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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 20 May, 2020 | 1 min read

हिन्दी का इतिहास भाग -10

राजभाषा के रूप में हिन्दी।

पिछले अध्याय में आपने देखा कि देश के सभी प्रशासनिक कार्यों में व्यवहृत होने वाली भाषा को राजभाषा कहा जाता है। जैसे चीन की राजभाषा चीनी है, जपान की जपानी, इंग्लैण्ड की अंग्रेजी, स्पेन की स्पेनी, फ्रांस की फ्रांसीसी आदि। विश्व के छोटे से छोटे देश की भी अपनी राजभाषा है, परंतु क्या आप जानते हैं, कि भारत संघ की अबतक कोई अपनी राजभाषा नहीं है?

मध्यकाल में फारसी राजभाषा थी और अंग्रेजों के जमाने में अंग्रेजी राजभाषा बन गई थी। परंतु आजादी के 70 दशक बाद भी अंग्रेजी ही सभी जगह कामकाज की भाषा बनी हुई है। ऐसा क्यों है? आइए जानते हैं इसके बारे में।

संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप होगा।" इसी अनुच्छेद के दूसरे उपबंध में 15 वर्ष के लिए अंग्रेजी भाषा को ही राजकीय कार्यों के लिए मान्य किया गया है।

अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति द्वारा एक राज भाषा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है, जो हिन्दी के उत्तरोत्तर विकास एवं अंग्रेजी के प्रयोग को कम या बिलकुल समाप्त करने के लिए विचार करेगा। साथ ही तीस सदस्यों की एक समिति के गठन का भी प्रावधान किया गया जो आयोग की सिफारिशों की समीक्षा करके अपने सुझाव राष्ट्रपति को देंगे।

अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य विधिक प्रक्रिया द्वारा राजकीय प्रयोजनों के लिए उस राज्य में प्रयुक्त प्रादेशिक भाषाओं में से एक या अनेक अथवा हिन्दी को अंगीकार कर सकेगा, किन्तु यदि राज्य ऐसा नहीं करता तो वहाँ राजकाज के लिए अंग्रेजी भाषा ही प्रयोग की जाती रहेगी।

अनुच्छेद 346 के अनुसार दो राज्यों के बीच तथा संघ और राज्य के बीच संचार के लिए संघ की राजभाषा का ही प्रयोग होगा, किन्तु दो या अधिक राज्य किसी समझौते के अन्तर्गत संचार के लिए राजभाषा हिन्दी को स्वीकार करते हैं, तो उनके बीच संचार की भाषा हिन्दी ही होगी।

अतः अनुच्छेद 343 के अनुसार 26 जनवरी 1965 से सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग किया जाना था, परंतु 15 साल बाद भी अर्थात् 1965 के बाद भी अंग्रेजी के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए" राजभाषा अधिनियम 1963 बनाया गया जिसकी धारा तीन के अनुसार," संविधान के लागू होने के 15 वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग सभी राज्यों में जारी रहेगा।


इसके पश्चात् राजभाषा संशोधन अधिनियम 1967 आया जिसके अनुसार -" जब तक एक भी राज्य अंग्रेजी कायम रखने के पक्ष में है, तब तक उसे कायम रखा जाएगा।"

जवाहरलाल नेहरू के इस आश्वासन के परिणामस्वरूप यह संशोधन अधिनियम आया। इसके प्रावधान राजभाषा अधिनियम 1963 की ही पुष्टि करते हैं। आजादी के बाद देशभर में फैले हिन्दी समर्थन और हिन्दी विरोधी आन्दोलन इसी अधिनियम के परिणाम हैं।

और हिन्दी अंग्रेजी का जंग अब तक कायम है। हिन्दी जहाँ राजभाषा बनने की पुरजोर कोशिश कर रही है वहीं अंग्रेजी भी अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है।

यह सच है कि आजकल काफी काम हिन्दी में हो रहे हैं परंतु राजभाषा का दर्जा हिन्दी को कब मिल पाएगा, यह तो राम ही जाने!

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