पहनावें से संस्कारों को नहीं आंका जाता!!

#western cloth# modern#

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Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 04 Jul, 2020 | 1 min read

रीमा देख आज हम सब सब ने मिलने का प्रोग्राम बनाया है।, तुम्हें भी आना ही पड़ेगा। हर बार तू टाल जाती है लेकिन इस बार मैं तेरी एक नहीं सुनूंगी। अरे भई अब तो हम सब सहेलियां बहू वाली हो गए हैं।, सास बन चुके हैं। अगर अब अपनी जिंदगी नहीं जिएंगे तो कब जिएंगे, बोलो ठीक है ना, हां भई बिल्कुल ठीक है, दूसरी तरफ से रीमा ने कहा।

ठीक है रीमा फिर आज मैं , तू, सरिता पुजा, राधा, रीता, हम सब मेरे घर पर लंच पर 2:00 बजे मिलते है।

थोड़ी देर बाद लंच पर सब इकट्ठे हुए ,आपस में खूब बातें हुई मस्ती हुई। तभी बातों बातों में रीता ने राधा से कहा," तुम्हारी बहू को आए हुए जुम्मा जुम्मा 4 दिन हुए हैं, लेकिन कोई लिहाज ही नहीं है, मैंने देखा उस दिन बिग बाजार वाले शॉपिंग मॉल में तुम्हारी बेटी के साथ जींस टॉप में बेधड़क घूम रही थी।, जिस का पहनावा ऐसा है वह क्या खाक संस्कारी होगी। छोटो बड़ों का क्या तो मान रखती होगी, मुझे लगता है कि घर में कुछ काम भी नहीं करती होगी। यह सब सुनकर भी राधा तो चुप रही।" लेकिन पूजा ,सरिता ने बीच में ही टोकते हुए कहा ," पहनावे से किसी के संस्कार को नहीं आंका जा सकता।।," अच्छा एक बात बताओ राधा की बेटी ने भी तो जींस टॉप पहना होगा, तो तुम्हारे हिसाब से तो वह भी खराब हो गई, उसे तो तुम मैं सब बचपन से जानते हैं।, क्या वो खराब है? क्या वह संस्कारी नहीं है? या घर के काम नहीं जानती है, नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा, राधा की बेटी तो बहुत ही गुणी और संस्कारी है। देखा तुम्हारी कहीं भी बात में तुम ही फंस गई,। तुम जानती हो राधा की बेटी को , इसलिए उसके के बारे में तुम्हारे विचार नेक है, तुम उसकी बहू को जानती ही कहां हो! आधुनिक कपड़े अगर बेटी पहने तो ठीक है और बहू पहने तो खराब हो गई। इस सोच को ही बदलना होगा, बहू भी तो किसी की बेटी है। सबको अपने हिसाब से जीने का हक है, अपनी मर्जी से पहनने का हक है।

हां एक बात और तुम पहनावे की बात ही कर रही हो तो " तुम्हारी बहू का पहनावा तो बिल्कुल भारतीय यानी की साड़ी।, और उसे तो आए हुए भी बरसों हो चुके है।, माफ करना, लेकिन मेरा सामना तो प्राय प्राय उसके साथ हो ही जाता है, जब भी मुझसे मिलती है 8-10 लड़कों से घिरी रहती है, और मुझसे नजरें चुरा कर भाग जाती है।

इस पर अब तुम क्या कहोगी रीता!

भारतीय पहनावे की आड़ में अपने चरित्र को छुपाना।

दोस्तों आपको कहानी का अर्थ समझ में आ ही गया होगा।

दोस्तों इस समाज में ज्यादा लोग रीता की तरह ही है। जो अपने घर से मतलब न रख के हमेशा दूसरों के घर से मतलब रखते है, इनकी नजर में बेटी और बहु समान नहीं होती। हमें जरूरत है एक नए समाज के निर्माण की, जहां यह पक्ष और रूढ़िवादीता ना रहे । बेटी और बहू दोनों को एक समान समझा जाए।

क्या लगता है आपको की रीता जी की सोच सही है?

अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें। सुझाव और अपेक्षा सबके लिए स्वागत है।

आपकी

मनीषा भर तीया

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Manisha Bhartia

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut achha lekh. Sahi hai, kapdon se kisi ke charitra ka aanklan karna thik nahi.

  • Manisha Bhartia · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank u🙏🙏

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