राम

bhagvaan ram ka shiksha grhn karne jana

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Lakshmi Mittal
Lakshmi Mittal 11 Aug, 2020 | 1 min read
tyaag ram

"कब तक बांधे रखेंगे इन्हें अपने खूंटे के साथ?"

"यूँ अपने से दूर करना, इतना सहज भी तो नहीं।"

 "इन्हें आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते?"

 "भला कौन पालक नहीं चाहेगा!"

"तो इन्हें, आपको अपने बंधन से मुक्त करना ही होगा..क्या आपने देखा है कभी किसी चिड़िया को, जो अपने बच्चों के पंख निकलने के पश्चात भी, उन्हें अपने साथ चिपका कर रखे?"

"सब कुछ जानता हूं... मगर इस मोह का क्या करूँ?"

"इनका जन्म समाज सेवा के लिए हुआ है.. यूं मोहपाश में बांध इनके कार्य में कठिनाई उत्पन्न न होने दें..इनकी सेवाओं से जो समाज का भला होगा, उसमें भले प्रत्यक्ष न सही, अप्रत्यक्ष रूप से आपका योगदान अतुलनीय रहेगा,,,

कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको, मुझ पर विश्वास नहीं !"


"नहीं, नहीं ऐसा मत कहिए.. ऐसा सोचना भी मेरे लिए अपराध है। आप जैसा मार्गदर्शक पाकर तो इनका जीवन धन्य हो जाएगा ।"

"तो फिर सौंप दो इनकी डोर, मेरे हाथों में।" 

यह सुनते ही दशरथ जी ने अपनी मोह-माया रूपी डोर की पकड़, पुत्रों पर से ढीली कर दी और राम अपने भाइयों सहित, ज्ञान अर्जित करने गुरु विश्वामित्र जी के साथ, प्रसन्नता पूर्वक चल दिए।

लक्ष्मी मित्तल

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