गलतफ़हमियाँ

गलतफहमी पर कविता

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Manisha Dubey
Manisha Dubey 24 Jan, 2020 | 0 mins read

गलतफहमियाँ यूँ ही नही बढ़ती

भावनाओं पर

धोखे का लेप लगा

इसे पकाया जाता है

द्वेष की धीमी आँच पर

और परोसा जाता है

कुछ अतिरिक्त

मिर्च, मसालों के साथ

जो जुबां से लगते ही

बहुत तेजी से

अपना असर दिखाने लगती हैं।

ये समा जाती हैं

मनुष्य के दिल से लेकर

दिमाग के हर कोने तक

ये चढ़ा देती है

एक धुँधला आवरण

हमारी सोच के ऊपर

और हम वही सोचते हैं

हम वही देखते हैं

जो हमें सामने वाला

दिखाना चाहता है।

उस समय

हम नहीं समझना चाहते

क्या सही है,

क्या गलत है

हम रहते हैं बस

अपनी धुन में

और अपने ही

किसी निर्णय से

अपने जीवन में

दुख की काली बदरी को

न्यौता दे आते हैं।

ये गलतफहमी

धीरे धीरे जहर की तरह

हमारी ज़िंदगी में

घुलती जाती है और

वर्षों के विश्वास को

क्षण मात्र में खंडित

कर जाती है।

गलतफहमियाँ यूँ ही नहीं बढ़ती

इसमें होती है

बराबर की भागीदारी

जितनी सामने वाले की

उतनी ही हमारी।

©®मनीषा दुबे मुक्ता

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