'जिएंगे शान से.. मरेंगे शान से'

शान से जीओ।

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Lakshmi Mittal
Lakshmi Mittal 20 Jun, 2020 | 1 min read

"मैडम , एक कप चाय और मिलेगी क्या?" अखबार के पन्ने पलटते हुए राधेश्याम जी ने अपनी पत्नी नीलिमा को आवाज लगाई और फिर से पेपर पढ़ने में व्यस्त हो गए।

नीलिमा जी ने तनिक गुस्साई नजरों से अपने पति की ओर देखा और तत्क्षण सीधा किचन की ओर कदम बढ़ा दिए और चाय बनाने लगीं।

हफ़्ते भर पहले ही रिटायर्ड हुए थे राधेश्याम जी।इधर रिटायरमेंट की पार्टी खत्म हुई थी,उधर बेटे-बहु की गोवा की फ्लाइट का समय हो गया था।

घूमने गए थे, रहते तो सभी एक साथ थे और वो भी बेहद प्रेम से। रिश्तेदारों में मिसाल बन गए थे राधेश्याम जी, अपने उन संस्कारों की वजह से, जो उन्होंने अपने बेटे को दिए थे।

इधर गैस पर चाय खदकने लगी थी और उधर नीलिमा जी का दिमाग अपने मायके की पुरानी स्मृतियों में चला गया।

'रिटायरमेंट के दो साल बाद तक भी मेरे बाबूजी ने बाहर किसी न किसी काम में खुद को बिजी रखने की कोशिश की। घर में रहते भी तो किसके लिए। माँ तो हम दो भाई बहन को छोड़कर कब की भगवान के घर चली गई थीं। बाबूजी ने ही तो संभाला था हम दोनों को।

भाई बड़ा है मुझसे। मगर फिर भी मेरी शादी पहले हो गई थी। एक साल बाद भाई की भी हो गई। पिहू के होने के बाद से बाबूजी घर पर ही रहने लगे। कुछ अब वो शारीरिक रूप से भी कमज़ोर हो गए थे। कभी- कभार, दो - चार दोस्त वहीँ मिलने आ जाते उनसे। चाय की थोड़ी लत जरूर थी बाबूजी को। सुबह पेपर पढ़ते-पढ़ते दो - तीन चाय हो जाती और फिर कोई दोस्त आ जाता तो उसके बहाने फिर चाय की तलब को कम करने की कोशिश करते और साथ में पकोड़ों की भी। तरह-तरह की चीज़े खाने का शौक था और दूसरों को खिलाने का भी। अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए सब व्यंजनों को बस चखा करते थे। प्रिया , मेरी भाभी भी सब फरमाइश पूरी कर देती थी उनकी। ज्यादा बात नहीं करती थी उनसे मगर जैसे-तैसे उनके काम कर देती थी। हाँ , बाबूजी ने भी उसे कभी बेटी से कम नहीं माना। प्रिया और पिहू के बिना तो बाबूजी को घर अच्छा ही नहीं लगता था। 

मगर एक सुबह , जब बाबूजी बाहर कुर्सी बिछाकर पेपर पढ़ रहे थे तो उन्होंने किचन में खड़ी प्रिया को चाय के लिए आवाज़ दी तब प्रिया की जगह भाई चाय लेकर आया। चाय जिस तरीके से भाई ने टेबल पर रखी, बाबूजी को यह समझते देर नहीं लगी कि वो आज गुस्से में है। बाबूजी ने पूछा प्रिया तो ठीक है न ? भाई गुस्से में कहने लगा " प्रिया को कुछ नहीं हुआ। मगर आपको क्या हो गया ? इस उम्र में आकर सठिया गए हो क्या जो सारा दिन डिमांड रखते रहते हो। आपके कामों के अलावा भी बहुत काम हैं उसको। माना घर में रहती है , इसका मतलब यह नहीं कि सारा दिन आपको और आपके दोस्तों को ही पूजती रहे। आपकी तरह सब निठल्ले नहीं बैठे यहाँ....।" 

बाबूजी की नम आँखे प्रिया को ढूँढ रहीं थी मगर प्रिया बाहर नहीं आई। यह चाय की आखिरी डिमांड थी उनकी। उसके बाद न तो बाबूजी की चाय के लिए डिमांड रही और न ही बाबूजी रहे।

न जाने किस गम के साथ इस दुनिया से चले गए। क्या प्रिया.... गलत थी जिसने कभी उनके कामों की वजह से हो रही परेशानी को जाहिर नहीं होने दिया या भाई.... जिसने प्रिया की परेशानी समझते हुए बाबूजी को उम्र का लिहाज़ न करते हुए उन्हें सच्चाई से रूबरू करवाया या बाबूजी की खुद की आदतें..???

जो भी था बस अब बाबूजी नहीं थे।'

"अरे नीलिमा , आज तुम्हारी चाय बनेगी या नहीं? " राधेश्याम जी की आवाज़ से नीलिमा चोंक गई । चाय उबल-उबल कर आधी रह गई थी। उसने उसमे थोड़ा दूध और डाला और उबालकर छानी ही थी कि अपने पति को फ़ोन पर बात करते सुन वहीँ ठिठक गई।

"अच्छा बेटा.. कल सुबह ! .. कितने बजे पहुँच जाओगे ?..ठीक है, बता दूँगा तुम्हारी माँ को। "

नीलिमा जी समझ गई कि बेटा-बहु कल सुबह आ रहे हैं। उसी पल वह कुछ सोच में पड़ गईं और दूसरे ही पल उन्होंने कप में छनी चाय को सिंक में गिरा दिया और बाहर अपने पति के पास आकर बैठ गई।

राधेश्याम जी, नीलिमा जी के हाथ में चाय का कप न देखकर हैरान हो गए।

नीलिमा कहने लगी , " सुनो जी, आज से सुबह आपको एक कप चाय ही मिलेगी। आप आज से ही योगा ज्वॉइन करेगें। वापिसी में फल, सब्जी, दूध और भी जो राशन चाहिए,, घर में लाना आपकी ड्यूटी। वेलफेयर संस्था के साथ आप पिछले साल जुड़े थे मगर आपने अपनी कोई भागीदारी नहीं निभाई। कल से आप उन्हें भी समय देंगें और हाँ टी. वी. को मेरी सोतन मत बना लीजिएगा। बीवी को भी समय चाहिए। चाहो तो गोवा भी ले जा सकते हैं। " कहकर नीलिमा जी तो मुस्कराने लगी मगर राधेश्याम जी तो असमंजस में पड़ गए।

अब नीलिमा कैसे बताये कि वो उनसे बहुत प्यार करती है। जिस शान से वो आज तक जियें हैं, वह चाहती है कि उसी शान से वो अपने आने वाले समय को निकालें। अगर कभी भविष्य में इतिहास अपने आपको दोहराए तो उनसे पहले, वह खुद बर्दाश्त नहीं कर पाएगी।

लक्ष्मी मित्तल 

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