आज़ादी की कीमत

महामारी काल में लोगों को मास्क से आज़ादी चाहिए, आज़ादी की कीमत समझाती यह कहानी जरूर पढ़ें।

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Sunita Pawar
Sunita Pawar 17 Aug, 2020 | 1 min read

"पता नहीं इस मास्क से कब आज़ादी मिलेगी, परेशान हो गए हम तो" झल्लाते हुए सोनू बोला ।


"हाँ भैया, इस मास्क को लगाकर साईकल भी नहीं चलाई जाती, कितना दम घुटने लगता है" मुंह से मास्क उतार कर फेंकती हुई रिंकी बोली ।


"सच में, मास्क लगाकर सैर करना भी मुश्किल हो रहा है। पता नहीं कब इस महामारी से आज़ादी मिलेगी, मैं भी परेशान हो गई, कामवाली बाई के न आने से घर का सारा काम अकेले करना पड़ रहा है, हाथ-पैर दुखने लगते हैं और ऊपर से इन बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज । उफ्फ जिंदगी जहन्नुम हो गयी है मेरी तो" बालों को बाँधते हुए निशा ने अपना दुखड़ा रोया ।


"यार चुप करो तुम लोग, घर में रह-रह कर मैं भी हताश हो चुका हूँ, वर्क फ्रॉम होम ने मेरे दिन-रात का चैन छीन लिया है, उसपर तुम लोग चीखते चिल्लाते रहते हो। पता नहीं कब दफ्तर खुलेंगे और मुझे तुम लोगों की चीख़म-चिल्ली से आज़ादी मिलेगी" चिड़चिड़ाते हुए रवि चीखा ।


बड़ी देर से पलंग पर बैठे दादू सबकी बातें सुन रहे थे । उन्होंने पोते और पोती (सोनू और रिंकी) को पास बुलाते हुए पूछा "क्या हुआ बच्चो??क्यों परेशान हो??


"दादू , देखो ना, हम घर से बाहर बिना मास्क लगाकर नहीं जा सकते, मास्क लगाकर खेलना और साईकल चलना कितना मुश्किल होता है, हमको तो ऐसे लग रहा है जैसे जेल में बंद कर दिया गया हो। पता नहीं कब स्कूल जाएंगे, अपने दोस्तों से मिलेंगे और मम्मी पापा के सेफ्टी रखने वाले भाषणों से आज़ादी मिलेगी ?? पता है दादू, कुछ लोग तो बिना मास्क के आज़ाद घूम रहे हैं , उनको तो कोई नहीं डाँटता" मुँह बनाते हुए सोनू और रिंकी बोले ।


"बच्चो ! मैं तो बाहर भी नहीं जाता और तुम सब इतने व्यस्त हो कि मुझसे बात करने का समय ही नहीं है, मैं भी अपने हमउम्र दोस्तों से नहीं मिल पाता हूँ परंतु मैं खुद को घर का गुलाम नहीं समझता । भला अपने घर को कोई जेल कहता है क्या? तुम लोगों को मास्क से आज़ादी चाहिए, घर के काम से आज़ादी चाहिए, घर के लोगों से आज़ादी चाहिए परंतु क्या अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में सोचते हो कभी?? उन्होंने आज़ादी पाने के युद्ध में, कैसे काला पानी की सजा भुगती होगी?? ये आज़ादी हमको दान में थोड़े ही मिली है" दादू अपनी रौ में बोलते जा रहे थे ।


"काला पानी की सजा क्या होती है दादू?" सोनू और रिंकी ने हैरानी से पूछा ।


"बच्चो, यह सजा एक ऐसी जेल में होती थी जहां चारों तरफ समुद्र का पानी कालापन लिए हुए होता था, कैदियों को अकेले रखा जाता था और अकेलापन कैदी के लिए बहुत भयावह होता था। इस जेल में कैदियों को बेड़ियों से बांध कर, कोल्हू से तेल पेरने का काम करवाया जाता था और बहुत यातनाएं दी जाती थीं । जाने कितने ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए" दादू जैसे अपनी किशोरावस्था में पहुँच गए थे, उन्होंने अपने सामने ही तो देश को आज़ाद होते देखा था ।


