शैली बचपन से ही बहुत ही महत्वाकांक्षी लड़की थी।, बहुत कम समय में कम मेहनत से बहुत कुछ पा लेना चाहती थी।, सपने तो उस के बड़े-बड़े लेकिन हुनर के नाम पर कुछ भी नहीं था, उसके पास! पढ़ाई लिखाई भी बस ठीक-ठाक,इसके अलावा सिलाई ,कढ़ाई ,बुनाई, मेहंदी, किसी में भी उसकी रूचि नहीं थी।, बस एक बात अच्छी थी।, उसमें की उसकी अंग्रेजी अच्छी थी।"बड़ी-बड़ी बातें बनाना डींगे हांकना ये सब उसे खूब आता था।," मेरी शादी होगी ना तो मैं अपने पति को दबा कर रखूंगी।,"वो मुझे एक बोंलेंगा तो मैं उसे चार बातें सुनाऊंगी।, आपकी तरह नहीं कि सारा दिन जी हजुरी करूंगी।, गलती हो या ना हो हर वक्त बस माफी मांगते रहो।, कभी उस पर आश्रित नहीं रहूंगी।," तब उसकी मां उसे समझा कर कहती! बेटा पति से कभी जवाऩ नहीं लड़ानी चाहिए, और अगर वह तुम्हें कुछ कहेगा तो तुम्हारे भले के लिए ही कहेगा।," तीसरी और आखरी बात आश्र्रित तो तुझे उस पर रहना ही पड़ेगा।," क्योंकि तूं किसी भी चीज मे़ माहिर नहीं है।,क्या हुनर है तेरे पास बता?, 10वीं पास करते ही तो तुने पढ़ाई छोड़ दी।,तूं ऐसे कौन से झंडे गाड़ेगीं मुझे भी तो बता?, मां की बातें सुनकर शैली और ज्यादा चिड़ जाती और कहती कुछ भी करूंगी लेकिन आश्रित नहीं रहूंगी।, देख लेना मां तुम! कहकर मुंह बनाकर कमरे में चली जाती।, धीरे-धीरे शैली की शादी की उम्र भी होने लग गई।, शैली के लिए कई रिश्ते भी देखे गए, लेकिन जहां बात गुणवत्ता की आती लड़के वाले ना बोल कर चले जाते।,पढ़ी-लिखी भी ज्यादा ना होने कारण उसकी शादी में बहुत दिक्कत आ रही थी।," देखते-देखते अखिर एक सभ्य परिवार का रिश्ता आया।, लड़का ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था ।,लेकिन बीकॉम पास था,, उसकी अपनी इलेक्ट्रॉनिक चीजों की दुकान थी।," घर में लड़के के अलावा उसकी एक बहन थी। वह भी शादीशुदा थी।, माता-पिता बीमारी की वजह से कम उम्र में ही बेटी की शादी करके चल बसे।, घर छोटा ही सही पर अपना था।, लड़के ने सिर्फ शैली की सुंदरता देख कर उसे पसंद कर लिया था," छानबीन के पश्चात शैली के माता-पिता ने अच्छा मुहूर्त निकलवा कर शैली और सुरेश की शादी कर दी।, शैली बहू बन कर सुरेश के घर आ गई।,शादी के बाद की हल्की फुल्की रश्में सुरेश की बहन ने पूरी कर दी।, शादी के एक हफ्ते बाद शैली की ननंद भी अपने घर चली गई।, देखते-देखते एक महीना गुजर गया, सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।, सुरेश शैली को हनीमुन मनाने के लिए शिमला ले गया।, वहां की हसीन वादियों में दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था।, दोनों एक दूसरे के और ज्यादा करीब आ गये थे।," हनीमून खत्म होते ही दोनों अपने घर लौट आए दिल्ली!फिर सुरेश अपनी दुकान संभालने लगा और शैली घर, अब शैली करें भी तो क्या करे नौकरी के लिए अगर सुरेश को बोले भी तो कैसे, क्योंकि सुरेश ने तो उसे अपनी पलकों पे बिठा कर रखा था, कुछ भी सुनाना या झगड़ा करना तो बहुत दूर की बात थी।, इसलिए शैली ने बार-बार सुरेश से पैसों की मांग की, मुझे ब्यूटी पार्लर जाना है ,शॉपिंग करनी है ,वगैरा-वगैरा कहकर, 1 महीने के अंदर ही उसने सुरेश से ₹25000 ले लिया।, लेकिन सुरेश ने कोई सवाल तक नहीं पूछा ,यहां तक यह भी नहीं कहा कि शैली तुम्हें अपने खर्चों को थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिए।,
तभी शैली के दिमाग में एक तरकीब सूझी, उसने सुरेश से कहा जी मैं घर में बैठी बैठी बहुत बोर हो जाती हूं, आप भी दुकान चले जाते हो मेरे पास तो कोई भी नहीं है, मैं सोचती हूं कि मैं कोई जॉब कर लूं, जिससे मेरा मन लगा रहेगा।, शैली की बात सुनकर पहले तो सुरेश ने कहा कि तुम्हें जॉब करने की क्या जरूरत है भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास?
