क़ैद बचपन

बचपन, जो आजकल क़ैद है

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Manpreet Makhija
Manpreet Makhija 14 Nov, 2019 | 0 mins read

"मम्मी, मेरा टेबलेट कहाँ है!!मुझे उसमे गेम खेलना है।"

"बेटा, वो तो मैंने सर्विस के लिए भेज दिया।उसकी स्क्रीन टूट गई थी।"

"तो अब क्या खेलूँ..?"(बच्चे ने चिल्लाकर अपनी माँ से कहा)


"मूड़ खराब मत करो बेटा।आज कोई इंडोर गेम खेल लो। वो देखो रीटा आंटी की बेटी कैसे कागज़ से ही खेल रही है।" (माँ ने अपनी कामवाली की बेटी की तरफ इशारा करते हुए बेटे से कहा।)


"नही... नही.... नही..मुझे ऑनलाइन गेम ही खेलना है।"

(बच्चे ने चिड़चिड़े स्वभाव में गुस्सा करते हुए कहा।माँ ने बेटे को आपे से बाहर होते देखा तो उसे बेमन से अपना मोबाइल पकड़ा दिया। अब वो शांत होकर मोबाइल में गेम खेलने लगा।माँ की नज़र अब भी कामवाली की बेटी पर टिकी हुई थी जो कि कागज़ की कश्ती बनाकर एक आज़ाद बचपन जी रही थी, वहीं जब माँ की नज़र बेटे पर गई तो गला रुआँसा हो गया क्योंकि उसका बेटा तकनीकी गिरफ्त में क़ैद था)


मौलिक व स्वरचित

मनप्रीत मखीजा

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