्य देवनागरी में ही है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग 7-8 वीं शताब्दी में गुजरात के राजा जयभट्ट के एक शिलालेख में हुआ है। यह अधिकांशतः वर्णात्मक लिपि के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

इसकी कुछ विशिष्टताएँ इसे पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं--

1) स्वर और व्यंजन का क्रम अत्यंत वैज्ञानिक है।

2) वर्णों के नाम उच्चारण के अनुरूप है।

3) प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित वर्ण है।

4) इसमें प्रत्येक वर्ण का उच्चारण होता है। कोई वर्ण मूक नहीं है।

5)वर्णों का लिखावट सुंदर और कलात्मक है।

देवनागरी लिपि में सुधार और मानकीकरण का सर्वप्रथम प्रयास सन् 1904 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र ' केसरी' द्वारा किया था। सन् 1926 तक उन्होंने देवनागरी वर्णों के 190 टाइपों का एक फांट बना लिया जिसे " तिलक टाइप" कहते थे। काका कालेलकर ने" अ" की बारहखड़ी का सुझाव दिया जो काफी समय तक प्रचलित रहा।सन् 1935 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन और 1945 में नागरी प्रचारिणी सभा ने भी कुछ सुझाव दिए। सन् 1947 में उत्तरप्रदेश सरकार ने आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने देवनागरी की एकरूपता के लिए अनेक सुझाव दिए।

वर्तमान में भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा देवनागरी लिपि को एकरूपता के लिए मानक वर्णमाला सुनिश्चित की गई है।

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