मैं जानती हूं, लेकिन मैंने कहा ना कि मैं बहुत बोर हो जाती हूं।, शैली की खुशी को ध्यान में रखते हुये सुरेश ने उसे हां कर दी।," लेकिन उसने शैली से कहा की तुम तो सिर्फ माध्यमिक पास हो तुम्हें जॉब देगा कौन? , तो शैली ने कहा कि उसकी चिंता आप मत कीजिए मेरी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, उसके दम पर मुझे किसी न किसी कॉल सेंटर में जॉब मिल जाएगी।, 15 दिन के अंदर ही शैली को जॉब मिल गई।, शुरुआत में उसकी तनख्वाह ₹10000 थी।, जॉब करने लगी जॉब करते करते कब 2 साल गुजर गए पता ही नहीं चला। और अब उसे 15000 रुपये मिलते थे, इसी बीच वह प्रेग्नेंट हो गई।, और उसने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया।, अब जहां एक तरफ खुशी थी ,तो दूसरी तरफ यह समस्या थी बच्चे को संभालेगा कौन? ,ऐसे में वक्त की नजाकत को देखते हुए सुरेश ने शैली से कहा कि तुम अब जॉब छोड़ दो।, हमारे बच्चे को हमारी जरूरत है, किसी एक का घर पर रहना बहुत जरूरी है,इस पर शैली ने कहा की बच्चे के लिए हम आया रख देंगे जो बच्चे की सुबह से शाम तक देखभाल करेगी, उसका सारा काम करेगी।, यह बात सुनकर सुरेश को बहुत गुस्सा आया और उसने कहा कि भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास फिर तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है? , मुन्ना अभी बहुत छोटा है उसे तुम्हारी जरूरत है।, तुम्हें क्या लगता है क्या बच्चे का आया ठीक से ध्यान रखेगी? खुद आराम करने के चक्कर में बच्चे को सीरप पिलाकर सुला दिया तो? जमाना बहुत खराब है।, मैंनें तो यहां तक कि सुना है कि ये लोग बच्चे को फटे पुराने कपड़े पहनाकर स्टैंड पर ले जाकर भीख मांगती है, अल्लाह के नाम पर दे दीजिए भगवान के नाम पर दे दीजिए।, सुरेश की बात सुनकर शैली जोरों से हंसने लगी और कहां, पिक्चर देख- देख कर तुम्हारा दिमाग कुछ ज्यादा ही खराब हो गया है, रियल लाइफ में ऐसा कुछ भी नहीं होता, और फिर हम पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही उसे रखेंगे।, सुरेश ने शैली को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंत में उसे हार माननी पड़ी, और बच्चे के लिए एक आया रख दी गयी।, शुरुआती 1 महीना तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसे धीरे-धीरे और 10 दिन गुजरे, बच्चे का स्वास्थ्य बहुत खराब रहने लग गया, बच्चा हर वक्त सोते रहता था, दूध भी नहीं पीता था।, सबसे बड़ी बात तो यह थी, कि वो इतना छोटा था ,की किसी को अपनी परेशानी बता भी नहीं सकता था, यह सब देख कर सुरेश को शक हुआ और उसने शैली से भी कहा कि मुझे लगता है ,की आया बच्चे का ठीक से ध्यान नहीं रख रही है, शैली ने कहा ऐसा कुछ नहीं है छोटे बच्चे ज्यादा सोते है, इसमें घबराने की कोई बात नहीं है, शैली की बात सुनकर भी सुरेश का दिल तो नहीं माना पर सोचा शायद ठीक कह रही होगी दो तीन दिन देख लेते है,शायद ठीक हो जाय ,नही तो बाद में दिखा देंगें ।इस बात को भी दो दिन गुजर गए,और वो आज दुकान से जल्दी घर आया ही था।,यह सोचकर की पुनीत को आज डांक्टर को दिखा दूंगा,जैसे ही घर पहुंचा देखा घर में ताला है,वह बहुत चिन्तित हुआ और आया को फोन लगाने के लिए फोन उठाया, तभी अचानक उसकी बहन का फोन आया तो सुरेश को समझ में आ गया की जरूर बात पुनीत से जुड़ी हुई है,और उसने सुरेश से कहा कि तुम फौरन मंदिर आ जाओ।, मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है, यह सुनकर सुरेश बिना वक्त बर्बाद किए जल्दी से मंदिर पहुंच गया।, वहां जाकर देखा तो उसका बेटा पुनीत फटे पुराने कपड़ों में आया के गोद में स्टैंड पर बैठा है, और रोए जा रहा है, यह सब देख कर सबसे पहले तो उसने अपनी दीदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि दीदी आज आप नहीं होती तो क्या होता तो दीदी ने कहा अरे पगले इसमें धन्यवाद की क्या बात है पुनीत मेरा भी तो कुछ लगता है, सिर्फ तेरा ही बेटा नहीं है।