कर भला हो तो भला!!

Do well be well

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Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 23 Jul, 2020 | 1 min read

आकाक्षां बहुत ही संस्कारी और सुलझी हुई लड़की थी।, बचपन से ही उसने अपनी मां को दादी का आदर करते हुए देखा था। हालांकि दादी दिल की बुरी नहीं थी।, लेकिन स्वभाव से बहुत कड़क थी। छोटी -2 बातों पर गुस्सा करना, हर वक्त अपनी बात को ऊपर रखना, बेवजह दूसरों पर चिल्लाना जैसे उनके स्वभाव में था। हर बात में मीन मेख निकालना जैसे उनकी आदत बन चुकी थी।, लेकिन आकांक्षा की मां ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया।, तब आकांक्षा ने 8 साल की उम्र में अपने भोलेपन में अपनी मां से कहा!दादी आपको इतना भला बुरा कहती हैं ,आप कभी पलट कर जवाब क्यों नहीं देती? तब उसकी मां ने कहा आज तो कह दिया है आगे से कभी सोचना भी मत बस एक बात का हमेशा ध्यान रखना।, कर भला तो हो भला! क्योंकि उनका यह मानना था, अगर कोई हमारे साथ गलत भी करें, तो हमें गलत नहीं करना चाहिए।, कर भला तो हो भला! और उन्होंने यह भी कहा कि बड़े बुजुर्ग अगर हमें कुछ कहते भी हैं, तो वो हमारे भले के लिए ही होता है।, अगर वह हमारे काम में मीन मेख नहीं निकालेंगे तो हम कभी उसमें सुधार नहीं ला पाएंगे।,बस यही कारण है कि आकांक्षा बचपन से ही संस्कारी है।, इतना ही नही आकांक्षा की दो और बहनें पूनम और जया भी बहुत ही सुलझी हुई है।, आकांक्षा तीनों बहनों में सबसे बड़ी है, इसलिए आकांक्षा के पिता बृज नारायण अग्रवाल और मां सरिता उसके लिए रिश्ता देख रहे हैं।, यूं तो आकांक्षा के लिए एक से एक रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन लड़के सब विदेश में अकेले रहते है ,जिससे कि आकांक्षा को विदेश जाना पड़ेगा और उसकी खैर खबर मिलने की भी मुश्किल हो जाएगी।, और साथ ही साथ आकांक्षा की भी इच्छा है, की वह भरे पूरे परिवार में बहू बन कर जाए जहां बहू की जिम्मेदारी बखूबी निभाकर अपने माता-पिता का सर ऊंचा कर सके।, वक्त का पहिया अपनी तेज रफ्तार में बढ़े जा रहा था।, आखिरकार आकांक्षा की सोच को राह मिली।, और उसके लिए एक भरे पूरे खानदान का रिश्ता आया। लड़के के घर में उसके माता- पिता, दो बड़े भाई, 2 भाभियां और दो बहनें जिनकी भी शादी हो चुकी थी।, लड़का( अमन) सबसे छोटा बेटा था।, देखने सुनने में अमन, दोनों बड़े भाई- भाभियां , दोनों बहने सब बहुत ही सुलझे हुए और समझदार लग रहे थे।, बस लड़के के मम्मी- पापा थोड़े कड़क स्वभाव के प्रतीत हो रहे थे।, लेकिन उससे आकांक्षा को कोई समस्या नहीं थी।, लड़के वालों ने उसके संस्कारों , गुणों और सुंदरता को देखकर जिस दिन देखने आये उसी दिन नेंग करने की इच्छा जाहिर की, हालांकि लड़का और उसका खानदान आकांक्षा और उसके परिवार को भी पूरी तरह से जंच गया था।," लेकिन उसके पिता छानबीन कर अपने मन की पुष्टि करना चाहते थे।, सो उन्होंने दो-तीन दिनों का वक्त मांग लिया यह कहकर कि पंडित से अच्छा मुहूर्त निकलवा कर ही नेंग की रस्म करें तो अच्छा होगा।, लड़के के पिता ने भी लड़की की पिता की बात में

