दास्तां तुम्हारी

करोना के मुश्किल दौर में

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 27 May, 2020 | 1 min read

तुम्हारी मौन निस्तब्धता,
भेदती है मेरी रूह तक को।

कानों को जबकि आदत थी,
उस धीर-गंभीर वाणी की
शोर- शराबे की और कहकहे की।
उस हरवक्त की सकारात्मक सोच की
जो पा लेती थी फतह
किसी भी कठिन मंजिल पर।
उस खिलखिलाहट की भी
जो हर गम में घोल देती थी
एक चाशनी मिठास की।

कहा था तुमने कि
परिस्थितियों ने कर दिया है
तुम्हारी इंद्रियों को शिथिल और बेजुबां
आँखों के सामने जो देखी थी तुमने हजारों मौतें।

पीड़ितों और बुजुर्गों की सेवा
तब भी न छोड़ी थी तुमने।
पर हर मौत की खबर
तोड़ कर रख देता था तुम्हें
अंदर ही अंदर।

जनती हूँ कि
इन दिनों करोना के कहर ने
तुम्हारी कामयाबी को भी
कुछ हद तक
म्लान- सी कर दी है।

तुमने यह सब कहा नहीं मुझसे कभी
परंतु तुम्हारी निस्तब्धता
मचाती है भयानक कोलाहल,
और माथे पर पड़ी वे शिकन की रेखाएँ
बयाँ कर देती हैं अंदरूनी असुरक्षाएँ सारी।

लिखा था कवि ने कभी,
" यूनानी मिश्र रोमाँ सब मिट गए जहाँ से
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं है हमारी।"
गिरकर उठना जानते हैं सब हिन्दुस्तानी।

एकदिन फिर होगी जीत हमारी।
तब तक है यही गुजारिश मेरी
कि करते रहो यूँ ही भला सबका,
कामयाबी फिर चुमेगी कदम
क्योंकि पूरे कायनात को भी प्रेम है
ऐसे ही जिद्दी दिलों से।

 

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  • Anurag Chitoshiya · 5 years ago last edited 5 years ago

    Beautiful ??

  • Moumita Bagchi · 5 years ago last edited 5 years ago

    Are Anuraag ji, aapne join kar liya? Great! Thank you ?

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