, फिर उसने अपनी दीदी को सारी बात बताई की शैली के सर पर खाली नौकरी करने का भूत सवार है ,उसे कुछ भी समझ में नहीं आता उसे कैसे समझाया जाए? उसकी दीदी ने कहा उसे खाली समझाने से नही होगा, अब उसे दिखाना होगा।, एक काम करती हूं, मैं उसे फोन करती हूं, मैं की राधा कृष्ण के मन्दिर आई हूं,यहां बहुत सुन्दर मेला लगा है, तुम जल्दी से आ जाओ।,साथ मिलकर घुमेंगें,मैंनें सुरेश को भी फोन कर दिया है,वो भी आ रहा है।, तब तक तुम उस आया पर नजर गड़ा कर रखो वो भाग न जाए।, सुरेश को भी दीदी की बात सही लगी उसने वैसे ही किया।,फिर दीदी ने फोन करके शैली को बुला लिया , और शैली ने अपनी आंखों से सब कुछ देख लिया।, और इस तरह उसे अपनी गलती का एहसास भी हो गया।, जो बात सुरेश के समझाने से शैली नहीं समझ पाई,वो उसे उसकी दीदी की समझदारी ने समझा दी।, सबसे पहले तो तीनों ने मिलकर उस आया को पुलिस को बुलाकर अरेस्ट करवाया।,डांक्टर के पास जाकर डॉक्टर से पुनीत का चेकअप करवाया। , डॉक्टर ने जांच कर के बताया कि आप बहुत सही समय से बच्चे को ले आए, बच्चे को रोज दो-तीन घंटे तक खाली बदन धुप में रखा गया है, इतना नहीं ज्यादा से ज्यादा मात्रा में सीरप पिलाई गई है, जिससे वह ज्यादा सो रहा है,और जिसकी बजह से ज्यादा देर भुखे रहने की बजह से बहुत कमजोर भी हो गया है, , कुछ दवाइयां लिख दी और कहा कि बच्चे का पूरी तरह से ध्यान रखिए हो सके तो मां का दूध पिलाएं।,डॉक्टर की बात सुनकर शैली और भी शर्मिंदा हो गई यह सोच कर कि वह किस मुंह से माफी मांगे सुरेश से, फिर भी हिम्मत करके उसने सुरेश से कहा हो सके तो मुझे माफ कर देना, मेरी गलती माफी के लायक तो नहीं है, लेकिन अब मैं कोई जॉब नहीं करूंगी।, सिर्फ और सिर्फ अपने घर और बच्चें पर ध्यान दूंगीं।,और हां दीदी आज अगर आप नही होती तो पता नही मेरे बच्चे के साथ क्या होता,आपने तो बुआ होकर मां की जिम्मेदारी निभा दी,और मैं एक मां होते हुये भी मां नहीं बन पायी।,भगवान करे हर बच्चे को आप जैसी बुआ मिले,और मेरी जैसी गैर जिम्मेदार भाभी को आप ज़ैसी ननद मिलें,जो बड़ी बहन बनकर छोटी को अपनी समझदारी से सही रास्ते पर ले आऐ।
दोंस्तों अक्सर देखा गया है ,की कितनी औरतों को घर का काम करना या बच्चें को सभांलना अच्छा नहीं लगता है।,उन्हें बाहर जाकर काम करने में एक आजादी महसुस होती है,और साथ ही साथ वे ये भी सोचती है,की इससे उनका अपने पति पर रौब भी रहेंगा।,लेकिन ये गलत है,अगर जरूरत न हो ,पैसों का अभाव न हो तो हम औरतों की सबसे पहली जिम्मेदारी हमारा परिवार है।,और बच्चा जब तक समझदार न हो जाए,तब तक उसे आया के भरोसे न छोंड़े। और फिर भी नौकरी करनी ही है,तो घर में अगर बच्चे के दादा- दादी हो तो उनके सुपूद्र कर के जायें।
दोंस्तों आपको मेरा ब्लांग कैसा लगा,कमेंट बांक्स में कमेंट कर के जरूर बतायें,और अगर आपको अच्छा लगें तो लाइक और शेयर करना न भूलें।
अगर मेरी लेखनी से मैं किसी एक के जीवन में भी बदलाव ला सकूं तो मैं समझूगीं की मेरी लेखनी सफल हो गयी।🙏🙏
स्वरचित व मौलिक
@ मनीषा भरतीया
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Mai sehmat Hun, kuch mahilayein freedom ya career k naam par aisi laparwahi karte Hain. Humein judge na karein, aisa kehkar apne aap Jo sahi kehti Hain but apne Bache ki life ke cost par aisa nahi karna chahiye. Majboori ho, to bhi bachhon par Puri Nazar rakhein aur apno ki dekh rekh Mei chhodein. Par yahan bhi 'Meri life, meri choice' keh Diya jata hai. Hope all understand this.
सही कहा सोनी जी आपने धन्यवाद आपका🙏🙏
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