हांमी भर दी।, इस दौरान आकांक्षा के पिता ने लडके और लड़के के खानदान की पूरी छानबीन कर जब पूरी तसल्ली हो गई तो पंडित से अच्छा मुहूर्त निकलवा कर लड़के वालों को फोन कर दिया और सगाई पक्की कर दी।, धीरे-धीरे वक्त बीतते गया और वो दिन आ गया जब घर में शहनाइयां बजने वाली थी।, और आकांक्षा को अपने मायके को छोड़ पिया का घर बसाना था।, सब कुछ बहुत अच्छे से हो गया।, और आकांक्षा शर्मा जी के घर बहू बनकर आ गई।, शादी के दूसरे दिन पहली रसोई की रस्म थी।,उसने प्रात: 6:00 बजे ही स्नान करके अपने सास-ससुर के पैर छुए दोनों ने उसे खुश रहो का आशीर्वाद दिया।, और उसकी सासू मां (शकुंतला जी)ने कहा! बहू आज तुम्हारी रसोई की पहली रस्म है, तुम मुट्ठरी का चूरमा बना लो, यहां सब को बहुत पसंद है, और हां उसके साथ दाल भी बना लेना।, ठीक है, मांजी कह कर वो रसोई की तरफ जाने लगी, तभी उसने देखा कि मांजी उसके पीछे-पीछे आ रही है।, पीछे सासू मां को आते देख उसने कहा मांजी मैं बना लूंगी आप आराम कर लीजिए।, कौन सी चीज कहां रखी है, वह मुझे भाभीयां है ,बता देगी।, शकुंतलाजी ने कड़क आवाज में कहा! नहीं चलो मैं तुम्हें बता देती हूं, कि कितना बनाना है ,और कैसे बनाना है।, वह समझ गई कि यहां बोलने का कोई फायदा नहीं है।, और वह चुपचाप जैसे जैसे सासू मां बोलती गयी वैसे वैसे करती गई।, उसे जरा सा भी गुस्सा नहीं आया।,लेकिन एक अचरज की बात यह थी कि ससुर जी भी चुपचाप देख रहे थे।, जो की शादी से पहले कड़क स्वभाव के प्रतीत हो रहे थे।, लेकिन कड़क थे नहीं ,जिठाणियां भी चुप्पी साधे रही। अब तो यह रोज का सिलसिला हो गया था। खाना बनाने के समय किचन में जब आकांक्षा और उसके जिठाणियां तीनों साथ में भी रहती तब भी हुकुम सासू मां का ही चलता।, कितनी सब्जी बनेगी ,कौन सी सब्जी बनेगी, वगैरह-वगैरह।, जबकि घर में धन - धान्य की कोई कमी नहीं थी। अच्छा खासा कपड़ों का कारोबार था। तीन तीन दुकानें थी , जो की मेन बाजार में होने के कारण अच्छी खासी चल रही थी।,फिर क्यों मांजी यह सब कर रही है कभी-कभी आकांक्षा के दिमाग में यह बात आ जाती? लेकिन फिर उसके संस्कार उसकी सोच की आड़े आ जाते।, और वह कुछ नहीं कह पाती।, फिर मन में यह भी सोचती कि मैं तो नयी आई हूं।, पर भाभियां वो तो पुरानी हो चुकी है, वो भी कैसे मम्मी जी के सामने बूत बनकर खड़ी रहती है।, और उनकी सख्ती पर कोई जवाब ही नहीं देती।, यही सब सोचते-2 फिर वह अपने काम में लग जाती। इतना ही नहीं घर में चाट ,पकोड़ा,पानी पूरी या कुछ भी कितना आएगा और किसको कितना देना है, यह निर्णय भी शकुंतला जी ही लेती, मजाल है कि कोई भी एक भी एक्स्ट्रा ले ले।, घर में बहूओं को दिनभर साड़ी पहननी है ,सूट वगैरा नहीं पहन सकती।, गाउन भी अगर पहननी है ,तो रात को अपने कमरे में ही पहनों वही खोल दो, यह सब निर्णय भी शकुंतला जी ही लेती।, लेकिन आकांक्षा को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा।, क्योंकि उसने हमेशा अपनी मम्मी को भी दादी का आदर करते हुए देखा था।, दादी भी इसी तरह से अपनी मनमानी करती थी।, और स्वभाव से ही बहुत कड़क थी।,इसलिए जब भी आकांक्षा के मन में कोई भी सवाल उठता तो उसे अपने बचपन में मां की कही बात याद आ जाती, कि अगर कोई गलत भी करे तो उसके साथ में गलत मत करो।, कर भला तो हो भला!

