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Khari boli ka vikas

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 19 May, 2020 | 1 min read

हिन्दी का इतिहास -7

आज हम चर्चा करेंगे खड़ी बोली हिन्दी का कैसे विकास हुआ था। यह तो मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि आजकल हम और आप जिस हिन्दी का प्रयोग करते हैं, वह पहले दरअसल हिन्दी की एक बोली हुआ करती थी। इसका नाम था खड़ी बोली। एक सीमित क्षेत्र से अपनी यात्रा आरंभ करते हुए ,वह कैसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भाषा बन गई-- आइए देखते हैं--


साहित्यिक हिन्दी के रूप में खड़ी बोली का उदय और विकास

शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित खड़ी बोली पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोली है। प्राचीन कुरुप्रदेश से संबंधित होने के कारण इसे " कौरवी" भी कहते हैं। मेरठ, दिल्ली और सहरानपुर के सीमित क्षेत्र में प्रचलित खड़ी बोली वर्तमान समय में हिन्दी के रूप में उत्तर भारत की प्रमुख साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।

खड़ी बोली का साहित्यिक रूप पहली बार अमीर खुसरो की पहालियों में देखा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त गोरखनाथ, रामानंद, कबीर, रैदास, बन्दा नवाज़, स्वामी प्राणनाथ की रचनाओं में भी खड़ी बोली का प्रारंभिक रूप दिखाई पड़ता है। मध्यकाल में खड़ी बोली के नमूने कवि गंग के 'चंद-छंद वर्णन की महिमा' तथा नानक, दादू, मलूकदास, आदि संत कवि तथा रहिम, आलम, जटमल की रचनाओं में मिलते हैं। आदिकालीन खड़ी बोली में जहाँ अपभ्रंश का प्रभाव है, वहीं मध्यकाल में वह इससे मुक्त होने लगती है।

भारतेन्दु युग के आते-आते खड़ी बोली गद्य की भाषा बन चुकी थी, किन्तु काव्य भाषा बनने के लिए प्रयासरत थी।इस समय तक काव्य भाषा ब्रजभाषा ही थी। प्रेस, पत्र -पत्रिकाओं के द्वारा खड़ी- बोली गद्य को बहुत प्रोत्साहन मिला। भारतेन्दु के प्रयासों से खड़ी - बोली काव्य की भाषा बनने लगी थी। महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रयासों से उसका काव्य और गद्य भाषा का रूप स्थिर हुआ और छायावाद तक आते-आते खड़ी बोली साहित्यिक भाषा के रूप में पूर्ण उत्कर्ष पर पहुँची।

प्राचीन खड़ी बोली में तद्भव व देशज शब्दों की प्रधानता है। अपभ्रंश का भी उसपर काफी प्रभाव है। मध्यकाल की खड़ी बोली में फारसी की कुछ व्यंजन ध्वनियों के सहित अरबी- फारसी, तुर्की के शब्द भी सम्मिलित हो गए। अबतक वह अपभ्रंश के प्रभाव से सर्वथा मुक्त हो चुकी थी। आधुनिक काल की खड़ी बोली में संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग से उसमें तत्सम प्रवृत्ति मुखरित होने लगी। अंग्रेजी, डच, पुर्तगाली भाषाओं के शब्दों का समावेश हुआ। गद्य साहित्य में ब्रज भाषा का प्रभाव बना रहा जो भारतेन्दु युग के बाद ही दूर हो सका। द्विवेदी युग में उसका व्याकरणिक रूप भी व्यवस्थित हो गया।

इस तरह खड़ी बोली जो एक सीमित क्षेत्र की बोली थी, वह आज हिन्दी के रूप में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक भाषा बन चुकी है। विश्व भर में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का नंबर तीसरे स्थान पर है।

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