"दादू, ये बहुत डरावनी जेल होती होगी ना?" सोनू और रिंकी ने सहमे हुए पूछा ।


"हाँ बच्चो, और हमारे कितने ही सैनिक, पड़ोसी देश की जेलों में बंद थे जो अपने परिवार की एक झलक पाने की लालसा लिए ही शहीद हो गए । रानी लक्ष्मीबाई ने तो अंग्रेजों को नाकों चने चबा दिए थे। शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते-हँसते फाँसी को गले लगा लिया था।" दादू की बातों को अब पोते-पोती के साथ बेटा और बहू भी गौर से सुन रहे थे ।


"बच्चो, ये महामारी भी एक युद्ध है और हम सब इससे लड़ने वाले वीर योद्धा हैं । मास्क पहनकर और सरकार द्वारा दिए सभी दिशा-निर्देशों का पालन करने से हम इस महामारी पर जल्दी ही जीत हासिल कर सकते हैं । मास्क और सोशल डिस्टेनसिंग ही हमारे हथियार हैं और हमको जोश के साथ इस महामारी से लड़ना है" दादू की बातों ने पूरे परिवार के बीच जोश और सकारात्मक ऊर्जा भर दी थी ।


"सच बाबूजी, इस महामारी काल में हम सब एक साथ अपने घर में पूरी तरह से सुरक्षित हैं, इससे ज्यादा हमको क्या चाहिए" रवि ने सबको बाहों में भरते हुए कहा।


"बाबूजी आपने सही कहा, वैसे भी मास्क पहनकर घर के बाहर जाने की आजादी है हमको, सबसे फोन पर बात करने की आज़ादी है हमको, अपने त्योहारों को मनाने की आज़ादी है हमको, अपने वतन में खुलकर साँस लेने की आज़ादी है हमको, अब और क्या चाहिए" निशा ने सिर पर पल्लू रखते हुए कहा ।


"हाँ दादू, मास्क पहनकर साईकल चलाने की आज़ादी भी तो है हमको, पढ़ने-लिखने की आज़ादी है हमको" दोनों बच्चों ने वीर सैनिकों की तरह गर्दन को गर्व से उठाते हुए कहा ।


"बिल्कुल बच्चो, मुझे भी तो अपने दोस्तों के साथ मोबाइल पर वीडियो चैट करने की आज़ादी है " दादू ने हँसते हुए कहा ।


"पर दादू, जो लोग बिना मास्क पहन कर घूम रहे हैं और महामारी फैला रहे हैं, उनको कैसे समझाएं??" बच्चों ने परेशान होते हुए पूछा ।


"बच्चो, हमें अपना युद्ध लड़ते रहना है, जानते हो गांधी जी ने क्या कहा था कि 'खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं' तो बस जब तक महामारी खत्म नहीं होती तब तक हम मास्क पहने रखेंगे और हमको देखकर लोग जरूर बदलेंगे " दादू ने दृढ़ता से कहा ।


"परंतु बच्चो, आज़ादी का ये मतलब नहीं कि अपनी मर्यादाएं और संस्कृति को भूल जाओ " दादू ने जैसे ही बच्चों को समझाया तो रिंकी फटाफट अपना मास्क हाथों में लेकर बोली "दादू, जब तक हम इस महामारी से आज़ादी नहीं पा लेते तब तक मास्क पहनना भी नहीं भूलेंगे" । दादू ने दोनों बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फैराया।


आसमान में लहराता तिरंगा खिड़की से साफ दिखाई दे रहा था, सबने मिलकर, अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए सलामी दी ।

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धन्यवाद ।



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Sunita Pawar

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