आकांक्षा के घर में जो दुधवाला दुध देता है,बह रोज नाप

में 3 किलो क 2:25 किलो ही देता है, लेकिन आकांक्षा ने उसे भी कभी कुछ नहीं कहा! इस पर उसकी भाभीयां कहती है, कि यहां तो तुम कुछ बोल सकती हो, माना मांजी के सामने नहीं बोल सकती।, तुम्हारी शादी को भी 4 साल हो गये है, वो रोज तीन पाव की चोरी करता है, इस पर उसने कहा,भाभी मैं भी तो 4 साल से देख रही हूं, आप लोग उसे रोज बोलती है ,लेकिन उस पर कोई असर पड़ा,नहीं ना,और वैसे भी अगर कोई गलत भी करे तो हमें उसके साथ कुछ गलत नहीं करना चाहिए, और कुछ गलत नहीं बोलना चाहिए।, कर भला तो हो भला!

दोनों जेठानियां भी सोचती की पता नहीं यह किस मिट्टी की बनी हुई है? एक दिन अचानक आकांक्षा की सासूं मां बीपी लो होने की वजह से सीढ़ियों से गिर गई।, और उनके पूरे शरीर में लकवा मार गया।, वो बिस्तर से हिल भी नहीं पा रही थी।, डॉक्टर ने हिदायत दी कि अब यह शायद कभी ठीक नहीं हो पाएगी।, इसलिए इनके रोजमर्रा के काम के लिए आपको नर्स रखनी होगी।, यहां तक कि ये खाना भी खुद से नहीं खा सकती। सासु मां की हालत देखकर आकांक्षा को बहुत दुख हुआ और वो रोने लगी।, जबकि उसकी जिठानियों को बहुत खुशी हुई और कहने लगी भगवान ने जो किया अच्छा किया।, सासू मां ने हमारे ऊपर बहुत ज्याद्तियां की है, हमेशा हमारे सर पर मंडराती रहती।, ना कभी मन का खाने दिया ना पहनने दिया, यह सब सुनकर भी आकांक्षा चुप थी।,और रोए जा रही थी।, उसकी जिठानियों ने कहा आखिर तुम किस मिट्टी की बनी हो तुम क्यों रो रही हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए? अब मां जी अपनी हुकूमत हमारे ऊपर नहीं चला पायेगीं।, हम सब आज उनकी कैद से आजाद हो गये।, अब हम उन पर ज्याद्तियां करेंगे, और वो तो हमारा कुछ कर भी नहीं पाएंगीं।,तब आकांक्षा ने भाभियों से कहा कि आप सबको ऐसा करना तो दूर सोचना भी नहीं चाहिए।, जब आप लोग इतने सालों तक ही मम्मी जी के सामने कुछ नहीं बोली, तो अब क्यों? अब तो वैसे भी सब कुछ आप अपने हिसाब से कर ही सकती हैं, बाकि आप लोगों की मर्जी! लेकिन एक बात हमेशा ध्यान में रखे कर भला तो हो भला!, आकांक्षा के मुंह से ये सब सुनकर उसकी सासू मां की आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए।, लकवे की बीमारी के कारण हाथ तो नहीं जोड़ पायी लेकिन मन ही मन उसने आकांक्षा से माफी मांगी।, फिर आकांक्षा की बातें उसकी जिठानियों को भी समझ में आ गई।,की सासूं मां ने हमारे साथ बुरा किया तो भगवान ने उन्हें उनके कर्मों का फल दे दिया।, अगर हम भी बदले में उनके साथ वही करेंगे तो हमारे साथ भी ऐसा ही होगा।,यही सब सोचकर दोंनों आकांक्षा के साथ मिल गई , सासू मां की सेवा करने लग गयी।


दोस्तों यह कहानी नहीं हकीकत है, यह करना बहुत मुश्किल होगा की हमारे साथ कोई बुरा करे तो हम उसके साथ अच्छे बने रहें,लेकिन एक बात सोचने वाली यह भी है कि अगर हम भी बरोबर में उसके साथ बुरा करें, तो हममें और उसमें कोई फर्क नहीं रह जाएगा।, इसलिए हम सबके दिमाग में एक बात हमेशा रहनी चाहिए, कि हम जो करेंगे हमें वही मिलेगा।, भला करेंगे तो भला और बुरा करेंगे तो बुरा।, बुरे इंसान को भी एक न एक दिन अपनी गलती समझ में आती है, जैसे की आकांक्षा की सास को आई।


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स्वरचित व अप्रकाशित

आपकी अपनी

@'मनीषा भरतीया


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Manisha Bhartia

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